India News (इंडिया न्यूज)Bihar assembly election 2025: बिहार में अब हर तरफ चुनावी रंग छाने लगा हैं। चुनावी मौसम में चिराग पासवान की गुगली चरों तरफ सुर्खियां बनी हुई है। केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने पहले 30 विधानसभा सीटों पर दावा किया था। और अब चिराग के एक फैसले ने बिहार में राजनीतिक सरगर्मी बढ़ा दी है। चिराग पासवान ने विधानसभा चुनाव लड़ने के संकेत दिए हैं और कहा है कि इससे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को ही फायदा होगा।

चिराग पासवान की पार्टी ने उनके चुनाव लड़ने से जुड़ा प्रस्ताव पारित किया है। चिराग की गिनती उन युवाओं में होती है जिन्हें नीतीश कुमार के बाद मुख्यमंत्री पद का प्रबल दावेदार माना जाता है। अगर चिराग पासवान केंद्र सरकार में मंत्री रहते हुए भी बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं तो इसके पीछे उनकी क्या योजना है?

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विधानसभा चुनाव लड़ने के पीछे का मकसद क्या?

चिराग पासवान केंद्र सरकार में मंत्री हैं। अगर वो केंद्रीय मंत्री रहते हुए बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं तो जाहिर है उनका लक्ष्य मंत्री बनना नहीं होगा। फिर उनकी योजना क्या है? दरअसल, चिराग पासवान जानते हैं कि केंद्रीय राजनीति में उनके पैर तभी मजबूती से जम पाएंगे जब तक वो बिहार में मजबूत रहेंगे। आखिर उनकी राजनीति का आधार बिहार ही है। बीजेपी केंद्रीय मंत्रियों को मध्य प्रदेश और राजस्थान से लेकर हरियाणा तक के विधानसभा चुनाव लड़वाती रही है। 2020 के बिहार चुनाव में चिराग की पार्टी जीरो सीटों पर सिमट गई। खुद मैदान में उतरने के पीछे चिराग की रणनीति ये भी हो सकती है कि शायद इससे कुछ सीटों पर एलजेपी को फायदा हो जाए।

क्या चिराग सत्ता की चाबी तलाश रहे हैं?

साल 2005 में बिहार विधानसभा चुनाव दो बार हुए। पहले चुनाव में त्रिशंकु जनादेश आया था। तब चिराग पासवान के पिता रामविलास पासवान तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार में मंत्री थे। केंद्र सरकार में गठबंधन सहयोगी होने के बावजूद एलजेपी ने बिहार चुनाव अकेले लड़ा और पार्टी 29 सीटें जीतकर किंगमेकर बनकर उभरी। तब आरजेडी 75 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी और एनडीए 92 सीटों के साथ सबसे बड़ा गठबंधन था। कांग्रेस के 10, एसपी के चार, एनसीपी के तीन और लेफ्ट के 11 विधायक थे। आरजेडी को भरोसा था कि वह कांग्रेस और इन छोटी पार्टियों के साथ-साथ केंद्र में गठबंधन सहयोगी एलजेपी के समर्थन से सरकार बना लेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

सत्ता की चाबी लेकर घूम रहे रामविलास पासवान ने तब मुस्लिम मुख्यमंत्री की मांग कर समस्या खड़ी कर दी थी। एनडीए ने नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार बनाई, लेकिन यह अल्पमत सरकार भी ज्यादा दिन नहीं चल सकी। नीतीश को कुर्सी छोड़नी पड़ी और उसी साल अक्टूबर में फिर से चुनाव हुए। 2005 के दूसरे चुनाव में एलजेपी ने सत्ता की चाबी खो दी और एनडीए ने पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई। क्या चिराग भी इन चुनावों में अपनी पार्टी के लिए सत्ता की चाबी तलाश रहे हैं?

क्या चिराग 20 साल पुरानी कहानी दोहराएंगे?

चिराग पासवान के हालिया रुख के बाद 2020 के बिहार चुनाव की यादें ताजा हो गई हैं। उस समय चिराग पासवान अपने पिता की बनाई पार्टी लोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हुआ करते थे। तब चिराग की पार्टी 30 सीटों की मांग कर रही थी। जब बात नहीं बनी तो चिराग की पार्टी ने अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। चिराग ने 137 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे, खास तौर पर उन सीटों पर जहां जेडीयू चुनाव लड़ रही थी। लेकिन एक 20 साल पुरानी कहानी की भी चर्चा है।

2020 में जब चिराग की पार्टी ने ‘एकला चलो’ की राह पकड़ी, तब भी वे पार्टी के अध्यक्ष थे। तब भी पार्टी एनडीए में थी । हालांकि, तब चिराग केंद्र में मंत्री नहीं थे। तकरीबन 20 वर्ष पहले भी कुछ ऐसा ही हुआ था। उस समय चिराग पासवान के पिता रामविलास पासवान केंद्र सरकार में मंत्री थे। केंद्र में यूपीए की सरकार थी और जब बिहार चुनाव की बारी आई तो एलजेपी ने अकेले विधानसभा का इलेक्शन लड़ा। केंद्र सरकार में साथ होने के बावजूद आरजेडी को रामविलास पासवान का साथ नहीं मिल पाया और पार्टी सत्ता से इतनी चूक गई कि बिना नीतीश के कभी सत्ता का स्वाद चखने की स्थिति में नहीं आ सकी। क्या चिराग इस बार एनडीए के लिए भी यही कहानी दोहरा पाएंगे?

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