India News (इंडिया न्यूज), Manmohan Singh: साल 2005 में बिहार में राष्ट्रपति शासन लागू करने का निर्णय केंद्र सरकार द्वारा लिया गया था, जो तब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में थी। यह निर्णय बिहार विधानसभा चुनाव के बाद लिया गया, जब किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। इस स्थिति को देखते हुए तत्कालीन बिहार के राज्यपाल, बूटा सिंह ने बिहार विधानसभा को भंग करने और राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश की। यह कदम विशेष रूप से विवादों में घिरा रहा, क्योंकि यह आरोप लगा कि बूटा सिंह की मंशा नीतीश कुमार की सरकार बनने को रोकने की थी।

डॉ. कलाम ने किताब में किया उल्लेख

जब राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम रूस के दौरे पर थे, तब केंद्र सरकार ने उन्हें फैक्स के जरिए यह निर्देश भेजा कि वे बिहार विधानसभा भंग करने के फैसले पर हस्ताक्षर करें। यह फैक्स मास्को के समय के अनुसार रात के करीब 2 बजे भेजा गया था। डॉ. कलाम ने अपनी किताब “टर्निंग प्वाइंट्स” में इसका उल्लेख किया और बताया कि उन्होंने न चाहते हुए भी इस पर हस्ताक्षर किए।

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हालांकि, यह मामला सुप्रीम कोर्ट में गया और कोर्ट ने केंद्र सरकार के इस निर्णय को असंवैधानिक और बदनीयती करार दिया। कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए जो प्रक्रिया अपनाई गई थी, वह लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ थी।

जदयू और बीजेपी ने बनाई गठबंधन की सरकार

फरवरी 2005 में राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद नवंबर 2005 में वापस चुनाव हुए, जिसमें जदयू और बीजेपी ने गठबंधन कर सरकार बनाई। नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने और सुशील कुमार मोदी उपमुख्यमंत्री बने। इस प्रकार, बिहार में राष्ट्रपति शासन का मामला भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण और विवादास्पद अध्याय बन गया।

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