India News (इंडिया न्यूज), CG News: छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के ग्राम मिर्रीटोला में स्थित गढ़ मौली देवी मंदिर एक अनूठी परंपरा और गहरी आस्था से जुड़ा हुआ है। इस मंदिर की खास बात यह है कि आज भी यहां महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। महिलाएं मंदिर के अंदर नहीं जा सकतीं, बल्कि वे मंदिर के मुख्य द्वार पर ही खड़ी होकर पूजा-अर्चना करती हैं। इस परंपरा का पालन गांव की महिलाएं स्वयं श्रद्धा भाव से करती आ रही हैं।
मंदिर का इतिहास और मान्यता
गढ़ मौली देवी मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है। ग्रामीणों के अनुसार, इस मंदिर में स्थापित देवी की मूर्ति स्वयं भूमि से प्रकट हुई थी। यह भी मान्यता है कि यह देवी धमतरी के गंगरेल स्थित मां अंगारमोती की बड़ी बहन मानी जाती हैं। देवी को कुंवारी माना जाता है, और इसी कारण महिलाओं को मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया जाता। गांव के बुजुर्गों का कहना है कि महिलाओं को मासिक धर्म होने के कारण वे धार्मिक दृष्टि से अपवित्र मानी जाती हैं, इसलिए मंदिर में उनका प्रवेश प्रतिबंधित है। हालांकि, 12 वर्ष तक की बच्चियों को मंदिर में जाने की अनुमति होती है, जबकि पुरुषों और बच्चों के लिए कोई रोक-टोक नहीं है।
गांव वालों की आस्था
ग्रामीणों का मानना है कि मौली देवी की कृपा से गांव में शांति और सुरक्षा बनी रहती है। इस देवी की शक्ति से गांव पर कोई संकट नहीं आता। यही कारण है कि महिलाएं भले ही मंदिर के अंदर न जा पाएं, लेकिन उनकी श्रद्धा में कोई कमी नहीं है। वे पूरी आस्था और भक्ति के साथ बाहर से ही देवी की पूजा करती हैं और अपनी मनोकामनाएं मांगती हैं।
रूढ़िवादिता या आस्था?
देखा जाए तो यह परंपरा एक तरह की सामाजिक रूढ़िवादिता को दर्शाती है, लेकिन इसे निभाने में खुद महिलाओं की सहमति भी शामिल है। गांव की महिलाएं इस नियम को देवी की इच्छा मानकर वर्षों से इसका पालन कर रही हैं। गढ़ मौली देवी मंदिर न केवल आस्था का प्रतीक है बल्कि यह दर्शाता है कि परंपराएं और विश्वास समाज में कितनी गहराई तक जुड़े होते हैं। चाहे यह परंपरा बदलनी चाहिए या नहीं, यह बहस का विषय हो सकता है, लेकिन फिलहाल ग्रामीणों की अटूट श्रद्धा इसे आज भी जीवित रखे हुए है।