India News (इंडिया न्यूज़), Bhatapara Municipality Election: नगरीय निकाय चुनावों में भाटापारा नगर पालिका परिषद का चुनाव इस बार बेहद रोचक हो गया है। 31 वार्डों में पार्षद पद के लिए 83 उम्मीदवार मैदान में हैं, जिनमें कांग्रेस और भाजपा ने 31-31 प्रत्याशी उतारे हैं, जबकि 21 निर्दलीय भी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। लेकिन असली मुकाबला नगर पालिका अध्यक्ष पद पर है, जहां कांग्रेस, भाजपा, बहुजन समाज पार्टी और चार निर्दलीय उम्मीदवार आमने-सामने हैं।

प्रभाव और प्रतिष्ठा की लड़ाई

अध्यक्ष पद के लिए कांग्रेस और भाजपा के प्रत्याशी सबसे ज्यादा चर्चा में हैं। यह मुकाबला सिर्फ दो राजनीतिक दलों का नहीं, बल्कि प्रभाव और प्रतिष्ठा की लड़ाई बन गया है। कोई इसे ज्येष्ठता और कनिष्ठता की जंग बता रहा है, तो कोई विकास और विश्वास के मुद्दे पर इसे देख रहा है। शहरभर में कांग्रेस और भाजपा के पोस्टरों से कोना-कोना पटा पड़ा है। राजनीतिक गलियारों में यह भी चर्चा है कि अगर कांग्रेस का प्रत्याशी जीतता है, तो भाजपा को अगले चुनाव में नया चेहरा उतारने की जरूरत पड़ सकती है। वहीं, भाजपा प्रत्याशी जिस तरह घर-घर जाकर जनसंपर्क कर रहे हैं, उससे कांग्रेस उम्मीदवार को कड़ी मेहनत करनी होगी।

‘कल्चर कुंभ’ में दिखी महाकुंभ की भव्यता, सभी ने व्यवस्था और सुविधाओं को सराहा

कांग्रेस का गढ़ या भाजपा की मजबूत पकड़?

कांग्रेस के प्रत्याशी सतीश अग्रवाल, स्वर्गीय जगदीश अग्रवाल के पुत्र हैं, जो 1977 और 1980 में भाटापारा के विधायक रहे थे। सतीश अग्रवाल राज्य स्तर पर कांग्रेस संगठन में सक्रिय रहे हैं और उनकी राजनीतिक पहचान विधानसभा तक बनी हुई है। कोरोना काल में उनके सेवा कार्यों के चलते जनता में उनकी अलग पहचान बनी है, जिससे उन्हें चुनावी लाभ मिलने की उम्मीद है। वहीं, भाजपा प्रत्याशी अश्वनी शर्मा की छवि युवाओं के बीच एक मजबूत नेता की बनी हुई है। वे भाजपा विधायक शिव रतन शर्मा के भतीजे हैं, जो सात बार विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं और तीन बार जीत दर्ज कर चुके हैं। अश्वनी शर्मा छात्र जीवन से राजनीति में सक्रिय हैं और जिला पंचायत सदस्य भी रह चुके हैं। भाजपा खेमा उन्हें युवाओं का चेहरा और संघर्षशील नेता के रूप में पेश कर रहा है।

निर्दलीय और बसपा के उम्मीदवार भी बनाएंगे खेल

इस चुनाव में बहुजन समाज पार्टी और निर्दलीय उम्मीदवार भी अहम भूमिका निभा सकते हैं। चार निर्दलीय प्रत्याशी कांग्रेस और भाजपा के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश में हैं। ये प्रत्याशी दोनों दलों के असंतुष्ट कार्यकर्ताओं और आम जनता को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। भाटापारा चुनाव में सिर्फ पार्टी की ताकत ही नहीं, बल्कि प्रत्याशियों की छवि, रणनीति और जनता से जुड़ाव भी अहम भूमिका निभाएगा। अब देखना होगा कि भाटापारा कांग्रेस के गढ़ के रूप में कायम रहेगा या भाजपा यहां अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखने में सफल होगी।