India News (इंडिया न्यूज़), Draupadi Curse The Dogs: द्रोपदी ने कुत्तों को श्राप इसलिए दिया था क्योंकि महाभारत काल में उन्होंने अपने अपमान के समय देखा कि वे कौरवों के द्वारा व्याप्त थे। जब द्रोपदी को वस्त्रहरण किया गया और महाभारत के सभी महत्वपूर्ण व्यक्तियों ने उन्हें अपमानित किया, उन्होंने उस समय वहां थे।

द्रोपदी ने कुत्तों को श्राप देने की कथा महाभारत से संबंधित एक प्रसंग है। इस कथा के अनुसार, द्रोपदी ने कुत्तों को श्राप दिया कि वे कभी भी राजा बनकर नहीं रहेंगे और उनके भोजन करने का तरीका हमेशा अपमानजनक रहेगा। इस श्राप का संदर्भ महाभारत के वन पर्व में मिलता है।

कहानी का विस्तार:

महाभारत के अनुसार, जब पांडव वनवास में थे, तो एक दिन द्रोपदी अपनी चोटी (बालों की लट) को बांध रही थी। तभी एक कुत्ता वहां आया और उसके बालों की लट को खींचकर ले गया। यह देखकर द्रोपदी बहुत क्रोधित हो गई और उसने कुत्तों को श्राप दिया कि वे हमेशा सार्वजनिक स्थानों पर शर्मनाक तरीके से भोजन करेंगे और कभी राजा बनकर नहीं रहेंगे।

इस कथा का एक और पहलू भी है। जब द्रोपदी का वस्त्रहरण हुआ था, तब वह बेहद अपमानित हुई थीं। उन्होंने प्रतिज्ञा की थी कि जब तक वह अपने बालों को कौरवों के खून से नहीं धोएंगी, तब तक वे उन्हें नहीं बांधेंगी। इसी बीच, कुत्तों का उनके बालों के साथ खेलना उन्हें और भी अपमानजनक लगा।

इस घटना ने द्रोपदी को और भी अधिक क्रोधित कर दिया और उन्होंने कुत्तों को श्राप दिया कि वे हमेशा शर्मनाक स्थिति में रहेंगे और उनके भोजन करने का तरीका हमेशा अपमानजनक रहेगा।

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श्राप का महत्व:

इस श्राप का गहरा प्रतीकात्मक महत्व है। यह कथा दर्शाती है कि कैसे द्रोपदी ने अपने अपमान के समय भी आत्मसम्मान को बनाए रखा और अपने अपमान का बदला लिया। इस श्राप के माध्यम से उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि कोई भी भविष्य में ऐसा अपमान न करे।

द्रोपदी का यह श्राप आज भी भारतीय संस्कृति और मिथकों में एक महत्वपूर्ण कहानी के रूप में देखा जाता है। यह कथा यह भी सिखाती है कि अपमान और अन्याय के खिलाफ खड़ा होना चाहिए और उसे सहन नहीं करना चाहिए।

निष्कर्ष:

द्रोपदी द्वारा कुत्तों को श्राप देने की यह कथा महाभारत की महत्वपूर्ण कहानियों में से एक है। यह हमें यह सिखाती है कि आत्मसम्मान और न्याय की रक्षा के लिए खड़ा होना कितना महत्वपूर्ण है। द्रोपदी के इस श्राप ने यह सुनिश्चित किया कि कुत्ते कभी भी सम्मानजनक स्थिति में नहीं रहेंगे और हमेशा शर्मनाक स्थिति में भोजन करेंगे। इस कथा का पौराणिक महत्व और नैतिक शिक्षा आज भी प्रासंगिक है और इसे भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण कथा के रूप में देखा जाता है।

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