India News (इंडिया न्यूज), Aghori Sadhu Facts: भारत की साधु-संतों की दुनिया सदियों से लोगों के लिए आकर्षण और रहस्य का विषय रही है। साधु-संत सांसारिक मोह-माया से दूर रहकर धर्म और अध्यात्म का प्रचार करते हैं। इनमें से अधिकांश ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं और गुरु परंपराओं का अनुसरण करते हैं। लेकिन साधु-संतों का एक ऐसा समुदाय भी है जो इन परंपरागत नियमों से अलग है। यह समुदाय है ‘अघोरियों’ का, जो अपनी अनूठी साधनाओं और परंपराओं के लिए जाना जाता है।

अघोरियों की अनूठी साधना

अघोरी समुदाय भगवान शिव के अघोर रूप के उपासक होते हैं। उनका मुख्य निवास स्थान श्मशान घाट होता है, जहाँ वे मृत देहों के बीच अपनी साधना करते हैं। वे शवों के साथ तंत्र-मंत्र करते हैं और चिताओं की राख को अपने शरीर पर लगाते हैं। अघोरी साधुओं का मानना है कि चिता की राख शिव भक्ति और साधना के लिए सबसे पवित्र माध्यम है। वे अपने गले में नरमुंड और हड्डियों की माला पहनते हैं, जो उनकी साधना का प्रतीक है।

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शिव भक्ति का विशेष रूप

अघोरी साधु भगवान शिव के भोलेनाथ स्वरूप की बजाय उनके अघोर रूप की आराधना करते हैं। उनका मानना है कि शिव का यह रूप जीवन और मृत्यु के बीच के भेद को समाप्त करता है। अघोरी साधना में समर्पण का स्तर इतना गहरा होता है कि वे उन परंपराओं का पालन करते हैं जो आम समाज में वर्जित मानी जाती हैं।

श्मशान में जीवन और साधना

श्मशान घाट में बसेरा करना अघोरियों की सबसे अनोखी विशेषता है। वे रात के अंधेरे में तंत्र-मंत्र साधना करते हैं और अक्सर उनके साथी कुत्ते होते हैं। अघोरी कुत्तों को अत्यधिक प्रिय मानते हैं और उन्हें अपना साथी और संरक्षक मानते हैं।

विवादास्पद परंपराएं

अघोरियों के बारे में कई प्रचलित धारणाएँ हैं, जिनमें से कुछ अत्यधिक विवादास्पद हैं। कहा जाता है कि वे श्मशान में महिलाओं के शवों के साथ संबंध बनाते हैं। उनके अनुसार, यह साधना का एक उन्नत स्तर है जो उनके ध्यान और आत्म-नियंत्रण की परीक्षा लेता है। इसके अतिरिक्त, वे उन महिलाओं के साथ संबंध बनाते हैं जो मासिक धर्म के दौरान होती हैं। अघोरी साधुओं का मानना है कि यह प्रक्रिया उनके साधना मार्ग को और शक्तिशाली बनाती है।

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मांसाहार और नशा

अघोरी साधु मानव मांस का सेवन भी करते हैं, जिसे वे अपनी साधना का हिस्सा मानते हैं। इसके अलावा, वे कई प्रकार के नशे का भी सेवन करते हैं। उनका विश्वास है कि ये गतिविधियाँ उन्हें सांसारिक बंधनों से मुक्त करती हैं और उन्हें शिव की आराधना में गहराई से जुड़ने में मदद करती हैं।

अघोरियों का मुख्य केंद्र

भारत में बनारस (वाराणसी) और उज्जैन जैसे धार्मिक स्थलों पर अघोरी साधुओं की बड़ी संख्या देखने को मिलती है। इन स्थानों पर वे अपनी साधना और तंत्र-मंत्र क्रियाओं का अभ्यास करते हैं। वाराणसी को अघोरियों की साधना का प्रमुख केंद्र माना जाता है, क्योंकि यह शहर स्वयं भगवान शिव से जुड़ा हुआ है।

अघोरियों का जीवन दर्शन

अघोरी साधुओं का जीवन दर्शन इस बात पर आधारित है कि हर वस्तु, चाहे वह पवित्र हो या अपवित्र, एक ही ईश्वर का स्वरूप है। वे जीवन और मृत्यु, पवित्रता और अपवित्रता के भेद को समाप्त करने का प्रयास करते हैं। उनकी साधना इस उद्देश्य पर केंद्रित होती है कि वे अपनी आत्मा को परमात्मा के साथ एकाकार कर सकें।

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अघोरियों का संसार रहस्यमय, अनोखा और कई दृष्टियों से विवादास्पद है। उनकी साधनाएँ और परंपराएँ आम लोगों के लिए समझ से परे हो सकती हैं, लेकिन उनके लिए यह शिव भक्ति का सर्वोच्च मार्ग है। अघोरी साधु जीवन और मृत्यु के भेद को समाप्त करने का प्रयास करते हैं और अपने विचित्र साधना पद्धति से यह संदेश देते हैं कि ईश्वर को पाने के मार्ग में कोई भी वस्तु अपवित्र नहीं है।

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