India News (इंडिया न्यूज), Bahuchara Mata: प्रयागराज के महाकुंभ में इस बार किन्नर अखाड़ा भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहा है, और आम मान्यता है कि यहां पूजा करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। किन्नर समाज के लिए बहुचरा माता का विशेष महत्व है। वे न केवल किन्नरों की कुलदेवी हैं, बल्कि आम लोग भी उनके चरणों में अपनी समस्याओं के समाधान के लिए आते हैं। बहुचरा माता को हिंगलाज माता का अवतार माना जाता है और उन्हें “मुर्गे वाली देवी” भी कहा जाता है। उनके प्रति यह आस्था सदियों से चली आ रही है।

बहुचरा माता का जन्म और पौराणिक मान्यता

बहुचरा माता का जन्म एक चारण परिवार में हुआ था। उन्हें देवी हिंगलाज का अवतार माना जाता है, जो शक्ति और साहस का प्रतीक हैं। उनके नाम के साथ जुड़ी कई लोक कथाएँ और पौराणिक गाथाएँ हैं। खासकर संतान प्राप्ति के संदर्भ में बहुचरा माता की महिमा प्रसिद्ध है।

कौन थी महाभारत की वो स्त्री जिसके अपहरण तक के गुनेहगार बन गए थे श्री कृष्ण? जानें क्या थी वो कहानी!

गुजरात के राजा की कथा

लोक कथाओं के अनुसार, गुजरात के एक राजा और रानी को संतान सुख की प्राप्ति नहीं हो रही थी। उन्होंने अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए बहुचरा देवी की उपासना की। देवी उनकी भक्ति से प्रसन्न हुईं और उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। इसके बाद उनके घर एक पुत्र का जन्म हुआ। यह घटना बहुचरा माता की कृपा और उनकी शक्ति का परिचायक है।

संतान प्राप्ति की देवी

बहुचरा माता के प्रति यह मान्यता है कि उनकी पूजा से निसंतान दंपती को संतान सुख की प्राप्ति होती है। गुजरात के मेहसाणा में बहुचरा माता का एक प्रसिद्ध मंदिर है, जहां देशभर से लोग संतान प्राप्ति की आशा में आते हैं। माता की कृपा से न केवल संतान की प्राप्ति होती है, बल्कि यह भी माना जाता है कि माता अपने भक्तों को हर प्रकार के कष्ट से मुक्ति दिलाती हैं।

क्यों मेघनाद का बाल भी बांका नहीं कर सकते थे श्री राम…स्वयं भगवान विष्णु का रूप होकर भी क्यों नहीं कर सकते थे वध?

किन्नर समाज और बहुचरा माता

बहुचरा माता किन्नर समाज की कुलदेवी हैं। किन्नर समाज में उन्हें अत्यंत श्रद्धा और भक्ति के साथ पूजा जाता है। उनके आशीर्वाद को शुभ माना जाता है। भारतीय समाज में भी एक परंपरा है कि घर में बच्चे के जन्म पर किन्नरों का आशीर्वाद लिया जाता है। इसे शुभता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।

मुर्गे वाली देवी का स्वरूप

बहुचरा माता को “मुर्गे वाली देवी” के रूप में भी जाना जाता है। उनके इस स्वरूप के पीछे भी विशेष मान्यताएँ और कथाएँ हैं, जो उनकी दिव्यता और शक्ति को दर्शाती हैं। उनके मंदिरों में मुर्गे की बलि देने की परंपरा भी प्रचलित है, जिसे उनकी कृपा प्राप्त करने का एक माध्यम माना जाता है।

मरकर भी नहीं जलता शरीर का ये हिस्सा…क्या है ऐसी शक्तियां या विज्ञानं जो आग भी नहीं कर पाती इसे राख?

महाकुंभ और किन्नर अखाड़ा

महाकुंभ में किन्नर अखाड़े की उपस्थिति यह दर्शाती है कि भारतीय संस्कृति में हर वर्ग और समुदाय का विशेष महत्व है। किन्नर अखाड़े ने बहुचरा माता के प्रति अपनी भक्ति और समर्पण से लोगों का ध्यान आकर्षित किया है। उनकी पूजा में सभी जाति और वर्ग के लोग शामिल होकर माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

बहुचरा माता की कहानी आस्था, विश्वास, और शक्ति का प्रतीक है। उनका स्वरूप न केवल किन्नर समाज के लिए, बल्कि सभी भक्तों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनकी पूजा और उपासना से जीवन की अनेक कठिनाइयों का समाधान प्राप्त होता है। बहुचरा माता के प्रति यह आस्था और भक्ति हमें यह सिखाती है कि सच्चे दिल से की गई प्रार्थना अवश्य पूरी होती है।

अगर आपके आस-पास भी हो रहा है किसी आत्मा का बसेरा तो जरूर मिलेंगे ये 13 संकेत, इंसानी शरीर को जरूर होता है महसूस