India News (इंडिया न्यूज), Unknown Facts About Naga Sadhu: महाकुंभ 2025 के दौरान, अखाड़ों के शाही स्नान संपन्न हो चुके हैं और अब धीरे-धीरे नागा साधु वापस लौटने लगे हैं। कुछ साधु बसंत पंचमी के बाद अपने रास्ते पर चल पड़े हैं, जबकि कुछ और अभी काशी के लिए प्रस्थान करेंगे। इस समय नागा साधुओं की वापसी का एक खास पहलू है—उनकी विशेष पंरपरा और रस्में, जो वे महाकुंभ से लौटने से पहले करते हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि वे कौन से दो महत्वपूर्ण कार्य करते हैं, जिन्हें निपटाए बिना नागा साधु प्रयागराज की धरती छोड़ते नहीं हैं।
1. कढ़ी-पकौड़ी का भोज
नागा साधुओं की पंरपरा के अनुसार, महाकुंभ के दौरान उनकी तपस्या और साधना का समापन एक खास भोज से होता है। यह भोज कढ़ी-पकौड़ी के रूप में होता है। कढ़ी-पकौड़ी का भोज न केवल स्वादिष्ट होता है, बल्कि यह एक विशेष रस्म का हिस्सा है। इस भोज का आयोजन साधुओं के बीच सामूहिक रूप से किया जाता है और इसे एक धार्मिक कर्तव्य के रूप में देखा जाता है। इसके द्वारा वे एकता और भाईचारे का संदेश भी देते हैं।
कढ़ी-पकौड़ी का भोज नागा साधुओं के लिए एक उल्लास का पल होता है, जिसमें वे अपनी साधना का समापन करते हैं और अगले वर्ष तक के लिए अपने कार्यों को स्थगित करते हैं। यह भोज न केवल शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है, बल्कि आत्मिक संतुलन भी बनाए रखता है।
2. ध्वज की डोर को ढ़ीला करना
दूसरी महत्वपूर्ण रस्म है अपने अखाड़े की ध्वज की डोर को ढ़ीला करना। यह प्रतीकात्मक रूप से उस समय का संकेत होता है जब साधु अपनी कड़ी तपस्या और साधना के बाद अब लौटने के लिए तैयार होते हैं। ध्वज को ढ़ीला करना मतलब अपने आधिकारिक साधना स्थल को छोड़ना और यात्रा के लिए निकलना। यह एक आधिकारिक प्रक्रिया है जो साधु और उनके अखाड़े के अनुयायियों के बीच एक खास धार्मिक कड़ी का हिस्सा होती है।
इस रस्म के द्वारा साधु यह बताते हैं कि उनका समय अब खत्म हो चुका है और वे अपनी यात्रा की ओर बढ़ रहे हैं। ध्वज की डोर ढ़ीली करने से उनका एक आधिकारिक शासकीय कार्य समाप्त होता है, और वे शांति से घर की ओर लौटते हैं।
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महाकुंभ के बाद नागा साधुओं की वापसी केवल एक भौतिक यात्रा नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक समापन और पुनः आस्तित्व की ओर कदम बढ़ाने की प्रक्रिया है। कढ़ी-पकौड़ी का भोज और ध्वज की डोर को ढ़ीला करने की रस्में उनके जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इन रस्मों के द्वारा वे न केवल अपनी तपस्या का समापन करते हैं, बल्कि अपने अखाड़े और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी भी निभाते हैं। इन परंपराओं के माध्यम से हमे यह संदेश मिलता है कि धर्म, परंपरा और आस्था का पालन करते हुए जीवन को एक उद्देश्य और दिशा दी जाती है।
महाकुंभ की समाप्ति और नागा साधुओं की वापसी से जुड़ी यह परंपराएँ न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में भी अपनी अहम भूमिका निभाती हैं।