India News (इंडिया न्यूज), Brahma Pushkar Temple: राजस्थान के पुष्कर में स्थित ब्रह्माजी का मंदिर पूरे देश में अपनी अलग पहचान रखता है। भारत में यह एकमात्र ऐसा स्थान है, जहां ब्रह्माजी की विधिवत पूजा होती है। यहां हर साल भव्य मेले का आयोजन होता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु और पर्यटक जुटते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर ब्रह्माजी की पूजा सिर्फ पुष्कर में ही क्यों होती है? इसके पीछे एक रोचक पौराणिक कथा छिपी है।
इस श्राप के कारण नहीं होती ब्रह्माजी की पूजा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार ब्रह्माजी ने वज्रनाश नामक राक्षस का वध करने के बाद यज्ञ करने का निर्णय लिया। इस यज्ञ के सफल आयोजन के लिए उनकी पत्नी सरस्वती का वहां उपस्थित होना आवश्यक था। लेकिन जब देवी सरस्वती समय पर नहीं पहुंच सकीं, तो यज्ञ को पूर्ण करने के लिए ब्रह्माजी ने गायत्री नामक कन्या से विवाह कर यज्ञ को पूर्ण किया। जब देवी सरस्वती वहां पहुंचीं तो उन्होंने अपने स्थान पर एक अन्य कन्या को देखा और क्रोधित होकर ब्रह्माजी को श्राप दे दिया कि पूरे संसार में उनकी पूजा नहीं होगी। इस घटना में भगवान विष्णु भी शामिल थे, इसलिए देवी सरस्वती ने भी उन्हें श्राप दिया कि उन्हें अपनी पत्नी से वियोग का दर्द सहना पड़ेगा। बाद में देवताओं के अनुरोध पर देवी सरस्वती ने अपने श्राप में संशोधन करते हुए कहा कि ब्रह्माजी की पूजा केवल पुष्कर में ही की जाएगी। यही कारण है कि भारत में ब्रह्माजी का एकमात्र मंदिर केवल पुष्कर में ही स्थित है।
पुष्कर नामकरण के पीछे छिपा है गहरा रहस्य
पुष्कर के नामकरण से जुड़ी एक और मान्यता प्रचलित है। कहा जाता है कि जब ब्रह्माजी यज्ञ करने के लिए उपयुक्त स्थान की तलाश कर रहे थे, तो उन्होंने आकाश से एक कमल का फूल गिराया। उस फूल की पंखुड़ियां जहां-जहां गिरीं, वहां-वहां जलस्रोत प्रकट हो गए। इसी कारण इस स्थान का नाम ‘पुष्कर’ पड़ा। यह भी कहा जाता है कि इन जलस्रोतों में स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
सरोवर के लिए भी प्रसिद्ध है पुष्कर
पुष्कर न केवल ब्रह्माजी के मंदिर के लिए बल्कि अपने पवित्र सरोवर के लिए भी प्रसिद्ध है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन इस सरोवर में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऐसा कहा जाता है कि यदि कोई व्यक्ति चारधाम यात्रा करने के बाद पुष्कर में स्नान नहीं करता है तो उसे यात्रा का पूरा लाभ नहीं मिलता है। इसके अलावा आंवला नवमी के दिन पुष्कर सरोवर में स्नान करने से भी सभी पापों का नाश होता है। श्रद्धालु यहां आकर पवित्र जल में डुबकी लगाते हैं और अपने पापों से मुक्ति की प्रार्थना करते हैं।
हर साल लगता है भव्य पुष्कर मेला
कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर हर साल पुष्कर में भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। यह मेला न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि सांस्कृतिक और पारंपरिक गतिविधियों का भी केंद्र है। श्रद्धालुओं के साथ-साथ देश-विदेश से पर्यटक भी बड़ी संख्या में इसमें भाग लेते हैं। मेले का मुख्य आकर्षण ऊंट व्यापार, लोक नृत्य, संगीत, विभिन्न प्रतियोगिताएं और धार्मिक अनुष्ठान हैं। पुष्कर का यह मंदिर और इसकी धार्मिक परंपराएं न केवल आस्था से जुड़ी हैं, बल्कि यह स्थान भारतीय संस्कृति और इतिहास की झलक भी प्रस्तुत करता है। यहां आने वाले श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक शांति का अनुभव होता है और इस पवित्र भूमि की महिमा का एहसास होता है।
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