Critically Analyze Ideas

गीता मनीषी
स्वामी ज्ञानानंद महाराज

अब मन में कोई ऐसा कल्याणकारी विचार लाइए, जो आपको अत्यन्त मार्मिक एवं हृदयस्पर्शी लगा हो। दूर न जाकर इसी विचार पर अपने को केंद्रित करें ‘मैं कौन हूं’ बात देखने में छोटी सी है, लेकिन इस पर गम्भीरतापूर्वक विचार विश्लेषण करने रहने से यही साधारण सा प्रतीत होने वाला विचार आपको जीवन की यथार्थता के समकक्ष ला खड़ा करेगा।
इसी विचार की गहराई में उतरते-उतरते इस पर सूक्ष्म-अतिसूक्ष्म चिन्तन करते हुए आप वहां पहुंच सकते हैं जहां सभी प्रकार के मिथ्यारोप अपना अस्तित्त्व खो बैंठते हैं तथा रह जाता है आपका अपना आप, आपका यथार्थ स्वरूप, जीवन की वास्तविकता! ‘मैं कौन हूं इस प्रश्न के सम्बन्ध में साधारणतया आप यह कह देंगे कि यह भी क्या कोई प्रश्न है? क्या हम इतना भी नहीं जानते? परन्तु वस्तु स्थिति ऐसी ही है। मैं कौन हूं इससे कोई विरला ही पूर्णतया अवगत होता है। जब भगवान राम एक जिज्ञासु के रूप में अश्रात्रि के समय अपने कुलगुरु ब्रह्मर्षि वशिष्ट जी का द्वार खटखटाते हैं तो भीतर से आवाज ए पूछते हैं ‘कौन ?’ जसु राम का सहज उत्तर था- भगवन! यही पूछने तो मैं आपके पास आया हूं कि मैं कौन हूं?’ सोचिए, कितना रहस्य युक्त हो सकता हैं यह गुरुवर के प्रश्न, जिसे भगवान राम इस ढंग से अपने समक्ष रख रहे हैं।

Critically Analyze Ideas कितनी अवस्थाएं बदलती है देह

इस जिज्ञासापूर्ण प्रश्न का लेकर मनन के गम्भीर साम्राज्य में कुछ समय के लिए अपने को प्रविष्ट हो जाने दें। मैं कौन हूँ-बया यही है मेरा स्वरूप जो इस पंचभौतिक स्थूल शरोर के रूप में दृष्टिगोचर हो रहा है? सोचे-क्या साढ़े तीन हाथ लम्त्रा, अमुक रंग-रूप युक्त यह देह-पिंड ही मैं हूं’ है? लेकिन देह तो कभी स्थिर नहीं रहती। कितनी ही अवस्थाएं त्रदलती रहती है यह परिवर्तनशील देह! किसीं भी रूप में तो यह विश्वसनीय नहीं। परितर्वनों के इसी कम में एक दिन ऐसा भी आता है जब जीव इस देह को छोड़ जाता है और देह रह जाती है। श्मशान में जलाए जाने योग्य। क्या कीमत रह जाते हैं उस समय इसकी ? लकड़ियों की ही भाँति राख की ढेरी में परिवर्तित हो जाता है इसका अस्तित्तव ! तत्त्व तत्त्वों में समा जाते हैं। उस स्थिति में सामने लाइए क्यो यह राख की ढेरी अथवा हड्डियों के कुछ अवशिष्ट ही ‘मैं हूं’ है? इसी भाव पर ठहरिए-श्मशान में चिता की उठती हुई लपटे, उसमें जलता हुआ शरीर, फिर मात्र राख की ढेरी और उसने कुछ हड्डियाँ जो चौथे दिन थैली में डाली जाती हैं गंगा जी में विसर्जित करने के लिए।

क्रमश:

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