India News (इंडिया न्यूज़), Mahabharat Duryodhan: महाभारत का युद्ध केवल हस्तिनापुर की राजगद्दी के लिए नहीं, बल्कि धर्म और अधर्म के बीच के संघर्ष के रूप में देखा जाता है। कौरवों को अधर्म का प्रतीक माना गया, जबकि पांडवों को धर्म का। कौरवों की सेना में पूरी दुनिया के महान योद्धा शामिल थे, लेकिन पांडवों के पक्ष में भगवान श्रीकृष्ण स्वयं थे। युद्ध की परिस्थिति कौरवों के पक्ष में थी, और उनकी जीत लगभग निश्चित मानी जा रही थी। लेकिन, दुर्योधन के एक संदेह ने इस युद्ध का पासा पलट दिया।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाभारत के युद्ध में कौरव सेना की दुर्दशा देखकर दुर्योधन ने अपने सबसे बड़े योद्धा, भीष्म पितामह पर आरोप लगाया कि वे पूरी शक्ति से युद्ध नहीं कर रहे हैं। दुर्योधन ने आरोप लगाया कि भीष्म पितामह, कौरवों की बजाय पांडवों को अधिक स्नेह करते हैं और इसलिए उन्हें जिताने के लिए ही प्रयास कर रहे हैं।
दुर्योधन के इस आरोप से भीष्म पितामह हो गए थे गुस्से में लाल-पीले
दुर्योधन के इस आरोप से भीष्म पितामह क्रोधित हो गए। उन्होंने सोने के पांच तीर लिए और उन्हें मंत्रों से सिद्ध किया, यह कहते हुए कि अगले दिन वे इन तीरों से पांचों पांडवों का वध कर देंगे। लेकिन, दुर्योधन के मन में संदेह था, इसलिए उसने इन तीरों को खुद के पास सुरक्षित रखने का निर्णय लिया और भीष्म से तीर ले लिए, ताकि सही समय पर वे उसे युद्धभूमि में वापस सौंप सके।
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श्रीकृष्ण को भीष्म पितामह के इन तीरों की जानकारी हो गई, और वे चिंतित हो उठे। उन्होंने अर्जुन को बुलाकर कहा कि वह दुर्योधन से एक पुराना वचन पूरा करवाए। दरअसल, जब पांडव वनवास में थे, तब गंधर्वों के साथ युद्ध में अर्जुन ने दुर्योधन और कौरवों की जान बचाई थी। दुर्योधन ने इस उपकार के बदले अर्जुन को एक वचन दिया था कि वह कभी भी उससे कुछ भी मांग सकता है।
श्रीकृष्ण की सलाह पर अर्जुन ने दुर्योधन के पास जाकर अपने वचन का स्मरण कराया और भीष्म पितामह के सिद्ध तीर मांग लिए। क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए, दुर्योधन ने अर्जुन को तीर सौंप दिए, भले ही वह जानता था कि इससे कौरवों की हार निश्चित हो जाएगी।
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इस प्रकार अर्जुन ने कर लिया था तीर प्राप्त
इस प्रकार अर्जुन ने वह तीर प्राप्त कर लिया, जिनसे पांडवों की निश्चित मृत्यु टल गई। इसके बाद युद्ध का परिदृश्य बदल गया और अंततः पांडवों ने सभी कौरव योद्धाओं को पराजित कर महाभारत के युद्ध में विजय प्राप्त की। इस कथा में दुर्योधन के संदेह और अर्जुन के चतुराई भरे निर्णय ने इतिहास की धारा को बदल दिया। यह घटना इस बात का प्रतीक है कि किस तरह एक छोटी सी घटना भी बड़े परिणामों का कारण बन सकती है।
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