India News (इंडिया न्यूज़), Eid-Milad-Un-Nabi: आज देश और दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में ईद-मिलाद-उन नबी का त्यौहार मनाया जा रहा है। ये मुसलमानों का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। इस दिन इस्लाम धर्म के आखिरी पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब का जन्म हुआ था। सूफी और बरेलवी इसे रबी-उल-अव्वल की 12वीं तारीख को मनाते है तो वहीं शिया मुस्लमान इसे इस महीने की 17 तारीख को मानते हैं। इसको लेकर इस्लाम के अलग-अलग फिरकों में भेदभाव भी है। अगर हम भारत की बात करें तो यहां बरेलवी और देवबंदी मुसलमान है। बरेलवी मुसलमानों में इस त्यौहार को मनाने की परम्परा है। इस दिन लोग अपने घरों में कुछ भी मीठा बनाकर फातिहा दिलाते हैं और उसे लोगों में बांटते हैं।
देवबंदी मुसलमान इसे क्यों नहीं मनाते हैं?
मुसलमानों में अलग-अलग फिरके हैं। जैसे मुख्य रूप से शिया और सुन्नी है। इसमें से सुन्नी में देवबंदी और बरेलवी दो अलग-अलग फिरका है। देवबंदी मुसलमान इसे नहीं मनाते हैं। उनका कहना है कि इसको लेकर हमारे नबी ने कुछ नहीं कहा है। देवबंदी फिरका को मानने वाले मौलानाओं का कहना है कि जब हमारे नबी ने हर चीज का तरीका बताया है तो क्या वो ईद मिलादुन्नबी मनाने के बारे में नहीं कहते। इस फिरके को मानने वाले लोग इसे सिर्क अर्थात गुनाह मानते हैं। वो अपने मानने वालों को इस दिन जुलूस निकालने की इजाजत नहीं देते हैं।
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कब से निकाला जाता है ये जुलूस?
ईद-मिलाद-उन-नबी को मनाने की परम्परा 11वीं शताब्दी के दौरान अधिक लोकप्रिय हुआ था। उस दौरान आम जनता के बजाय केवल क्षेत्र में शिया मुसलमानों की तत्कालीन शासक जनजाति ही ये त्योहार मनाती थी।ईद-ए-मिलाद-उन-नबी 12वीं शताब्दी में ही सीरिया, मोरक्को, तुर्की और स्पेन में मनाया जाने लगा। इसके बाद जल्द ही कुछ सुन्नी मुस्लिम संप्रदायों ने भी इस दिन को मनाना शुरू कर दिया। आज के दिन मुस्लिम अपने घरों को सजाते हैं। जुलूस निकाला जाता है। जो शहर के प्रमुख जगहों से होकर गुजरती है। फिर जुलूस के खत्म होने पर सभी लोग एक जगह इकट्ठा होते हैं। फिर मिलाद होती है। जहां मौलाना द्वारा तकरीर दिया जाता है। फिर दुआ के बाद इस जुलूस का अंत हो जाता है। फिर सभी अपने-अपने घर को चले जाते हैं।