India News (इंडिया न्यूज), Ganga River: वाराणसी, जिसे काशी के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में मोक्ष की नगरी मानी जाती है। गंगा नदी के किनारे बसे इस प्राचीन शहर में एक अनोखा नजारा देखने को मिलता है, यहां गंगा का प्रवाह अन्य स्थानों के विपरीत उलटी दिशा में होता है। इस रहस्यमयी घटना के पीछे पौराणिक कथा और भौगोलिक कारण दोनों ही बताए जाते हैं।
क्या है पौराणिक कथा?
मान्यता के अनुसार, जब गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित हुईं, तो उनका प्रवाह अत्यंत तेज था। काशी के निकट बहते हुए गंगा की तेज धारा में भगवान दत्तात्रेय का कमंडल और कुशा आसन बह गया। जब भगवान दत्तात्रेय को इसका पता चला, तो उन्होंने गंगा से इसे लौटाने का आग्रह किया। गंगा ने अपनी भूल स्वीकार की और उनके कमंडल और आसन को वापस कर दिया। इसके बाद, भगवान दत्तात्रेय के सम्मान में गंगा ने अपनी धारा को मोड़ लिया और काशी में उलटी दिशा में बहने लगीं।
भौगोलिक कारण
इस अनोखी घटना का एक वैज्ञानिक कारण भी है। काशी में गंगा का प्रवाह धनुष के आकार का है। जब नदी इस क्षेत्र में प्रवेश करती है, तो वह पहले पूर्व की ओर मुड़ती है और फिर पूर्वोत्तर दिशा की ओर बहती है। इस मोड़ के कारण यहां प्रवाह उलटा प्रतीत होता है। हालांकि, तकनीकी रूप से यह एक प्राकृतिक जलधारा का परिवर्तन है, लेकिन स्थानीय लोग इसे आस्था और दिव्यता से जोड़ते हैं।
आस्था और चमत्कार का संगम
गंगा का यह अनोखा प्रवाह वाराणसी की आध्यात्मिकता को और भी गहरा बनाता है। भक्त इसे एक चमत्कार मानते हैं और इसे देखने के लिए दूर-दूर से आते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस क्षेत्र में स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। चाहे इसे पौराणिक कथा माने या भौगोलिक तथ्य, काशी में गंगा का उलटा प्रवाह लोगों के लिए आस्था, विज्ञान और चमत्कार का अद्भुत संगम बना हुआ है।