India News(इंडिया न्यूज), Hindu Mythology: हिंदू धर्म के अनुसार इस संसार में जन्म लेने वाला प्रत्येक जीव एक न एक दिन मृत्यु को प्राप्त होता है, इसलिए पृथ्वी को ‘मृत्युलोक’ कहा जाता है। लेकिन पौराणिक ग्रंथों में ऐसे सात महापुरुषों का वर्णन मिलता है, जिन्हें अमरत्व का वरदान प्राप्त हुआ है। ये दिव्य पुरुष किसी न किसी विशेष वरदान, श्राप, तपस्या या वचन के कारण आज भी जीवित हैं और इस सृष्टि में मौजूद हैं। ये सभी किसी न किसी रूप में धर्म, भक्ति और शक्ति के प्रतीक हैं। आइए जानते हैं इन सात चिरंजीवियों के बारे में, जिनका उल्लेख हिंदू धर्मग्रंथों में मिलता है।

भगवान परशुराम

भगवान परशुराम, भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं। इन्हें अमरत्व का वरदान प्राप्त है और इनका उल्लेख सतयुग, त्रेतायुग और द्वापरयुग—तीनों युगों में मिलता है। कहा जाता है कि भगवान शिव से वरदानस्वरूप इन्हें एक दिव्य फरसा प्राप्त हुआ, जिससे इनका नाम ‘परशुराम’ पड़ा। अपने पराक्रम से इन्होंने 21 बार पृथ्वी को क्षत्रियों से विहीन कर दिया था। इनका जन्म वैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ था, जिसे ‘अक्षय तृतीया’ के रूप में जाना जाता है। मान्यता है कि कलियुग में भी वे महेंद्र पर्वत पर तपस्या कर रहे हैं और जब भगवान विष्णु का कल्कि अवतार होगा, तब वे पुनः प्रकट होंगे।

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हनुमान जी

हनुमान जी, भगवान शिव के रुद्रावतार माने जाते हैं। त्रेतायुग में भगवान श्रीराम की सेवा करने वाले हनुमान जी को अमरता का वरदान स्वयं श्रीराम ने दिया था। जब भगवान श्रीराम अपने धाम लौटने लगे, तब हनुमान जी ने उनसे पृथ्वी पर रहने की अनुमति मांगी। श्रीराम ने उन्हें यह वरदान दिया कि जब तक इस धरती पर उनका नाम रहेगा, तब तक हनुमान जी भी यहां विद्यमान रहेंगे। महाभारत काल में भी वे भीमसेन को दर्शन देकर अपनी शक्ति का प्रमाण दे चुके हैं। आज भी कई स्थानों पर उनके चमत्कारिक दर्शन होने की कथाएं सुनने को मिलती हैं।

विभीषण

रावण के छोटे भाई विभीषण ने राम-रावण युद्ध में धर्म का साथ दिया और श्रीराम के पक्ष में आ गए। रावण के अंत के बाद श्रीराम ने उन्हें लंका का राजा बनाया और धर्मानुसार शासन करने का आदेश दिया। विभीषण को यह वरदान मिला कि जब तक धरती पर श्रीराम का नाम रहेगा, तब तक वे भी जीवित रहेंगे और धर्म की रक्षा करते रहेंगे।

राजा बलि

राजा बलि, असुर कुल के एक महान शासक थे, जिन्होंने अपने पराक्रम से तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था। देवताओं के अनुरोध पर भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर उनसे तीन पग भूमि दान में मांगी और अपने विराट स्वरूप में धरती, आकाश और पाताल को नाप लिया। इस प्रकार राजा बलि को पाताल लोक का शासक बना दिया गया और अमरत्व का वरदान दिया गया। मान्यता है कि प्रत्येक वर्ष भगवान विष्णु स्वयं चार माह के लिए बैकुंठ छोड़कर पाताल में राजा बलि को दर्शन देने आते हैं।

वेदव्यास

महर्षि वेदव्यास को भगवान विष्णु का अंशावतार माना जाता है। उन्होंने महाभारत, श्रीमद्भागवत महापुराण और अनेकों अन्य ग्रंथों की रचना की। इनका वास्तविक नाम ‘कृष्ण द्वैपायन’ था, लेकिन वेदों के विभाजन के कारण इन्हें वेदव्यास कहा जाने लगा। श्रीमद्भागवत में वर्णित है कि भगवान श्रीकृष्ण ने अपने बैकुंठ जाने से पहले अपनी दिव्य लीलाओं को वेदव्यास द्वारा रचित ग्रंथों में समाहित कर दिया, जिससे वे सदा के लिए अमर हो गए।

अश्वत्थामा

अश्वत्थामा, महाभारत के महान योद्धा और गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र थे। महाभारत युद्ध के अंतिम चरण में, क्रोध में आकर उन्होंने पांडवों के वंश को समाप्त करने के लिए अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित पर ब्रह्मास्त्र चला दिया। श्रीकृष्ण ने उनके इस अधर्म के कारण उन्हें श्राप दिया कि वे अनंत काल तक पृथ्वी पर भटकते रहेंगे और कोई भी उन्हें न तो मार पाएगा, न ही वे मृत्यु को प्राप्त होंगे। कहा जाता है कि आज भी वे पृथ्वी पर कहीं न कहीं भटक रहे हैं और कई स्थानों पर उनके देखे जाने की कथाएं सुनाई जाती हैं।

कृपाचार्य

कृपाचार्य, कौरव और पांडवों दोनों के गुरु थे और सप्तऋषियों में से एक माने जाते हैं। वे महर्षि गौतम के पुत्र थे और द्रोणाचार्य के साले भी थे। महाभारत युद्ध के दौरान उन्होंने निष्पक्षता बनाए रखी और अंत तक जीवित रहे। उनके तप और विद्या के प्रभाव से उन्हें अमरत्व का वरदान प्राप्त हुआ।

क्या सच में ये सात अमर पुरुष आज भी जीवित?

धार्मिक मान्यताओं और पुराणों के अनुसार, ये सात चिरंजीवी आज भी पृथ्वी पर किसी न किसी रूप में विद्यमान हैं। कई स्थानों पर अश्वत्थामा के दर्शन की घटनाएं सुनने को मिलती हैं, तो वहीं हनुमान जी की चमत्कारी उपस्थिति भी भक्तों को महसूस होती है। परशुराम जी को लेकर मान्यता है कि वे महेंद्र पर्वत पर तपस्या कर रहे हैं और कल्कि अवतार के समय प्रकट होंगे। हालांकि, आधुनिक विज्ञान इन कथाओं को कल्पना मानता है, लेकिन हिंदू धर्मग्रंथों और भक्तों की आस्था के अनुसार, ये सात चिरंजीवी आज भी इस संसार में मौजूद हैं और समय आने पर अपने दिव्य स्वरूप में प्रकट होंगे।

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