India News (इंडिया न्यूज), Hindu Calendar Vikram Samvat: हर धर्म और संस्कृति का अपना एक विशिष्ट कैलेंडर होता है, जिसके आधार पर धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियां संचालित होती हैं। हिंदू धर्म का कैलेंडर “विक्रम संवत” इसी परंपरा का अभिन्न हिस्सा है। इस कैलेंडर का उपयोग भारत, नेपाल और अन्य हिंदू बहुल क्षेत्रों में प्राचीन काल से होता आ रहा है। विक्रम संवत न केवल समय को मापने का एक साधन है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी है।

विक्रम संवत का निर्माण

विक्रम संवत कैलेंडर का निर्माण एक प्रसिद्ध भारतीय संत, योगी और दार्शनिक योगी भृतहरि ने किया था। योगी भृतहरि राजा विक्रमादित्य के बड़े भाई थे। यह कैलेंडर उनके दार्शनिक ज्ञान और खगोल विज्ञान में महारत का प्रतीक है।

योगी भृतहरि को संस्कृत साहित्य में भी अद्वितीय स्थान प्राप्त है। उनके द्वारा रचित “भृतहरि शतक” (नीति शतक, वैराग्य शतक और श्रृंगार शतक) भारतीय साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं। इन रचनाओं में जीवन के विभिन्न पहलुओं पर उनके गहन चिंतन और अनुभव की झलक मिलती है।

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विक्रम संवत की उत्पत्ति की कहानी

ऐसा माना जाता है कि विक्रम संवत की शुरुआत 57 ईसा पूर्व में हुई थी। यह कैलेंडर राजा विक्रमादित्य की एक बड़ी विजय के उपलक्ष्य में प्रारंभ किया गया था।

किंवदंतियों के अनुसार, उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने शक्तिशाली शकों को पराजित किया था। इस विजय के उपलक्ष्य में उन्होंने विक्रम संवत के रूप में एक नए युग की शुरुआत की। हालांकि, कैलेंडर का औपचारिक निर्माण उनके बड़े भाई योगी भृतहरि ने किया। उन्होंने इसे खगोलीय गणनाओं और हिंदू धार्मिक परंपराओं के आधार पर संरचित किया।

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विक्रम संवत की विशेषताएं

विक्रम संवत एक चंद्र-सौर कैलेंडर है, जिसका अर्थ है कि इसमें चंद्र और सौर गणनाओं का समन्वय किया जाता है।

  1. मास और वर्ष: विक्रम संवत में 12 चंद्र मास होते हैं। हर तीसरे वर्ष में एक अतिरिक्त महीना जोड़ा जाता है जिसे “अधिक मास” या “पुरुषोत्तम मास” कहा जाता है।
  2. त्योहारों का निर्धारण: हिंदू धर्म के लगभग सभी त्योहार जैसे होली, दीपावली, दशहरा आदि विक्रम संवत के अनुसार मनाए जाते हैं।
  3. सटीक खगोलीय गणना: इस कैलेंडर में समय की सटीक गणना के लिए खगोलीय सिद्धांतों का उपयोग किया गया है।

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योगी भृतहरि का योगदान

योगी भृतहरि के जीवन में गहरी आध्यात्मिकता और वैराग्य की झलक मिलती है। उनका जीवन राजसी वैभव और संत परंपरा के बीच एक अद्वितीय संतुलन का उदाहरण है। उनके साहित्यिक और दार्शनिक योगदान ने भारतीय संस्कृति को समृद्ध किया है।

उनकी कहानी इस बात का प्रमाण है कि कैसे गहन वैचारिकता और आत्मानुभव से सांस्कृतिक विरासत को समृद्ध किया जा सकता है। विक्रम संवत का निर्माण उनके गहन खगोलीय ज्ञान और आध्यात्मिक दृष्टि का परिणाम है।

विक्रम संवत केवल एक कैलेंडर नहीं है, बल्कि यह भारतीय परंपरा, खगोल विज्ञान और धार्मिक मान्यताओं का अद्वितीय समन्वय है। योगी भृतहरि और राजा विक्रमादित्य की यह महान देन आज भी भारतीय संस्कृति और त्योहारों का अभिन्न हिस्सा बनी हुई है।

यह कैलेंडर न केवल समय की गणना करता है, बल्कि यह हमें अपनी जड़ों से जोड़े रखने और अपने गौरवशाली इतिहास की याद दिलाने का भी माध्यम है।

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