India News (इंडिया न्यूज), Holashtak 2025: हिंदू धर्म में होलाष्टक का विशेष महत्व है, लेकिन इसे अशुभ काल माना गया है। होलाष्टक की अवधि आठ दिनों की होती है, जो होली से ठीक आठ दिन पहले शुरू होती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, होलाष्टक फाल्गुन माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से प्रारंभ होता है और होलिका दहन के साथ समाप्त होता है। इस दौरान शुभ और मांगलिक कार्यों को करना वर्जित होता है।

पौराणिक कथा से जुड़ा होलाष्टक का महत्व

पौराणिक कथाओं के अनुसार, दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद को भगवान विष्णु की भक्ति करने पर अनेक यातनाएं दी थीं। इन यातनाओं का क्रम होली से आठ दिन पहले शुरू हुआ। हिरण्यकश्यप ने अंततः अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को अग्नि में लेकर बैठ जाए, क्योंकि होलिका को वरदान प्राप्त था कि अग्नि उसे नहीं जलाएगी। लेकिन होलिका स्वयं अग्नि में जलकर भस्म हो गई, और प्रह्लाद की विजय हुई।

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इस घटना के प्रतीक स्वरूप, होलाष्टक की अवधि को अशुभ माना जाता है, क्योंकि यह काल संघर्ष और यातनाओं का प्रतीक है। होलाष्टक के समापन के बाद होलिका दहन किया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है।

होलाष्टक में अशुभ कार्य

होलाष्टक के दौरान कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य जैसे:

  • विवाह
  • गृह प्रवेश
  • मुंडन
  • नया कारोबार शुरू करना
  • नया घर खरीदना
  • निर्माण कार्य प्रारंभ करना
  • सोना-चांदी खरीदना

इन कार्यों को वर्जित माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस अवधि में किए गए कार्य सफल होने के बजाय विफल हो सकते हैं।

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होलाष्टक और ग्रहों की स्थिति

होलाष्टक के आठ दिनों में आठ ग्रह उग्र अवस्था में रहते हैं। इन ग्रहों का विवरण निम्नलिखित है:

  1. पहला दिन: चंद्रमा उग्र अवस्था में रहता है।
  2. दूसरा दिन: सूर्य की उग्रता का प्रभाव रहता है।
  3. तीसरा दिन: शनि देव, जो न्याय और कर्मफल के दाता हैं।
  4. चौथा दिन: शुक्र ग्रह।
  5. पांचवां दिन: गुरु बृहस्पति।
  6. छठा दिन: बुध ग्रह।
  7. सातवां दिन: मंगल ग्रह।
  8. आठवां दिन: राहु, जो पापी ग्रह माना जाता है।

इन ग्रहों की उग्रता के कारण होलाष्टक का काल कष्टकारी माना गया है। इस समय किए गए कार्यों में विघ्न और बाधाएं उत्पन्न हो सकती हैं।

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होलाष्टक में करने योग्य कार्य

होलाष्टक की अवधि में धार्मिक कार्य करना अत्यंत लाभकारी माना गया है। इस दौरान निम्नलिखित कार्य किए जा सकते हैं:

  1. भगवान विष्णु और शिव जी की पूजा: भगवान विष्णु और शिव जी की अराधना और व्रत करना शुभ माना जाता है।
  2. जप और तप: महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें। इससे मानसिक शांति और कष्टों से मुक्ति मिलती है।
  3. दान-पुण्य: गरीबों को अन्न, वस्त्र और धन का दान करें।
  4. ध्यान और साधना: आत्मिक शुद्धि के लिए ध्यान और साधना का अभ्यास करें।

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होलाष्टक का धार्मिक और सामाजिक संदेश

होलाष्टक हमें यह सिखाता है कि विपरीत परिस्थितियों में धैर्य और विश्वास बनाए रखना चाहिए। प्रह्लाद की भक्ति और विश्वास ने उन्हें हर विपत्ति से बचाया। यह काल आत्मचिंतन, पूजा और तपस्या के लिए उपयुक्त है।

होलाष्टक के समापन के साथ ही होलिका दहन की परंपरा शुरू होती है, जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। अतः इस काल में शुभ कार्यों से बचते हुए धार्मिक कार्यों पर ध्यान केंद्रित करें और अपने जीवन को सकारात्मक दिशा में ले जाएं।

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