India News (इंडिया न्यूज),Holi 2025: होली का मतलब होता है, होलिका के दहन पर मनाया जाने वाला पर्व और ज़्यादातर लोग होली ऐसे मनाते हैं जैसे होलिका को सम्मानित कर रहे हों। जो कुछ होली के नाम पर होता है उसमें प्रह्लाद तो कहीं नहीं है, उसमें होलिका-ही-होलिका है। लोगों ने यह जो नाम है होली, लगता है इसका कुछ गलत अर्थ कर लिया। उन्हें लगा होली का मतलब है कि आज होलिका माता को याद करना है और उनको प्रेम से श्रद्धांजलि अर्पित करनी है, बेचारी ने अपनी शहादत दी थी आज।
झूठ का साथ नहीं देना यही होली का संदेश
होली का मतलब है कि कोई भी कीमत देनी पड़ जाए और कितना भी ताकतवर हो झूठ, उसका साथ नहीं देना है। हिरण्यकश्यप सिर्फ राजा ही नहीं था, प्रह्लाद का बाप भी था। और प्रह्लाद ने कहा कि तुम चाहे राजा हो, चाहे बाप हो मेरे, तुम्हारा साथ तो नहीं दूँगा। और वो कोई साधारण राजा नहीं था, अगर पौराणिक कथा पर विश्वास करें तो वो वरदान प्राप्त राजा था। कथा कहती है कि उसने वरदान ले लिया था कि दिन में नहीं मरेगा, रात में नहीं मरेगा, अस्त्र से नहीं मरेगा, शस्त्र से नहीं मरेगा, वगैरह-वगैरह; आदमी से नहीं मरेगा, पशु से नहीं मरेगा। बड़ा खतरनाक राजा था। इतना खतरनाक था कि उसने पूरे राज्य में पाबंदी कर दी थी कि, “भई अब कोई किसी सत्य का या ईश्वर वगैरह का नाम नहीं लेगा, मेरी पूजा करो, मेरी।”
प्रह्लाद की अडिग निष्ठा
पर प्रह्लाद ने बोला कि नहीं, नहीं चलेगा। जैसा वो राजा खतरनाक था वैसे ही वो बाप खतरनाक था क्योंकि उसकी ज़बरदस्त एक बहन थी। और बहन के पास कहते हैं कि एक शक्ति थी। कहीं कहा जाता है कि एक दुशाला जैसा था जो अग्नि-रोधी था, फायरप्रूफ, कि वो उसको पहन लेती थी तो वो आग से भी गुजर सकती थी, उसको आग नहीं लगती। और पूरा राज्य मान रहा है राजा साहब की बात, छोटे ने मानने से मना कर दिया। बोला, “मैं तो नहीं मानता!” तो राजा ने कहा कि, “अब अपने हाथों से इसको क्या मारूँ, बुरा लगेगा।” पहले तो उसको बहुत लालच दिए और बहुत डराया धमकाया भी। वो नहीं माना; बोला, “मैं नहीं मानता। आप होंगे मेरे बाप, चाहे आप होंगे राजा, चाहे आप होंगे वरदान प्राप्त, मैं नहीं मानता तो नहीं मानता। मेरे लिए सच ही सच है, सच ही बाप है; कोई बाप सच से बड़ा नहीं होता।”
होलिका का अंत और सत्य की विजय
फिर वो होलिका आई, उसे कहा गया कि इसको न चुपचाप गोद में बैठा करके आग से गुज़र जाओ। तुम्हें तो कुछ नहीं होगा, यह मर जाएगा। कुछ ऐसी व्यवस्था की गई होगी कि लगे कि दुर्घटना हो गई है। अब बुआजी उसको लेकर आग से निकलीं तो कहने वाले कहते हैं कि कुछ ऐसी हवा चली कि बुआ जी ने जो पहन रखा था वो उड़ करके प्रह्लाद पर चला गया। तो प्रह्लाद तो बच गया और बुआ जी जलकर खत्म हो गईं। यह पूरी कहानी कह रही है कि समाज कुछ कहता हो, प्रकृति कुछ कहती हो, परिस्थिति कुछ कहती हो, सत्ता कुछ कहती हो—मुझे करना वही है जो सही है। यह है होली का कुल अर्थ।
हिरण्यकश्यप का अहंकार और उसकी हार
हिरण्यकश्यप को आया गुस्सा। बोल रहा है, “तू बहुत फायरप्रूफ हो रहा है न, तो एक लोहे का खंभा बिलकुल गर्म करा दिया। बोला, तुझे तो आग से कुछ होता नहीं तो यह खंभा है जा लिपट जा इससे।” अब छोटू को डर तो लगा होगा, जो भी हुआ होगा, पर प्रह्लाद बोला, “ठीक है, पर आपको तो नहीं मान लूँगा भगवान।” और फिर कहानी में इस तरह से है कि उसी खंभे से फिर एक जीव प्रकट हुआ जो आधा शेर था, आधा इंसान था। और उस वक्त सूर्यास्त का हो रहा था, जब न दिन था न रात थी, और उसने पकड़ लिया हिरण्यकश्यप को और अपने नाखूनों से मार दिया।
त्योहार का विकृतिकरण—चिकन और मदिरा कहाँ से आए?
इसमें चिकन और दारू कहाँ हैं? इस पूरी कथा का, इस पर्व का चिकन और शराब से क्या संबंध है? बताओ! तुम एक नन्हे बच्चे की सरलता की सफलता का उत्सव मना रहे हो। तुम एक दुर्दांत सम्राट के अहंकार और चालाकी की पराजय का वैभव मना रहे हो, इसमें चिकन और दारू कहाँ से आ गए? त्यौहार बहुत सोच-समझकर, बहुत तरीके से इज़ाद की हुईं विधियाँ हैं। हर त्यौहार आपको कुछ याद दिलाने के लिए आता है। तो त्यौहारों का दिन तो चेतना के विशेष अनुशासन के साथ मनाना होगा न या उस दिन और ज़्यादा लफंगई करनी है? आमतौर पर जितने जानवर नहीं कटते प्रतिदिन उससे कई गुने कट रहे हैं त्यौहार के दिन, यह कौन-सा त्यौहार है? और होली इत्यादि पर तो कभी परंपरा भी नहीं थी यह सब करने की। यह कहाँ से भारत में प्रभाव आ रहे हैं कि अब होली पर और दीवाली पर भी माँस खाना प्रचलित होता जा रहा है? कौन सिखा रहा है हमें यह सब?
भारतीयता पर ग़लत प्रभाव
दारू और माँस सिर्फ दारू और माँस नहीं हैं, वो सब कुछ जिसे भारतीयता आप कह सकते थे, खत्म। वो सब कुछ जिसे आप सनातन कह सकते थे वह खत्म होने की ओर बढ़ रहा है।खत्म, साफ; अब तो दारू और मुर्गा है। होली के दिन भी है, छी! किसी भी दिन नहीं होना चाहिए, चेतना में इतनी सफाई हो कि हत्या का यह कार्यक्रम किसी भी दिन न हो। लेकिन तुमने एक धार्मिक दिन को भी खून बहाने का दिन बना लिया, इससे बुरा क्या हो सकता है?
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