India News (इंडिया न्यूज), Draupadi Snan: महाभारत काल में रानियों के स्नान का महत्व और उससे जुड़े अनुष्ठान उनके जीवन का एक अहम हिस्सा थे। द्रौपदी के स्नान और शुद्धिकरण से जुड़े कई महत्वपूर्ण पहलू महाभारत में वर्णित हैं। इन स्नान अनुष्ठानों का आध्यात्मिक और सामाजिक दोनों दृष्टिकोण से गहरा महत्व था। द्रौपदी जैसी प्रमुख स्त्री पात्रों के स्नान केवल शारीरिक शुद्धता नहीं बल्कि धार्मिक और सामाजिक कर्तव्यों का भी प्रतीक थे।
स्नान की परंपराएं और अनुष्ठान:
अनुष्ठानिक स्नान:
रानियां विशेषकर सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करती थीं। यह सिर्फ स्वच्छता के लिए नहीं बल्कि धार्मिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण माना जाता था। इससे व्यक्ति आध्यात्मिक रूप से शुद्ध और मानसिक रूप से तैयार होता था।
द्रौपदी के स्नान से जुड़ी परंपराएं:
द्रौपदी हस्तिनापुर के पांडेश्वर महादेव मंदिर के पास स्थित पवित्र जलधारा में स्नान करती थीं। यह स्थान अब भी हस्तिनापुर में मौजूद है। वहां वह शिव जी की पूजा भी करती थीं। स्नान से पहले उबटन और सुगंधित लेप लगाने जैसी विशेष परंपराएं भी निभाई जाती थीं।
सुगंधित जल और फूलों का उपयोग:
स्नान के समय सुगंधित जल और फूलों का प्रयोग किया जाता था। खासतौर से रानियों के स्नान के लिए बनाए गए छोटे सरोवर या कुंड में स्नान किया जाता था, जिसमें मंत्रोच्चारण के बीच विशेष तरल पदार्थों का उपयोग किया जाता था।
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अवभृत स्नान का महत्व:
अवभृत स्नान महाभारत काल का एक महत्वपूर्ण वैदिक समारोह था, जिसे सार्वजनिक उत्सव के रूप में मनाया जाता था। इस दौरान कई प्रकार के तरल पदार्थ जैसे दूध, मक्खन, दही, तेल, हल्दी, और केसर का उपयोग किया जाता था। यह एक महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजन था, जिसमें रानियां गहनों और रंगीन वस्त्रों से सजकर भाग लेती थीं।
द्रौपदी से जुड़ी घटना:
महाभारत में एक घटना वर्णित है, जिसमें द्रौपदी अपने स्नान के लिए नदी जा रही थीं। वहां एक ऋषि ने उनके सामने एक अनोखी समस्या रखी, कि उनके वस्त्र चोरी हो गए हैं और वे बाहर नहीं आ सकते। द्रौपदी ने अपनी साड़ी का हिस्सा फाड़कर ऋषि को देने का प्रयास किया, परंतु ऋषि उसे पकड़ नहीं सके। अंततः ऋषि ने द्रौपदी को वरदान दिया कि यदि कोई कभी उनके वस्त्र छीनने की कोशिश करेगा, तो वह असफल रहेगा। यह वही वरदान था जो द्रौपदी के चीर हरण के समय उनके काम आया, जब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें बचाया।
यह घटना द्रौपदी की धार्मिक आस्था, निस्वार्थता, और उनके लिए दिए गए वरदान का प्रतीक है। साथ ही, यह भी दर्शाता है कि महाभारत काल में स्नान और उससे जुड़े अनुष्ठान सिर्फ शारीरिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और नैतिक विकास का हिस्सा थे।