India News (इंडिया न्यूज), Mahabharat Kila Parikshitgarh: मेरठ, पश्चिमी उत्तर प्रदेश की महाभारतकालीन धरती, अपने ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। इस क्षेत्र में स्थित हस्तिनापुर और किला परीक्षितगढ़ को महाभारत काल के अनेक रहस्यों का केंद्र माना जाता है। इन्हीं में से एक है किला परीक्षितगढ़ का श्री श्रृंगी ऋषि आश्रम, जिसे लेकर सदियों से मान्यताएं चली आ रही हैं। ऐसी किदवंती है कि कलयुग का आरंभ इसी स्थान से हुआ था।
कलयुग की शुरुआत का स्थल: श्री श्रृंगी ऋषि आश्रम
एक्सपर्ट और असिस्टेंट प्रोफेसर प्रियंक भारती ने बताया कि किला परीक्षितगढ़ का नाम अभिमन्यु के पुत्र राजा परीक्षित के नाम पर रखा गया है। यह स्थान राजा परीक्षित का राज्य क्षेत्र हुआ करता था, और यहीं पर श्रृंगी ऋषि का प्राचीन आश्रम स्थित है। इस आश्रम से जुड़ी मान्यता है कि कलयुग की शुरुआत यहीं से हुई थी।
कलयुग का आगमन: एक ऐतिहासिक घटना
कहा जाता है कि सरस्वती नदी के तट पर शिकार खेलते समय राजा परीक्षित को कलयुग ने पहली बार दर्शन दिए। कलयुग ने राजा से स्वर्ग में स्थान मांगते हुए उनके मुकुट में प्रवेश किया। इसके बाद राजा परीक्षित की बुद्धि पर कलयुग का प्रभाव पड़ने लगा।
राजा परीक्षित और ऋषि शमीक का विवाद
एक घटना के अनुसार, जब राजा परीक्षित को प्यास लगी, तो वे श्रृंगी ऋषि आश्रम पहुंचे। वहां ऋषि शमीक तपस्या में लीन थे। राजा परीक्षित ने उनसे जल मांगा, लेकिन ऋषि की तपस्या भंग न हो सकी। क्रोधित होकर राजा परीक्षित ने एक मृत सांप उठाकर ऋषि शमीक के गले में डाल दिया। यह देख ऋषि शमीक के पुत्र श्रृंगी ऋषि ने राजा परीक्षित को श्राप दिया कि सात दिनों के भीतर उन्हें सर्पदंश से मृत्यु प्राप्त होगी।
राजा परीक्षित की मृत्यु
श्राप के अनुसार, अनेक प्रयासों के बावजूद राजा परीक्षित को नागराज तक्षक ने डस लिया, जिससे उनकी मृत्यु हो गई। यह घटना महाभारतकालीन इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और आज भी इस क्षेत्र में इससे जुड़े प्रतीक चिह्न देखे जा सकते हैं।
जनमेजय का शर्प यज्ञ
अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए राजा जनमेजय ने विशाल शर्प यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में सभी नागों को बलि दी जा रही थी। अंत में, नागराज तक्षक और वासुकी की बारी आई। जब नागराज वासुकी ने देवी-देवताओं से सहायता मांगी, तब भगवान इंद्र और ऋषि आस्तिक मुनि ने जनमेजय को यज्ञ रोकने के लिए मनाया। इसके बाद यज्ञ को समाप्त किया गया और नागराज तक्षक और वासुकी की जान बचाई गई।
आश्रम में आज भी मौजूद हैं ऐतिहासिक चिह्न
कहा जाता है कि शर्प यज्ञ के निशान आज भी श्रृंगी ऋषि आश्रम में मौजूद हैं। ये चिह्न महाभारतकालीन घटनाओं की जीवंत गाथा को प्रस्तुत करते हैं।
धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व
किला परीक्षितगढ़ और श्रृंगी ऋषि आश्रम न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि यह स्थान इतिहास के उन अध्यायों को भी जीवंत करता है, जो महाभारत काल की घटनाओं से जुड़े हुए हैं। यहां आने वाले श्रद्धालु और इतिहास प्रेमी इन स्थलों की दिव्यता और प्राचीनता का अनुभव करते हैं।
मेरठ का यह क्षेत्र आज भी महाभारतकालीन इतिहास और रहस्यों के शोधकर्ताओं के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।