Pitru Paksha: प्राचीन काल से ही पितृ पक्ष का अपना विशेष महत्व रहा है। इसकी जानकारी हमें रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों में भी मिलती है। भारतीय परंपरा के अनुसार हिंदू रीति रिवाजों में सोलह संस्कारों का वर्णन मिलता है। इनकी मनीषियों द्वारा विस्तृत जानकारी भी दी जाती है। जन्म से लेकर मृत्यु तक इन संस्कारों का पालन करना पड़ता है। पितृ पक्ष ऐसा अवसर है, जिसमें आप सभी ऋणों से मुक्ति प्राप्तकर लक्ष्मीउपासना कर सकते हैं। इसका सीधी अर्थ ये है कि अगर आप अपने पितरों को प्रसन्न कर लेते हैं तो वे आप पर धन वर्षा करते हैं।

During Pitru Paksha Baby Birth Is Good Or Bad? पितृ पक्ष में जन्म लेने वाले शिशु कैसे होते हैं?

शास्त्रों के अनुसार Pitru Paksha में पिंडदान का अधिकार किसको?

हमारे ग्रंथों में उल्लेख है कि जिस भी जीव का मनुष्य योनी में जन्म होता है, वह जन्म लेते ही तीन ऋणों युक्त हो जाता है। इसमें सबसे पहला ऋण होता है देव ऋण। दूसरा है ऋषि ऋण और तीसरा है पितृ ऋण। हमारे धार्मिक ग्रंथों के अनुसार जो भी मनुष्य इन तीनों ऋणों को नहीं उतारता है वह दुखी रहता है। इन्हें कैसे उतारा जा सकता है इसका उल्लेख भी ग्रंथों में है।

सबसे पहले ही देव ऋण की बात करते हैं। देव ऋण पूजा-अर्चना से उतारा जा सकता है। जो मनुष्य दैनिक रूप से पूजा-अर्चना नहीं करता है, उसके पास कभी भी लक्ष्मी नहीं रहती। ऐसे ही ऋषि ऋण उतारने के लिए वेदों और शास्त्रों का प्रचार और प्रसार करना जरूरी होता है। इसके बाद बारी आती है पितृ ऋण की। शास्त्रों के अनुसार पितृ पक्ष में हम यह ऋण उतार सकते हैं।

जानें Pitru Paksha में श्राद्ध करने का सही तरीका

पितृ पक्ष वास्तव में पितरों के प्रति आभार प्रकट करने का अवसर है। इस पक्ष को महालय भी कहा जाता है और इसी पक्ष में पितरों के निमित्त श्राद्ध आदि किए जाते हैं।इसे सम्मान और श्रद्धा के साथ मनाना चाहिए। आपको बता दें कि हर वर्ष भाद्रपद की पूर्णिमा से लेकर आश्विन के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक यानी कुल 15 दिनों की अवधि में पितृपक्ष के सभी शास्त्रोक्त कर्म संपन्न किए जाते हैं।

मोक्ष और लक्ष्मी उपासना के लिए सर्वश्रेष्ठ है Pitru Paksha

स्कन्द पुराण में कहा गया है कि जो श्रद्धा के साथ पितरों के निमित्त दिया जाए उसे श्राद्ध कहा जाता है। जल, तिल, चावल, जौ और कुश पिंड बनाकर या केवल सांकल्पिक विधि से उनका श्राद्ध करना, गौ ग्रास निकालना तथा उनके निमित्त ब्राह्मणों को भोजन करा देने से पितर प्रसन्न होते हैं और उनकी प्रसन्नता ही पितृ ऋण से मुक्ति दिला देती है। इस दिन पितरों के लिए श्राद्ध का अनुष्ठान करवाने वाले ब्राह्मण को श्राद्ध आदि के बाद भोजन व यथोचित दक्षिणा देकर आशीर्वाद ग्रहण करना चाहिए।

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