India News (इंडिया न्यूज), Dhritarashtra In Mahabharat: हस्तिनापुर के राजा धृतराष्ट्र का नाम महाभारत की कहानियों में प्रमुख स्थान रखता है। वे एक अंधे राजा के रूप में प्रसिद्ध हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि वे जन्म से ही अंधे थे या इसका कारण कुछ और था? धृतराष्ट्र के अंधेपन की कहानी एक पूर्वजन्म के श्राप से जुड़ी हुई है, जो उनके पापों का परिणाम था। आइए जानते हैं इस रहस्यमय कथा के पीछे की पूरी कहानी।

धृतराष्ट्र के पिछले जन्म की कथा

धृतराष्ट्र के अंधेपन का कारण उनके पिछले जन्म के कर्मों में छिपा हुआ है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, धृतराष्ट्र अपने पिछले जन्म में एक निर्दयी और क्रूर राजा थे। उनका राज एक बार शिकार पर निकले समय एक दुखद घटना के कारण काला हो गया।

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एक दिन, शिकार करते समय धृतराष्ट्र की नजर एक नदी में अपने बच्चों के साथ तैर रहे हंस पर पड़ी। हंस की सुंदरता और निर्दोषता ने उन्हें प्रेरित किया कि वे उसे और उसके बच्चों को अपने शिकार का लक्ष्य बनाएं। उन्होंने निर्दयी आदेश दिया कि हंस की दोनों आंखें फोड़ दी जाएं और उसके बच्चों को मार दिया जाए। यह आदेश हंस के लिए न केवल शारीरिक रूप से अत्यंत दर्दनाक था, बल्कि यह उसकी आत्मा को भी गहरा आघात पहुंचाने वाला था।

श्राप का परिणाम

धृतराष्ट्र के इस क्रूर कृत्य का परिणाम उनके अगले जन्म में भुगतना पड़ा। उनके पिछले जन्म के कर्मों की सजा के रूप में, वे इस जन्म में जन्म से ही अंधे पैदा हुए। यह अंधापन उनके पिछले जन्म के पापों की सजा थी, जो उनके द्वारा किए गए अन्याय और निर्दयता का प्रतिशोध था।

धृतराष्ट्र के बच्चों की मृत्यु भी इस श्राप की एक भयानक परिणति थी। जिस प्रकार उन्होंने हंस के बच्चों को मारने का आदेश दिया था, ठीक उसी प्रकार उनके बच्चों की भी मृत्यु हुई। यह सजा न केवल उनकी दयालुता की कमी का प्रतीक थी बल्कि उनके कर्मों के लिए उनके सच्चे दंड का भी प्रतीक था।

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धृतराष्ट्र की क्षमताएँ और उनके परिवार

धृतराष्ट्र, अपने अंधेपन के बावजूद, कई अन्य क्षेत्रों में सक्षम और प्रभावशाली थे। उन्हें बलविद्या में पांडू और विदुर से अधिक सक्षम माना जाता था। जबकि पांडू धनुर्विद्या में माहिर थे और विदुर धर्म और नीति के ज्ञान में अत्यंत परांगत थे, धृतराष्ट्र ने अपने अंधेपन के बावजूद भी कई महत्वपूर्ण राजनीतिक और शाही कार्यों को संभाला।

धृतराष्ट्र का जीवन और उनके अंधेपन की कहानी हमें एक महत्वपूर्ण नैतिक शिक्षा देती है कि हमारे कर्मों का फल हमें इस जन्म में ही नहीं, बल्कि भविष्य के जन्मों में भी भुगतना पड़ सकता है। यह कथा कर्म और दंड के अनिवार्य सम्बन्ध को स्पष्ट करती है और हमें यह सिखाती है कि हम अपने कर्मों के प्रति सजग रहें, क्योंकि उनका प्रभाव हमारे जीवन को गहराई से प्रभावित कर सकता है।

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