India News (इंडिया न्यूज़), Mahabharat Niyog Pratha: नियोग प्रथा प्राचीन भारतीय समाज में प्रचलित एक सामाजिक और धार्मिक प्रथा थी। इसके अंतर्गत, यदि किसी महिला का पति संतान उत्पन्न करने में असमर्थ हो, अथवा उसकी मृत्यु हो चुकी हो, तो वह परिवार की सहमति से किसी अन्य पुरुष के माध्यम से संतान प्राप्त कर सकती थी। इस प्रथा का मुख्य उद्देश्य परिवार की वंश परंपरा को बनाए रखना था। यह प्रथा केवल संतान प्राप्ति तक सीमित थी और इसका पालन धर्म एवं मर्यादा के साथ किया जाता था।


महाभारत में नियोग प्रथा का उल्लेख

महाभारत जैसे महान ग्रंथों में नियोग प्रथा के उदाहरण मिलते हैं। इस प्रथा के माध्यम से ही हस्तिनापुर के तीन महत्वपूर्ण पात्रों — धृतराष्ट्र, पाण्डु और विदुर का जन्म हुआ था। महर्षि वेदव्यास ने इनका जन्म नियोग विधि से कराया था। इससे यह स्पष्ट होता है कि उस समय इस प्रथा को सामाजिक और धार्मिक मान्यता प्राप्त थी।

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नियोग प्रथा के नियम और मर्यादाएँ

नियोग प्रथा के लिए कड़े नियम और अनुशासन निर्धारित थे। इन नियमों का पालन अनिवार्य था:

  1. केवल संतान प्राप्ति के लिए: इस प्रथा का पालन केवल संतान उत्पन्न करने के उद्देश्य से ही किया जाता था, न कि आनंद के लिए। यह एक धार्मिक कर्तव्य माना जाता था।
  2. सीमित अवसर: पुरुष अपने जीवनकाल में केवल तीन बार ही नियोग का पालन कर सकता था। यह नियम समाज में इस प्रथा के दुरुपयोग को रोकने के लिए बनाया गया था।
  3. धर्म का पालन: नियोग के लिए नियुक्त पुरुष को यह स्पष्ट निर्देश होता था कि वह केवल धर्म का पालन करने के लिए इस कार्य को करेगा। इस प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की व्यक्तिगत इच्छाओं का स्थान नहीं था।
  4. घी का लेप: नियोग के समय पति और नियुक्त पुरुष, दोनों के शरीर पर घी का लेप लगाया जाता था। यह एक प्रतीकात्मक उपाय था ताकि दोनों के मन में वासना न जागृत हो और यह कृत्य पूरी तरह से पवित्र और धर्मसम्मत रहे।
  5. पितृत्व अधिकार: नियोग से उत्पन्न संतान पर केवल महिला और उसके पति का अधिकार होता था। नियोग के लिए नियुक्त पुरुष को उस बच्चे का पिता होने का कोई अधिकार नहीं दिया जाता था।

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नियोग से उत्पन्न संतान की वैधता

नियोग विधि से जन्मे बच्चों को पूर्ण रूप से वैध माना जाता था। समाज में उन्हें वही सम्मान और अधिकार प्राप्त होते थे जो एक वैध संतान को मिलते थे। इस प्रकार, यह प्रथा परिवार और समाज के लिए वंश परंपरा और सामाजिक संतुलन बनाए रखने का एक साधन थी।


सामाजिक और धार्मिक महत्व

नियोग प्रथा भारतीय समाज में एक धार्मिक और सामाजिक समाधान के रूप में स्थापित थी। यह प्रथा उन परिस्थितियों में उपयोगी थी जहाँ परिवार की वंश परंपरा को बनाए रखना आवश्यक हो जाता था। हालांकि, समय के साथ सामाजिक बदलावों और नैतिक मानदंडों में परिवर्तन के कारण यह प्रथा समाप्त हो गई।

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नियोग प्रथा भारतीय समाज की प्राचीन परंपराओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थी। यह समाज की जरूरतों और धार्मिक विश्वासों के आधार पर विकसित हुई थी। हालांकि, आज के संदर्भ में यह प्रथा प्रचलन में नहीं है, लेकिन इसका ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व अति विशिष्ट है। महाभारत जैसे महाकाव्य में इस प्रथा का उल्लेख इस बात का प्रमाण है कि यह उस समय की सामाजिक संरचना का एक अभिन्न अंग थी।

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