India News (इंडिया न्यूज), Islam Dharm: सोमवार सुबह दिल्ली-एनसीआर में भूकंप के जोरदार झटके महसूस किए गए, जिससे पूरे इलाके में अफरा-तफरी मच गई। भूकंप का केंद्र दिल्ली के पास था और इसकी तीव्रता 4.0 रिक्टर स्केल पर मापी गई। हालांकि, इस घटना में किसी भी प्रकार के जान-माल का नुकसान नहीं हुआ। इस दौरान एक अहम सवाल उठा कि अगर नमाज पढ़ते समय भूकंप आए तो क्या हमें नमाज को बीच में छोड़ देना चाहिए या नहीं?
इस सवाल पर इस्लामिक विद्वान मुफ्ती ओसामा नदवी ने स्पष्ट रूप से बताया है कि इस्लामी शरियत के अनुसार, अगर भूकंप के दौरान किसी व्यक्ति को खतरे का अंदेशा हो, तो वह नमाज को बीच में छोड़ सकता है। इसका उद्देश्य जान की सुरक्षा है, क्योंकि इस्लाम में जीवन की हिफाजत को सर्वोपरि माना गया है।
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नमाज के दौरान भूकंप आने पर क्या करना चाहिए?
इस्लामी शरियत में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यदि भूकंप के दौरान व्यक्ति को यह समझ में आए कि उसकी जान को खतरा है, तो उसे नमाज छोड़कर सुरक्षित स्थान की ओर बढ़ना चाहिए। अगर भूकंप के कारण किसी प्राकृतिक आपदा का डर हो, तो नमाज जारी रखना सही नहीं होगा, क्योंकि इसका परिणाम जान की हानि हो सकता है। इस स्थिति में, अगर व्यक्ति नमाज जारी रखता है और उसे कोई नुकसान होता है तो उसे गुनाहगार माना जाएगा, क्योंकि इस्लाम में खुद को मुसीबत में डालने की मनाही है।
इसके अतिरिक्त, अगर नमाज के दौरान कोई दूसरी प्राकृतिक आपदा, जैसे आग लगना या बाढ़ आना, घटित होती है, तो भी व्यक्ति को अपनी जान की सुरक्षा को प्राथमिकता देनी चाहिए और नमाज को बीच में छोड़ देना चाहिए। नमाज को बाद में कजा के रूप में अदा किया जा सकता है।
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इस्लाम में जान की हिफाजत की अहमियत
इस्लाम में जीवन की सुरक्षा को बहुत अधिक महत्व दिया गया है। अगर किसी व्यक्ति को अपनी जान का खतरा महसूस हो रहा हो, तो उसे अपनी जान बचाने के लिए नमाज को बीच में छोड़ने की अनुमति दी जाती है। इस्लामिक शिक्षाओं के अनुसार, जब भी कोई भूकंप या प्राकृतिक आपदा होती है, तो यह आवश्यक है कि लोग अपनी जान की रक्षा के लिए उचित कदम उठाएं।
भूकंप के दौरान अल्लाह से दुआ करें
भूकंप या अन्य कुदरती आपदाओं के दौरान हर मुसलमान को अल्लाह से दुआ करनी चाहिए। पैगंबर मोहम्मद साहब भी इस प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं के दौरान अल्लाह से रहम की दुआ करते थे। इस समय, इंसान को अपनी हिफाजत के लिए अल्लाह से प्रार्थना करनी चाहिए और दो रकात नफिल नमाज पढ़नी चाहिए।
इसके अलावा, अगर भूकंप या कोई कुदरती आपदा जारी रहती है, तो नमाज पढ़ना वाजिब नहीं है और ना ही उस पर कजा करना आवश्यक है। ऐसे समय में, इंसान को अल्लाह से क्षमा मांगने, उसकी रहमत की प्रार्थना करने और भलाई की दुआ करने की आवश्यकता है।
इस्लाम में नमाज के दौरान भूकंप या किसी अन्य प्राकृतिक आपदा आने पर, अगर किसी व्यक्ति को अपनी जान का खतरा महसूस हो, तो उसे नमाज को बीच में छोड़ने और अपनी सुरक्षा के लिए कदम उठाने की अनुमति दी जाती है। इस्लाम में जान की सुरक्षा सबसे महत्वपूर्ण है, और इस स्थिति में नमाज को छोड़कर बचाव के लिए प्रयास करना जायज है।