India News (इंडिया न्यूज), Story of Karmanasha River: भारत में कई नदियाँ पवित्र मानी जाती हैं, जिनमें गंगा, यमुनाजी, सरस्वती और नर्मदा प्रमुख हैं। इन नदियों के जल को धार्मिक दृष्टि से अत्यधिक पुण्यकारी माना जाता है। लेकिन आज हम आपको एक ऐसी नदी के बारे में बताएंगे, जिसके पानी को छूने से संचित सारे पुण्य नष्ट हो जाते हैं और गंगाजल का भी असर खत्म हो जाता है। यह नदी है कर्मनाशा नदी, जो उत्तर प्रदेश और बिहार के बीच बहती है।
कर्मनाशा नदी का प्रभाव
कर्मनाशा नदी का नाम ही इसके प्रभाव को व्यक्त करता है। “कर्मनाशा” शब्द का मतलब है कर्मों का नाश करने वाली। मान्यता है कि इस नदी के पानी से छूने भर से न केवल पुण्य कर्म समाप्त हो जाते हैं, बल्कि गंगाजल भी इसका संपर्क पाकर खराब हो जाता है। गंगाजल को पवित्र और शुद्ध माना जाता है, लेकिन कर्मनाशा नदी के पानी के संपर्क में आने से गंगाजल भी सड़ने लगता है।
राजा सत्यव्रत और ऋषि वशिष्ठ की कथा
कर्मनाशा नदी से जुड़ी एक दिलचस्प और धार्मिक मान्यता है। कहा जाता है कि यह नदी राजा सत्यव्रत की लार से बनी थी। राजा सत्यव्रत ने अपने जीवन में कुछ गलत काम किए थे, जिसके कारण उन्हें ऋषि वशिष्ठ ने शाप दिया था और उनके द्वारा उत्पन्न की गई नदी को अपवित्र और श्रापित बना दिया। इस नदी के पानी को छूने से समस्त पुण्य नष्ट हो जाते हैं, क्योंकि यह पानी धार्मिक दृष्टि से अपवित्र माना जाता है।
कर्मनाशा नदी का प्रभाव
कर्मनाशा नदी का पानी इतना अपवित्र माना जाता है कि इससे हरा-भरा पेड़ भी सूख सकता है। यह नदी न केवल शारीरिक रूप से, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक रूप से भी एक नकरात्मक प्रभाव डालने वाली मानी जाती है। इस नदी को पार करने से व्यक्ति के सारे अच्छे कर्म और पुण्य नष्ट हो जाते हैं, जिससे उस व्यक्ति के जीवन में नकारात्मक प्रभाव बढ़ सकते हैं।
कर्मनाशा नदी का पानी न केवल शारीरिक रूप से, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी हानिकारक माना जाता है। इसका जल पवित्र नहीं होता और इससे पुण्य कर्म नष्ट हो जाते हैं। यही कारण है कि इस नदी को “श्रापित नदी” और “कर्मों के नाशक” के रूप में जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस नदी के जल से बचने और इसका संपर्क न करने की सलाह दी जाती है।
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