India News (इंडिया न्यूज़), Jagannath Rath yatra, पूरी: भगवान जगन्नाथ को श्रीकृष्ण का अवतार माना गया है। ओडिशा के पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Rath yatra Facts) भारत के पवित्र धामों में से एक है। पुरी की जगन्नाथ यात्रा पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि से इस रथ यात्रा की शुरुआत होती है. इस दौरान भगवान जगन्नाथ के अलावा उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा रथ पर सवार होकर जनता का हाल जानने निकलते हैं।
- 884 लकड़ियों से बनाई जाती है
- 16 पहिये होते है
- 45 फीट लंबा होता है रथ
पुरी नगरी का भ्रमण करते हुए भगवान जनकपुर के गुण्डिचा मंदिर पहुंचते है। मान्यताओं के अनुसार यहां भगवान विश्राम करते हैं। रथयात्रा में सबसे आगे बड़े भाई, बीच में बहन और अंत में भगवान जगन्नाथ का रथ होता है। यह यात्रा पूरे भारत में एक पर्व की तरह मनाया जाता है।
रथ यात्रा से जुड़ी 5 रोचक बातें-
भगवान जगन्नाथ के रथ में 16 पहिये होते हैं। इसे आमतौर पर 45 फीट ऊंचा रखा जाता है। रथ को बनाने के लिए विशेष प्रकार की लकड़ी यानी नीम की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है। उस लकड़ी का बकायदा जंगल में जाकर मत्रोच्चारण के साथ पूजन होता है, फिर सोने की कुल्हाड़ी से पेड़ों को काटा जाता है जिसके बाद कुल्हाड़ी को भगवान की प्रतिमा से स्पर्श कराया जाता है।
884 पेड़ों की लकड़ियों
रथयात्रा के लिए तीन नये रथ बनाये जाते हैं। एक रथ भगवान जगन्नाथ, दूसरा रथ बहन सुभद्रा और तीसरा रथ भाई बलभद्र के लिए बनाया जाता है। तीनों रथों को बनाने के लिए कुल 884 पेड़ों की लकड़ियों का इस्तेमाल किया जाता है। सबसे खास बात ये है कि इन रथों को बनाने में कील या अन्य धातुओं का प्रयोग नहीं होता।
रास्ते की सफाई
रथों को तैयार करने के बाद रास्तों की सफाई की जाती है। यात्रा की पवित्रता के लिए ऐसा किया जाता है लेकिन ये सफाई भी सामान्य किस्म की सफाई नहीं होती है। इस दौरान गजपति राजा की पालकी आती है. यह एक प्रकार का अनुष्ठान कहलाता है। इसे ‘छन पहनरा’ कहा जाता है। यात्रा से पहले तीनों रथों की पूजा की जाती है और सोने की झाड़ू से रास्ते की सफाई की जाती है।
स्नान कराया जाता है
रथयात्रा से एक पखवाड़ा पहले भगवान जगन्नाथ को बकायदा शाही स्नान कराया जाता है। इस शाही के बाद भगवान अस्वस्थ हो जाते हैं। उन्हें विशेष कक्ष में विश्राम के लिए रखा जाता है। उनकी सेवा का ख्याल रखा जाता है लेकिन खास बात ये है कि ना तो मंदिर के पुजारी और ना ही वैध उनके पास जाते हैं। दो हफ्ते बाद भगवान स्वस्थ होकर बाहर आते हैं और भक्तों को दर्शन देते हैं।
12 साल बाद मूर्ति बदलती है
पुरी के जगन्नाथ मंदिर में हर 12 साल पर मूर्ति बदले जाने की परंपरा है। जिस वक्त यहां मूर्ति बदली जाती है। उस वक्त बहुत ही कठिन विधि अपनाई जाती है। पुरानी मूर्ति को निकालकर नई मूर्ति स्थापित की जाती है। नई मूर्ति की स्थापना के समय वहां चारों तरफ अंधेरा कर दिया जाता है। कोई किसी को देख नहीं सकता और जो पुजारी मूर्ति स्थापित करते हैं, उस वक्त उनकी आंखों पर भी पट्टी बांध दी जाती है। इस प्रक्रिया को देखना अशुभ माना जाता है।
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