India News (इंडिया न्यूज), Laal Masoor Ki Daal: हिंदू धर्म में आहार के संबंध में बहुत ही स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए गए हैं। एक ओर जहां संत, साधु और वैष्णव पद्धति से जुड़ी समाज की धार्मिक गतिविधियों में शाकाहारी भोजन को प्राथमिकता दी जाती है, वहीं एक विशेष दाल, मसूर की दाल को लेकर हिंदू धर्म में विशेष सावधानी बरती जाती है। मसूर की दाल को हिंदू धर्म में न केवल सेवन करने के लिए वर्जित माना गया है, बल्कि इसे दान में भी नहीं देने की सलाह दी जाती है।
मसूर की दाल या खूनी दाल
हिंदू धर्म में दालों को सात्विक भोजन माना गया है, क्योंकि यह जीवनदायिनी पोषण प्रदान करती हैं और मांसाहारी भोजन से दूर रखने के लिए यह एक अच्छा विकल्प मानी जाती हैं। लेकिन मसूर की दाल को एक अपवाद के रूप में देखा जाता है। हिंदू धर्म के अनुसार, यह दाल मांसाहार के समान मानी जाती है और इसे इंसानी खून से संबंधित बताया गया है। इस विशेष मान्यता के कारण ही साधु, संत, ऋषि-मुनि और वैष्णव समुदाय मसूर की दाल को छूते तक नहीं हैं और उसे अपने भोजन में शामिल नहीं करते।
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मसूर की दाल से जुड़ी मान्यता:
कहा जाता है कि मसूर की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान स्वर्भानु नामक एक राक्षस के खून से हुई थी। यह घटना तब घटित हुई जब भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लिया था और अमृत का वितरण करते समय स्वर्भानु राक्षस ने देवताओं के बीच भेष बदलकर अमृत पी लिया था।
विष्णु जी ने स्वर्भानु को पहचान लिया और सुदर्शन चक्र से उसका सिर काट दिया। राक्षस का सिर तो पृथ्वी से अलग हो गया, लेकिन वह मरा नहीं क्योंकि अमृत उसकी गले तक पहुंच चुका था। इसके बाद, उसका सिर और शरीर अलग हो गए। सिर को राहु और धड़ को केतु कहा गया।
हिंदू धर्म के अनुसार, जब राक्षस का सिर कटकर जमीन पर गिरा, तो उसकी रक्त की बूंदों से मसूर की उत्पत्ति हुई। यही कारण है कि हिंदू धर्म में मसूर की दाल को मांसाहार से जोड़ा जाता है और इसे निषेध माना जाता है।
वैष्णव पद्धति और मसूर की दाल:
वैष्णव धर्म के अनुयायी, जो भगवान श्री कृष्ण के भक्त होते हैं, विशेष रूप से मसूर की दाल से दूर रहते हैं। उनकी मान्यता है कि यह दाल मांसाहार के समकक्ष है और इसलिए इसे सेवन करने से बचना चाहिए। इसके अलावा, वे इस दाल को दान में देने से भी परहेज करते हैं, क्योंकि इसे अपवित्र माना जाता है।
साधु-संतों का दृष्टिकोण:
साधु-संत, ऋषि-मुनि और अन्य सन्यासी जो एक तपस्वी जीवन जीते हैं, उनका यह मानना है कि मसूर की दाल में निहित धार्मिक और ऐतिहासिक संदर्भों के कारण इसका सेवन करना उनके आध्यात्मिक जीवन और साधना में विघ्न डाल सकता है। इसके स्थान पर, वे अन्य प्रकार की सात्विक दालें जैसे मूंग दाल, तुअर दाल आदि का सेवन करते हैं, जो उनके शारीरिक और मानसिक शुद्धता को बनाए रखते हैं।
हिंदू धर्म में मसूर की दाल को लेकर जो धार्मिक मान्यता है, वह उसे मांसाहार के समान मानती है और इसे खाने या दान में देने से बचने की सलाह दी जाती है। यह मान्यता समुद्र मंथन की एक पुरानी कहानी से जुड़ी हुई है, जिसमें राक्षस स्वर्भानु के खून से मसूर की उत्पत्ति बताई जाती है। इस कारण से साधु, संत और वैष्णव समुदाय इसे अपने आहार से बाहर रखते हैं। यह एक अद्वितीय धार्मिक दृष्टिकोण है, जो हिंदू धर्म में आहार और आस्थाओं को संतुलित करने की कोशिश करता है।