India News (इंडिया न्यूज),Mahabharat story: महाभारत में कई ऐसी घटनाओं का उल्लेख है, जो किसी भी व्यक्ति को आश्चर्यचकित कर सकती हैं। आज हम आपको महाभारत में वर्णित एक ऐसी कहानी बताने जा रहे हैं, जिसके अनुसार द्रोणाचार्य ने राजा द्रुपद से बदला लेने के लिए अपने शिष्यों की मदद ली थी।

पांचाल-नरेश के पुत्र द्रुपद और द्रोणाचार्य में गहरी मित्रता थी। दोनों ने एक साथ शिक्षा प्राप्त की थी। बाद में द्रोणाचार्य ने कृपाचार्य की बहन से विवाह कर लिया। उनका एक पुत्र था, जिसका नाम अश्वत्थामा था। वह अपने पुत्र से बहुत प्यार करते थे, लेकिन गरीब होने के कारण वह अपने पुत्र का पालन-पोषण ठीक से नहीं कर पा रहे थे। जब उन्हें पता चला कि द्रुपद अब राजा बन गए हैं, तो वह बहुत खुश हुए और अपने मित्र से मदद मांगने का विचार किया।

द्रोणाचार्य क्यों हुए लज्जीत

द्रुपद के पास पहुंचे और उनसे कहा कि मैं आपका बचपन का मित्र द्रुपद हूं, क्या आपने मुझे पहचाना? लेकिन अपने सिंहासन की शक्ति के नशे में चूर राजा द्रुपद को द्रोणाचार्य का आना पसंद नहीं आया। तब उन्होंने क्रोधित होकर द्रोण से कहा, “ब्राह्मण! राजसिंहासन पर बैठा हुआ राजा एक गरीब नागरिक से कैसे मित्रता कर सकता है?” ये कठोर वचन सुनकर द्रोणाचार्य बहुत लज्जित हुए और क्रोधित भी हुए। तब उन्होंने निश्चय किया कि एक दिन वे इस अहंकारी राजा को अवश्य सबक सिखाएंगे।

अंत में कीसकी हुई जीत

इसके बाद द्रोणाचार्य ने हस्तिनापुर के राजकुमारों को अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा देनी शुरू की। जब राजकुमारों ने अपनी शिक्षा पूरी कर ली तो द्रोणाचार्य ने उनसे गुरु दक्षिणा में पांचाल नरेश द्रुपद को पकड़ने को कहा। उनकी आज्ञा के अनुसार दुर्योधन और कर्ण ने पहले जाकर द्रुपद के राज्य पर आक्रमण किया, लेकिन द्रुपद के सामने टिक नहीं पाए। तब द्रोणाचार्य ने अर्जुन को भेजा। अर्जुन ने पांचाल नरेश की सेना का नाश कर दिया और राजा द्रुपद को उनके मंत्री सहित पकड़कर आचार्य के समक्ष ले आए।

इस मूलांक वालों के लिए उधार देना पड़ सकता है भारी, क्रोध और जल्दबाजी से बचें वरना होगा नुकसान, जानें आज का अंक ज्योतिष भविष्यफल

द्रोणाचार्य ने यह कहा

द्रोणाचार्य ने द्रुपद से कहा- डरो मत राजन, हम बचपन में मित्र थे, लेकिन तुमने धन के घमंड में मेरा अपमान किया। तुमने कहा था कि एक राजा ही एक राजा का मित्र हो सकता है। इसीलिए मुझे युद्ध करके तुम्हारा राज्य छीनना पड़ा, लेकिन मैं अब भी तुमसे मित्रता रखना चाहता हूँ, इसलिए मैं तुम्हें आधा राज्य लौटा रहा हूँ। अब हम दोनों की स्थिति बराबर हो गई है।” यह सब कहने के बाद द्रोणाचार्य ने द्रुपद को बड़े आदर के साथ विदा किया।

इस मूलांक वालों के लिए उधार देना पड़ सकता है भारी, क्रोध और जल्दबाजी से बचें वरना होगा नुकसान, जानें आज का अंक ज्योतिष भविष्यफल