India News (इंडिया न्यूज),Mahabharat Gatha: महाभारत की कथा में पांडवों और द्रौपदी का हिमालय की ओर स्वर्ग के लिए प्रस्थान एक महत्वपूर्ण घटना है। यह वह क्षण था जब पांडवों ने अपने राजपाट और सांसारिक सुखों का त्याग कर आध्यात्मिक मार्ग अपनाने का निश्चय किया। लेकिन इस यात्रा में द्रौपदी सबसे पहले मृत्यु को प्राप्त हुईं। इसके पीछे उनके जीवन में किए गए तीन पापों को कारण माना गया। आइए इन पापों को विस्तार से समझते हैं।

द्रौपदी का हिमालय यात्रा पर गिरना

कृष्ण के निधन के बाद पांडवों और द्रौपदी को यह अनुभूति हुई कि अब उनके राजनैतिक जीवन का अंत हो चुका है और उन्हें मोक्ष के मार्ग पर बढ़ना चाहिए। उन्होंने हिमालय की ओर चढ़ाई शुरू की, लेकिन यात्रा के दौरान द्रौपदी सबसे पहले गिरीं और उनकी मृत्यु हो गई। युधिष्ठिर, जो धर्म और ज्ञान में निपुण थे, ने इस घटना का कारण बताते हुए कहा कि द्रौपदी के तीन बड़े पाप उनके मोक्ष में बाधा बने।

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द्रौपदी के तीन पाप

पहला पाप: अर्जुन के प्रति पक्षपात

द्रौपदी ने अपने पांच पतियों में से अर्जुन को सबसे अधिक प्रेम और महत्व दिया। यह धर्म के विरुद्ध था, क्योंकि एक पत्नी का कर्तव्य है कि वह सभी पतियों के प्रति समान भाव रखे। द्रौपदी ने हमेशा अर्जुन को प्राथमिकता दी, उनकी दूसरी शादियों पर नाराजगी व्यक्त की, जबकि अन्य पतियों के साथ ऐसा व्यवहार नहीं किया।

दूसरा पाप: रूप और बुद्धिमत्ता पर अहंकार

द्रौपदी को अपने सौंदर्य और बुद्धिमत्ता पर गर्व था। उन्होंने अपने स्वयंवर में कर्ण का अपमान किया, जो जातिगत भेदभाव का संकेत था। उन्होंने कर्ण को सूतपुत्र कहकर माला पहनाने से इनकार किया। यह उनका राजकुलीन अभिमान और जातिगत अहंकार था। महाभारत सिखाता है कि शारीरिक और मानसिक गुणों पर अत्यधिक गर्व मोक्ष के मार्ग में बाधा बन सकता है।

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तीसरा पाप: दुर्योधन का अपमान

द्रौपदी ने दुर्योधन का अपमान करते हुए उसे “अंधे का पुत्र अंधा” कहा। इस कटाक्ष ने दुर्योधन के मन में गहरी घृणा उत्पन्न की, जिसने महाभारत युद्ध और चीरहरण जैसी घटनाओं को जन्म दिया। एक राजकुमारी होने के नाते, उन्हें इस प्रकार के कठोर शब्दों का उपयोग नहीं करना चाहिए था।


द्रौपदी के दोष और मोक्ष का मार्ग

हालांकि द्रौपदी ने अपने जीवन में कई कष्ट सहे और अपने पतियों का हर परिस्थिति में साथ दिया, लेकिन उनके कुछ दोष, जैसे आसक्ति, पक्षपात और अहंकार, उनकी मृत्यु का कारण बने। इन दोषों ने उनके मोक्ष के मार्ग में बाधा उत्पन्न की। यह नहीं कहा जा सकता कि उनके पाप अन्य पांडवों से अधिक थे, लेकिन उनके जीवन के ये तीन बड़े निर्णय और कृत्य उनकी आध्यात्मिक यात्रा में बाधक साबित हुए।


महाभारत की सीख

महाभारत की कथा हमें यह सिखाती है कि जीवन में संतुलन, समानता, और अहंकार रहित व्यवहार आवश्यक है। द्रौपदी का जीवन साहस, निष्ठा, और बलिदान का प्रतीक था, लेकिन उनके दोष यह दिखाते हैं कि मोक्ष प्राप्ति के लिए स्वयं के अंदर झांककर आत्मनिरीक्षण करना कितना महत्वपूर्ण है।

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