India News (इंडिया न्यूज),Mahabharat Story: पहले इस झील का नाम शंखोद्धार सरोवर था, इसे शंख सरोवर कहते हैं। कहा जाता है कि भगवान शिव ने क्रोध में इसे श्राप दिया था कि जो कोई भी शंख सरोवर में स्नान करेगा वह स्त्री बन जाएगा। यह घटना शिव पुराण और कुछ अन्य पौराणिक ग्रंथों में भी आई है।
झील को श्राप क्यों मिला
भगवान शिव के क्रोध का एक कारण था। एक बार भगवान शिव और माता पार्वती शंखोद्धार सरोवर के पास विश्राम कर रहे थे। वहां शंखासुर नाम के एक राक्षस ने उन्हें परेशान किया। भगवान शिव ने उस राक्षस का वध कर दिया। उनका शंख (कौड़ी) उस झील में गिर गया, तब भगवान शिव ने क्रोध में झील को श्राप दिया कि जो कोई भी इसमें स्नान करेगा वह स्त्री बन जाएगा।
वरदान के कारण वह पुरुष बन गया
शंखोद्धार सरोवर में स्नान करके युधिष्ठिर बाहर आए तो उनका शरीर एक सुंदर स्त्री में बदल गया। तब युधिष्ठिर ने भगवान शिव की तपस्या की। उनकी इच्छा स्वीकार हुई। भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया कि वह वापस पुरुष रूप में आ सकते हैं। इस तरह वह फिर से पुरुष बन गए।
कहां है यह झील
पौराणिक कथाओं में इस झील को हिमालय क्षेत्र में स्थित माना जाता था। इसका उल्लेख शिव पुराण और अन्य ग्रंथों में मिलता है। हिमालय क्षेत्र में इसकी सटीक भौगोलिक स्थिति के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है। इसे अक्सर एक दैवीय या आध्यात्मिक स्थान के रूप में वर्णित किया जाता है। यह भी कहा जाता है कि यह हिमालय में किसी दुर्गम या गुप्त स्थान पर स्थित है। कुल मिलाकर यह एक रहस्यमयी झील बनी हुई है। दूसरी झील बहुला है, महाभारत में इसे काम्यक वन में स्थित बताया गया है। इस झील के बारे में यह भी मान्यता थी कि इसमें स्नान करने से पुरुष स्त्री बन जाता है।
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अर्जुन ने नहीं सुनी
महाभारत के अनुसार एक बार अर्जुन और उनके साथी इस वन में डेरा डाले हुए थे। घूमते-घूमते उन्होंने सुना कि बहुला झील में स्नान करने से पुरुष स्त्री बन जाता है। इस बात की सच्चाई जानने के लिए अर्जुन ने उस झील में स्नान किया। तुरंत ही वह एक सुंदर स्त्री में बदल गया।
अर्जुन फिर से पुरुष कैसे बन गया?
यह देखकर उसके साथी हैरान रह गए। उन्होंने अर्जुन को फिर से पुरुष बनाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वे सफल नहीं हो पाए। अंत में अर्जुन ने खुद ही अपनी दिव्य शक्तियों का उपयोग करके अपनी पहले जैसी अवस्था प्राप्त कर ली। आजकल इस झील का कोई निशान नहीं बचा है, लेकिन इसकी कहानी आज भी महाभारत में जीवित है। इस कहानी का वर्णन महाभारत के वन पर्व में किया गया है।
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