India News (इंडिया न्यूज),Mahabharat Story: महाभारत युद्ध में कर्ण एक बहुत ही महत्वपूर्ण योद्धा था जिसकी मृत्यु से सभी दुखी थे लेकिन उसकी मृत्यु महाभारत के सबसे मार्मिक और निर्णायक क्षणों में से एक थी। जब कुरुक्षेत्र के युद्ध में अर्जुन ने कर्ण का वध किया तो यह दुर्योधन के लिए बहुत बड़ा झटका था क्योंकि कर्ण न केवल दुर्योधन का घनिष्ठ मित्र था बल्कि एक शक्तिशाली योद्धा भी था जो उसकी तरफ से लड़ा था। कर्ण की उपस्थिति से कौरवों का हौसला काफी बढ़ा था जबकि पांडवों को हार का डर सता रहा था।
इसीलिए अर्जुन को छल से कर्ण का वध करना पड़ा, जब कर्ण ने अपने हथियार नीचे रख दिए और अपने रथ का पहिया बदल रहा था। एक योद्धा कभी भी ऐसी मृत्यु नहीं चाहता लेकिन पांडवों की जीत सुनिश्चित करने के लिए यह बहुत जरूरी था कि किसी भी तरह से युद्ध में कर्ण मारा जाए।
कर्ण की मृत्यु पर दुर्योधन का दुःख
जब दुर्योधन ने कर्ण की मृत्यु की खबर सुनी तो उसे यकीन ही नहीं हुआ। कर्ण की मृत्यु के बाद दुर्योधन को इस बात का बहुत दुख हुआ कि उसका सबसे प्रिय और सबसे भरोसेमंद दोस्त खत्म हो गया। दुर्योधन के लिए कर्ण सिर्फ़ दोस्त ही नहीं था बल्कि उसकी ताकत और जीत का सबसे बड़ा आधार भी था।
मृत्यु की खबर सुनते ही दुर्योधन के पहले शब्द थे कि “कर्ण, तुम मेरे लिए सिर्फ़ एक योद्धा या दोस्त ही नहीं थे; तुम मेरी उम्मीद और मेरा भरोसा थे। अब तुम्हारे बिना यह युद्ध मेरे लिए निरर्थक हो गया है।” दुर्योधन ने यह भी माना कि कर्ण की मृत्यु से उसकी सेना का मनोबल टूट गया था। उसे इस बात का दुख था कि वह अपने दोस्त को नहीं बचा सका। हालाँकि दुर्योधन कर्ण की मृत्यु से बेहद दुखी था, लेकिन उसने इसे अपनी हार मानने से इनकार कर दिया। उसने कौरव सेना का हौसला बढ़ाते हुए कहा कि यह युद्ध अभी खत्म नहीं हुआ है और वह अंत तक लड़ने के लिए तैयार है।
अंग देश का राजा बनाया
दुर्योधन ने कर्ण की वीरता और निष्ठा की प्रशंसा की और कहा कि कर्ण ने अपनी जान की परवाह किए बिना मित्रता का कर्तव्य निभाया। दुर्योधन जानता था कि कर्ण की मृत्यु के बाद कौरव सेना में अर्जुन का सामना करने के लिए समान स्तर का कोई योद्धा नहीं बचा था। इससे उसकी चिंता और भी बढ़ गई। दुर्योधन ने कर्ण को तब अपनाया था, जब सूतपुत्र होने के कारण पूरी सभा में उसका अपमान किया गया था। उसने कर्ण को अंग देश का राजा बनाया और हमेशा उसके प्रति वफादार रहा। कर्ण भी अपनी अंतिम सांस तक दुर्योधन के प्रति वफादार रहा।
दुर्योधन ने कर्ण की मृत्यु पर कैसे शोक मनाया?
कर्ण की मृत्यु दुर्योधन के पतन की शुरुआत थी। यह क्षण न केवल व्यक्तिगत दुख का था, बल्कि युद्ध में कौरव पक्ष की एक बड़ी रणनीतिक हार का भी था। दुर्योधन को यह भी एहसास था कि अगर कर्ण जैसे योद्धा को हराया जा सकता है, तो अब पांडवों के सामने कौरव पक्ष की हार अपरिहार्य थी। कर्ण की मृत्यु ने दुर्योधन के आत्मविश्वास को गहरे स्तर पर हिला दिया।
घर के मंदिर में रख दें ये 2 मूर्तियां, लग जाएगा पैसों का अंबार, भर-भर के फट जाएगी तीजोरी!