India News (इंडिया न्यूज), Mahabharata Story : महाभारत के युद्ध में एक वीर योद्धा होने के बावजूद कर्ण की मृत्यु छल से कर दिया गया। कर्ण का अंतिम संस्कार भगवान् श्रीकृष्ण ने स्वयं अपने हाथों पर किया था। मरने के बाद और अंतिम संस्कार के बाद कोई वापस न तो पृथ्वी लोक पर लौट सकता है और ना ही जीवित हो सकता है, लेकिन मरने के बाद कर्ण को वापस इस पृथ्वी पर आना पड़ा था। उसके मरकर जीवित होने के पीछे दो रहस्य थे। क्या थे वो दो रहस्य, चलिए जानते हैं।
कैसे हुआ था ये चमत्कार
महाभारत के भीषण युद्ध में पांडवों की जीत हुई थी और कौरव हार गए थे। युद्ध समाप्त होने के बाद धृतराष्ट्र, विदुर, कुंती, गांधारी और संजय एक वन में आश्रम बनाकर रहने लगे थे। समय के साथ विदुरजी की भी मृत्यु हो गई। एक दिन महर्षि वेद व्यास उनके आश्रम आए। तब गांधारी ने वेदव्यास से अपने मृत पुत्रों और कुंती ने कर्ण को देखने की इच्छा प्रकट की। ये घटना महाभारत युद्ध के समाप्त होने के 15 साल बाद हुई थी। वेद व्यास गांधारी, कुंती, धृतराष्ट्र और संजय को लेकर गंगा तट पर एकत्रित हुए। फिर वेद व्यास जी ने अपने योगबल से रात में आवाहन पर सभी मृत योद्धा धरती पर अवतरित किया।
कर्ण ने की कुंती को दिया था वचन
कर्ण महाभारत के महान योद्धा थे। उनके बिना महाभारत की कहानी अधूरी है। कर्ण वीर योद्धा होने के साथ ही महादानी भी थे। उन्होंने अपने कवच-कुंडल दान दे दिये थे। कर्ण ने कुंती को वचन दिया था कि वो अर्जुन को छोड़कर किसी अन्य पांडव पर बाण नहीं चलाएंगे। जिस उन्होंने निभाया भी।
वेद व्यास के आवाहन पर कर्ण भी गंगा तट पर प्रकट हुए। उनका अपनी मां कुंती से मिलन हुआ। वेद व्यास जी के आवाहन जिंदा हुए कर्ण को देख कर कुंती बहुत प्रसन्न हुई। कर्ण ने कुंती को प्रणाम किया और कुशल-क्षेम पूछा। कुंती ने भी उसे मां का प्रेम न दे पाने के लिए आंसू भरे आंखों से माफी मांगी।
16 दिन तक रहे पृथ्वी पर
एक दूसरी कथा के अनुसार, मृत्यु के बाद जब कर्ण की आत्मा धर्मलोक पहुंची, तो धर्मराज ने उन्हें खाने के लिए बहुत सारा सोना दिया। यह देखकर कर्ण चकित हो गए और पूछे कि उन्हें भोजन की जगह सोना क्यों दिया गया है? तब धर्मराज ने कहा कि तुमने शरीर दान-पुण्य में सोना ही दान किया था, कभी अपने पूर्वजों को अन्न, भोजन और जल अर्पित नहीं किया। कहा जाता है कि इसके बाद कर्ण को उनकी गलती सुधारने के लिए 16 दिन के लिए पृथ्वी पर वापस भेजा गया था, जहां उन्होंने अपने पितरों और पूर्वजों श्राद्ध और तर्पण किया और उन्हें अन्न, जल और आहार दिया।