India News (इंडिया न्यूज), Mahakumbh 2025: कुंभ मेला, जो हर 12 वर्ष में आयोजित होता है, न केवल हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए एक पवित्र अवसर होता है, बल्कि यह कई धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का प्रतीक भी है। यहां पर लाखों श्रद्धालु स्नान करते हैं और अपने पापों से मुक्ति प्राप्त करने के लिए धर्मिक अनुष्ठान करते हैं। हालांकि, कुंभ मेला केवल सामान्य श्रद्धालुओं के लिए ही नहीं, बल्कि कुछ विशिष्ट धार्मिक संप्रदायों और परंपराओं के लिए भी महत्वपूर्ण है। इन्हीं परंपराओं में से एक है राम की सखियों का कुंभ में आना। यह एक अनूठी और दिलचस्प परंपरा है, जिसमें पुरुष रूपी भक्त स्त्रियों की तरह सजते हैं और भगवान राम की उपासना करते हैं। आइए, समझते हैं कि ये सखियां कौन हैं और उनके कुंभ में आने की क्या धार्मिक महत्वता है।
राम की सखियां कौन होती हैं?
राम की सखियां वे महिलाएं होती हैं जो भगवान राम के साथ उनके जीवन यात्रा में शामिल रही हैं। इनमें प्रमुख रूप से सीता, लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला, सीता की बहन शृंगि, और अन्य महिलाएं शामिल हैं, जिनका जीवन भगवान राम और उनके परिवार से जुड़ा हुआ था। इसके अलावा, सीता के साथ जन्म लेने वाली आठ स्त्रियां भी राम की सखियां मानी जाती हैं। इनमें चारशिला, चंद्रकला, रूपकला, हनुमाना, लक्षमाना, सुलोचना, पदगंधा, और बटोहा शामिल हैं।
कौन था वो बेशर्म राजा जिसने अपने ही पिता को मार रचा ली थी अपनी मां संग शादी?
कुंभ मेला में आने वाली राम की सखियां धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि ये सखियां अपने भक्ति भाव से भगवान राम के प्रति अपने प्रेम और समर्पण को व्यक्त करती हैं।
कुंभ में राम की सखियां क्यों आती हैं?
कुंभ मेला भगवान राम के अनुयायियों के लिए भी एक महत्वपूर्ण अवसर होता है। यह समय होता है जब राम की सखियां, जो शारीरिक रूप से पुरुष होती हैं, खुद को स्त्रियों की तरह सजाती-संवारती हैं। वे अपने हाथों में रंग-बिरंगी चूड़ियां, आंखों में काजल, पांव में आलता, और साड़ी पहन कर भगवान राम की उपासना करती हैं। उनके भजनों में भगवान राम से जुड़ी छेड़छाड़ और प्रेम की कथाएं होती हैं, जो दर्शाती हैं कि ये सखियां भगवान राम से अपने रिश्ते को एक प्रिय मित्र या सखा के रूप में महसूस करती हैं।
कुंभ मेला उनके लिए नैहर (माता-पिता का घर) की तरह होता है, जहां वे भगवान राम को रिझाने और उन्हें प्रसन्न करने के लिए नाच-गाकर भजन करती हैं। ये सखियां त्रिजटा स्नान के बाद कुंभ मेला से विदा ले लेती हैं और जाते वक्त गंगा नदी से आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।
त्रिजटा स्नान: एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान
त्रिजटा स्नान कुंभ मेले में एक विशेष महत्व रखता है। यह स्नान माघ पूर्णिमा के बाद होता है और माना जाता है कि इससे पूरे माघ माह के स्नान का पुण्य प्राप्त होता है। त्रिजटा का अर्थ है तीन धाराएं – गंगा, यमुना, और अदृश्य सरस्वती। इस स्नान को कर्म, भक्ति, और ज्ञान का संगम भी माना जाता है। श्रद्धालु इस स्नान को करने के बाद आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करते हैं और अपने जीवन को शुद्ध करते हैं।
अनी अखाड़ा और सखी संप्रदाय
अनी अखाड़ा एक विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक संगठन है, जो मुख्य रूप से शैव और नथ परंपराओं से जुड़ा होता है। यह संगठन विशेष रूप से हिंदू धर्म के अनुयायी है और इसमें शामिल भक्त अपनी भक्ति को समर्पित करते हैं।
सखी संप्रदाय एक विशेष भक्ति परंपरा है जो मुख्य रूप से भगवान श्री कृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति से जुड़ी है, लेकिन इसमें राम की भक्ति भी शामिल है। सखी संप्रदाय में पुरुष भक्त अपने आपको स्त्री रूप में सजाते हैं और भगवान राम या कृष्ण के प्रति प्रेम की अभिव्यक्ति करते हैं। इस संप्रदाय में दीक्षा लेने के बाद व्यक्ति को घर-बार छोड़ने की परंपरा होती है और वह अपने जीवन को एक भक्ति मार्ग पर चला जाता है।
रामनंदी और कृष्णानंदी सखी संप्रदाय में अंतर
रामनंदी और कृष्णानंदी सखी संप्रदाय में फर्क होता है। रामनंदी संप्रदाय में भगवान राम की भक्ति का केंद्र होता है, और इस संप्रदाय के भक्त उन्हें एक प्रिय मित्र या सखा के रूप में मानते हैं। दूसरी ओर, कृष्णानंदी संप्रदाय में भक्त भगवान कृष्ण से अपनी प्रेम और रासलीला में डूबे रहते हैं। कृष्णानंदी संप्रदाय में भक्त खुद को राधा या गोपियों के रूप में मानते हैं।
क्या होता है जब बार-बार दिखाई दे एक ही नंबर? भगवान से मिल रहे होते है लगातार ऐसे संकेत!
रामनंदी सखियां लाल तिलक लगाती हैं, जबकि कृष्णानंदी सखियां माथे पर राधा नाम की बिंदी लगाती हैं।
कुंभ मेला एक धार्मिक उत्सव ही नहीं, बल्कि विभिन्न धार्मिक परंपराओं और भक्ति मार्गों का संगम है। राम की सखियां उन भक्तों का प्रतीक हैं जो भगवान राम के प्रति अपनी गहरी भक्ति और प्रेम को स्त्री रूप में व्यक्त करते हैं। वे कुंभ मेला में आकर भगवान राम की उपासना करती हैं, अपने प्रिय जीजा राम से छेड़छाड़ करती हैं, और त्रिजटा स्नान के बाद विदा लेती हैं। इस परंपरा से यह सिद्ध होता है कि भक्ति किसी विशेष रूप या लिंग का मोहताज नहीं होती, बल्कि यह एक आत्मीय संबंध का प्रतीक होती है जो व्यक्ति को परमात्मा से जोड़ता है।