India News(इंडिया न्यूज),Matri Shrap: जब किसी व्यक्ति को उसके पूर्वज श्राप देते हैं तो वह परेशान हो जाता है, उसके जीवन में कोई तरक्की नहीं होती। उसके परिवार में कलह होती है। पितृ श्राप दो प्रकार का होता है। एक पितृ श्राप और दूसरा मातृ श्राप। पितृ श्राप की तरह मातृ श्राप भी व्यक्ति के लिए कष्टकारी होता है। मातृ श्राप का अर्थ है मां का श्राप। यह श्राप पूर्वज बन चुकी माताओं से या आपके पिछले जन्म में आपकी मां को हुए कष्ट और पीड़ा से मिलता है। आइए जानते हैं मातृ श्राप क्या है? मातृ श्राप के नुकसान क्या हैं? मातृ श्राप से मुक्ति के उपाय क्या हैं?

मातृ श्राप क्या है?

जब कोई व्यक्ति अपनी मां या मां जैसी किसी महिला को परेशान करता है, उसे कई तरह के कष्ट देता है तो इसके परिणामस्वरूप वह महिला श्राप या श्राप देती है, जिसके कारण उस व्यक्ति को मातृ दोष का भागी बनना पड़ता है। बिल्कुल पितृ दोष की तरह।

मातृ श्राप से होने वाली हानियाँ

  • यदि किसी व्यक्ति पर मातृ श्राप या मातृ दोष है तो उस व्यक्ति को संतान सुख नहीं मिलता है।
  • माता के श्राप के कारण व्यक्ति को पुत्र वियोग सहना पड़ता है।
  • माता के श्राप के कारण व्यक्ति को पुत्र की प्राप्ति नहीं होती।

मातृ श्राप के बारे में कैसे जानें?

  • ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि आपकी कुंडली के पंचम भाव का स्वामी छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो, लग्नेश नीच राशि में हो और चंद्रमा भी नीच का हो तो मातृ श्राप के कारण जातक को पुत्र की प्राप्ति नहीं होती है।
  • सुख भाव में पाप ग्रह हो, पंचमेश शनि के साथ हो, अष्टम और व्यय भाव में पाप ग्रह हों तो वह जातक मातृ श्राप से ग्रस्त होता है। इसके कारण उसे पुत्र की हानि होती है।
  • लाभ भाव में शनि हो, चतुर्थ भाव में पाप ग्रह हो, पंचम भाव में नीच का चंद्रमा हो तो भी मातृ श्राप होता है।
  • पंचमेश चंद्रमा नीच राशि में हो और पाप ग्रहों के बीच हो, चतुर्थ और पंचम भाव में पाप ग्रह हों तो भी मातृ श्राप होता है।
  • यदि छठे और आठवें भाव का स्वामी लग्न में बैठा हो, चौथे भाव का स्वामी व्यय भाव में हो, गुरु और चंद्रमा पाप ग्रहों के साथ हों तो मातृ शाप होता है।
  • यदि अष्टमेश नवम भाव में और पंचमेश अष्टम भाव में हो, चंद्रमा और चतुर्थेश छठे, आठवें या बारहवें भाव में हों तो मातृ शाप से ग्रस्त होना पड़ता है।

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मातृ श्राप से मुक्ति के उपाय

  • मातृ श्राप से मुक्ति के लिए पुरुष सूक्त और श्री सूक्त का पाठ किसी ब्राह्मण से करवाएं। यह पाठ 21 बार करना होता है। पाठ के बाद पीपल के पेड़ की कम से कम 21 बार परिक्रमा करें। फिर पूजा करें। यह उपाय करने से मातृ श्राप से मुक्ति मिलती है और पुत्र प्राप्ति की संभावना होती है।
  • मातृ श्राप से मुक्ति का दूसरा उपाय गायत्री मंत्र का 11 हजार से सवा लाख बार जाप करवाना है। इसके बाद किसी ब्राह्मण और उसकी पत्नी को भोजन कराएं। उन्हें दूध और दक्षिणा दें। इसमें चांदी की कटोरी में फल, कपड़े, चावल का दान करें।

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