1. सांस लेने में कठिनाई और श्वास का तेज होना
मृत्यु के नजदीक पहुंचते समय शरीर में कई शारीरिक परिवर्तन होते हैं, जिनमें सबसे प्रमुख श्वास प्रणाली का बदलना है। इंसान के शरीर में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है और शरीर के विभिन्न अंगों को आवश्यक ऊर्जा नहीं मिल पाती। इसके परिणामस्वरूप, श्वास में कठिनाई हो सकती है, और व्यक्ति को सांस लेने में समस्या महसूस होती है। कभी-कभी यह स्थिति इतनी तीव्र हो सकती है कि व्यक्ति घबराहट और डर का अनुभव करने लगता है। यह स्थिति तब और भी गंभीर हो सकती है जब शरीर के अंग सही से काम करना बंद कर देते हैं। ऐसे में व्यक्ति को लगता है जैसे वह डूब रहा हो, लेकिन दिमाग इसे समझ नहीं पाता।
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2. आत्मिक पीड़ा और शारीरिक दर्द
मृत्यु के नजदीक शरीर में कई प्रकार के दर्द और असहजता महसूस हो सकती है। यह दर्द शरीर के अंगों के काम करना बंद करने और शारीरिक कार्यप्रणाली के असंतुलित होने के कारण होता है। जैसे-जैसे शरीर में रक्त परिसंचरण धीमा होता है और अंगों का कार्य कम हो जाता है, शरीर में चक्कर आना, कमजोरी और असहनीय दर्द होने लगता है। हालांकि, यह दर्द अधिकतर मानसिक या शारीरिक स्तर पर होते हैं, लेकिन व्यक्ति इसे सटीक रूप से पहचानने या समझने में असमर्थ होता है। यह भी हो सकता है कि व्यक्ति को यह दर्द अन्य कारणों से हो, और वह इसे मौत के नजदीक होने के संकेत के रूप में पहचान नहीं पाता।
3. अनियंत्रित अंगों का शिथिल होना
मृत्यु के नजदीक व्यक्ति के शरीर में विभिन्न अंगों का नियंत्रण खत्म होने लगता है। जैसे-जैसे शरीर की कार्यप्रणाली कमजोर होती जाती है, मांसपेशियों की ताकत और उनका नियंत्रण धीरे-धीरे कम हो जाता है। व्यक्ति के हाथ-पैर अकड़ने लगते हैं, और कभी-कभी पूरी शरीर की गतिशीलता प्रभावित हो सकती है। यह स्थिति शरीर के तंत्रिका तंत्र के कमजोर होने के कारण होती है। यह एहसास न केवल शारीरिक दर्द से जुड़ा होता है, बल्कि व्यक्ति मानसिक रूप से भी इसे असहनीय मानता है, क्योंकि वह अपने शरीर को नियंत्रण में नहीं रख पाता।
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4. विभिन्न प्रकार के भ्रम और मानसिक स्थिति
मृत्यु के नजदीक व्यक्ति को मानसिक स्थिति में भी बदलाव महसूस हो सकते हैं। यह भ्रम, घबराहट, और अजीब विचारों के रूप में प्रकट हो सकता है। व्यक्ति को ऐसा महसूस हो सकता है जैसे वह किसी अंधेरे सुरंग में जा रहा हो या फिर उसके आस-पास की दुनिया में कुछ अजीब सा हो रहा हो। यह भ्रम मृत्यु से पहले एक सामान्य शारीरिक और मानसिक प्रक्रिया हो सकती है, लेकिन दिमाग इसे समझने में असमर्थ रहता है। कभी-कभी, यह भ्रम व्यक्ति को आभास कराता है कि वह कहीं और है या उसका शरीर अब नहीं रह गया है। यह स्थिति शारीरिक और मानसिक थकावट के कारण उत्पन्न होती है, और इसका पूरी तरह से अहसास व्यक्ति को उस समय नहीं हो पाता।
5. आध्यात्मिक या सांस्कृतिक अनुभव
कई लोगों का मानना है कि मृत्यु के नजदीक व्यक्ति को आध्यात्मिक अनुभव होते हैं, जैसे रोशनी की ओर बढ़ना, प्रियजनों से मिलना या भूतपूर्व जीवन की यादें ताजा होना। ये एहसास भले ही वास्तविक रूप से महसूस नहीं होते, लेकिन शरीर और मस्तिष्क के आखिरी क्षणों में होने वाले न्यूरोलॉजिकल परिवर्तन के कारण ऐसा महसूस होता है। मस्तिष्क में जीवन की अंतिम अवस्था में रसायन और विद्युत सिग्नल्स का एक विशेष प्रकार का मिश्रण होता है, जिससे व्यक्ति को इन अनुभवों का आभास होता है। ये अनुभव व्यक्ति को सांस्कृतिक या धार्मिक दृष्टिकोण से मृत्यु के बाद के जीवन को समझने में मदद कर सकते हैं, लेकिन वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ये केवल मस्तिष्क की प्रतिक्रिया होते हैं।
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मृत्यु का अनुभव एक प्राकृतिक और अनिवार्य प्रक्रिया है, जो हर जीवित प्राणी का हिस्सा है। लेकिन इसके संकेतों को पहचानना और समझना आसान नहीं होता। शरीर के ये परिवर्तन हमारे अस्तित्व के अंतिम समय की अनिवार्य परिघटनाएँ हैं, जो हमें उस अंतिम क्षण तक शारीरिक और मानसिक स्तर पर प्रभावित करती हैं। इन संकेतों को समझने और स्वीकारने के लिए एक गहरी और संवेदनशील दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिससे हम जीवन के अंत को एक भय के बजाय एक सहज प्रक्रिया के रूप में देख सकें।
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