India News (इंडिया न्यूज), Menstruation During Pilgrimage: धार्मिक यात्रा के दौरान महिलाओं के लिए मासिक धर्म एक बड़ी दुविधा बन सकता है। कई बार महिलाएं इस शारीरिक प्रक्रिया के कारण तीर्थ यात्रा से वंचित रह जाती हैं या वहां पहुंचने के बाद वे भ्रमित हो जाती हैं कि उन्हें मंदिर में प्रवेश करना चाहिए या नहीं। इस विषय पर वृंदावन के प्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज ने अपनी राय व्यक्त की है। एक महिला ने प्रेमानंद महाराज से पूछा कि ‘अगर धार्मिक यात्रा के दौरान महिलाओं को मासिक धर्म हो जाए तो क्या वे भगवान के दर्शन कर सकती हैं?’ इस पर प्रेमानंद महाराज ने साफ कहा कि मासिक धर्म एक प्राकृतिक शारीरिक प्रक्रिया है और इसके कारण महिलाओं को दर्शन के विशेषाधिकार से वंचित नहीं किया जाना चाहिए।

दर्शन पर क्या बोले प्रेमानंद महाराज?

उन्होंने कहा, “यदि कोई महिला इतनी कठिनाइयों को पार करके तीर्थ स्थल पर पहुंची है, तो उसे भगवान के दर्शन अवश्य करने चाहिए। हालांकि, इस दौरान कुछ नियमों का पालन करना उचित होगा। महिलाओं को स्नान करना चाहिए, भगवत प्रसादी चंदन लगाना चाहिए और दूर से भगवान के दर्शन करने चाहिए। उन्हें किसी भी सेवा कार्य में भाग नहीं लेना चाहिए, मंदिर की वस्तुओं को नहीं छूना चाहिए और कोई भी सामग्री नहीं चढ़ानी चाहिए।”

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‘मासिक धर्म निंदनीय नहीं बल्कि पूजनीय’

प्रेमानंद महाराज ने मासिक धर्म को लेकर समाज में फैले भ्रम को भी दूर करने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि मासिक धर्म को अपवित्र मानना ​​गलत है, बल्कि इसे पूजनीय माना जाना चाहिए। उन्होंने इसके पीछे एक पौराणिक कथा का जिक्र किया और कहा कि महिलाओं द्वारा देवताओं का पाप अपने ऊपर लेने का यह परिणाम है। प्रेमानंद महाराज के अनुसार, “जब देवराज इंद्र ने वृत्रासुर का वध किया, तो उन्हें ब्रह्म हत्या का पाप लगा। ऋषियों ने इस पाप को चार भागों में विभाजित किया। एक भाग नदियों को दिया, जो पानी में झाग के रूप में प्रकट होता है। दूसरा भाग पेड़ों को दिया, जो गोंद के रूप में पाया जाता है। तीसरा भाग भूमि को दिया, जिसके कारण कुछ स्थान बंजर हो गए। और चौथा भाग महिलाओं को दिया, जो मासिक धर्म के रूप में प्रकट होता है।” इसलिए उन्होंने कहा कि यह कोई पाप या शर्म की बात नहीं है, बल्कि महिलाओं का यह त्याग सराहनीय है।

नियमों से करें भगवान के दर्शन

प्रेमानंद महाराज ने अपनी बात को स्पष्ट करते हुए कहा कि महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान तीर्थ स्थानों में दर्शन से वंचित नहीं रहना चाहिए। लेकिन इस दौरान कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए, जैसे मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश न करना, किसी भी सेवा कार्य में भाग न लेना और सामग्री चढ़ाने से बचना चाहिए। उनके अनुसार, “इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि जीवन में यह अवसर दोबारा मिलेगा या नहीं। इसलिए अगर कोई महिला इतनी मुश्किलों का सामना करके तीर्थ स्थल पर पहुंची है, तो उसे भगवान के दर्शन तो करने ही चाहिए, चाहे दूर से ही क्यों न हो।”

शानदार हैं प्रेमानंद जी के विचार

प्रेमानंद महाराज का यह विचार महिलाओं के लिए एक नई सोच को जन्म देता है। यह समाज में व्याप्त रूढ़ियों को तोड़ता है और बताता है कि मासिक धर्म किसी भी महिला के लिए धार्मिक कर्तव्यों से दूर रहने का कारण नहीं होना चाहिए। उनके अनुसार, जब यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, तो इसे लेकर किसी भी तरह की हीन भावना नहीं होनी चाहिए। महिलाएं उचित नियमों का पालन करके तीर्थ स्थलों पर भगवान के दर्शन कर सकती हैं और अपनी भक्ति व्यक्त कर सकती हैं।

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