India News (इंडिया न्यूज़), Mithun Sankranti 2024: मिथुन संक्रांति में आज का दिन विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन सिलबट्टे की पूजा का विशेष महत्व है। मिथुन संक्रांति के अवसर पर सूर्य मिथुन राशि में प्रवेश करता है, जिससे यह दिन धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण माना जाता है। आइए इस दिन के खास मौके पर आपको इस त्योहार की कुछ विशेष बातें अथवा मान्यताएं बताए:
सिलबट्टे की पूजा का महत्व
सिलबट्टा, जिसे आमतौर पर रसोई में मसालों को पीसने के लिए उपयोग किया जाता है, भारतीय परंपरा में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। मिथुन संक्रांति पर सिलबट्टे की पूजा करने का रिवाज इसलिए है क्योंकि इसे समृद्धि और शुभता का प्रतीक माना जाता है। यह पूजा इस मान्यता पर आधारित है कि सिलबट्टे की पूजा करने से घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
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इतिहास
मिथुन संक्रांति और सिलबट्टे की पूजा की परंपरा का इतिहास भारतीय संस्कृति और धार्मिक आस्था से गहराई से जुड़ा हुआ है। इसके पीछे कई प्राचीन मान्यताएं और कथाएं हैं, जो समय के साथ विकसित हुई हैं।
वैदिक काल: वैदिक काल से ही सूर्य के राशि परिवर्तन को महत्वपूर्ण माना गया है। सूर्य का मिथुन राशि में प्रवेश करना एक महत्वपूर्ण खगोलीय घटना है, जिसे मिथुन संक्रांति के रूप में मनाया जाता है। यह दिन कृषि और मौसम से संबंधित परिवर्तन का भी प्रतीक है।
पूजा की विधि
- सफाई: सबसे पहले सिलबट्टे को अच्छे से साफ करें।
- स्नान: इसे गंगाजल या पवित्र जल से स्नान कराएं।
- सिंदूर और हल्दी: सिलबट्टे पर सिंदूर और हल्दी लगाएं।
- पूजा सामग्री: फूल, धूप, दीपक और नैवेद्य (प्रसाद) अर्पित करें।
- मंत्रोच्चारण: पूजन के दौरान विशेष मंत्रों का उच्चारण करें, जिनसे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
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सांस्कृतिक महत्व
सिलबट्टे की पूजा करने से यह भी मान्यता है कि इससे गृहणियों की मेहनत और प्रयासों की सराहना होती है और उन्हें सम्मान मिलता है। यह एक प्रतीकात्मक तरीका है यह याद दिलाने का कि रसोई का कार्य भी पूजा के समान है।
फलदायी मान्यताएं
ऐसा माना जाता है कि इस दिन सिलबट्टे की पूजा करने से घर में स्थिरता और समृद्धि आती है। परिवार के सभी सदस्य स्वस्थ और खुशहाल रहते हैं।
मिथुन संक्रांति के इस शुभ अवसर पर सिलबट्टे की पूजा करने से न केवल धार्मिक लाभ प्राप्त होते हैं, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर को भी संरक्षित करता है।