India News (इंडिया न्यूज़), Mata Sita: माता सीता की जीवन में हमेशा से ही काफी संघर्ष रहा है। उन्होंने अपने जीवन में कई तरह की दुख देखे लेकिन कई लोग नहीं जानते हैं की माता सीता की मृत्यु कैसे हुई थी। आज कि रिपोर्ट में हम आपको माता सीता की मृत्यु के रहस्य से पर्दा उठाते हुए दिखाएंगे।

  • इस तरह माता ने छोड़ा था पृथ्वी लोक
  • इस तरह दी अग्निपरिक्षा

आश्रम में रहती थी माता सीता

जैसे कि सभी जानते हैं की माता सीता अपने पुत्रों के साथ वाल्मीकि आश्रम में रहा करती थी। एक बार भगवान श्री राम ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया था। इस यज्ञ में वाल्मीकि जी ने लव और कुश को रामायण सुनने के लिए भेजा, राम ने दोनों कुमारों के चरित्र को सुना और काफी पसंद भी किया, कहते हैं कि प्रतिदिन वह दोनों 20 संघ सुनते थे। उत्तरकांड तक पहुंचने पर राम ने जाना कि दोनों राम की ही बालक है।

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सीता को अग्निपरिक्षा के लिए कहा गया

इस बात को जानने के बाद की लव कुश उन्हीं के पुत्र है। उन्होंने सीता को कहा कि यदि वह निष्पाप है, तो वह सभा में आकर अपनी पवित्रता को प्रकट करें। ऐसे में वाल्मीकि ही सीता को लेकर सभा में गए थे। वह सभा में वरिष्ठ ऋषि के रूप में भी थे। वरिष्ठ ने कहा, “हे राम मैं वरुण का दसवां पुत्र हूं जीवन में मैंने कभी झूठ नहीं बोला यह दोनों तुम्हारे पुत्र हैं यदि मैं झूठ बोला हो तो मेरी तपस्या का फल मुझे ना मिले मैं दिव्य दृष्टि से सीता की पवित्रता को देख चुका हो”

इस तरह साबित की अपनी पवित्रता Mata Sita

वही सब सीता माता को अपनी पवित्रता साबित करने के लिए कहा गया, तो उन्होंने अपने हाथ जोड़ और नीचे मुख करके कहा, “हे धरती मां यदि मैं पवित्र हूं तो धरती फट जाए और मैं उसमें समा जाऊं”, जैसे ही उन्होंने यह कहा वैसे ही पृथ्वी फट गई और नागों से जुड़ा हुआ एक सिंहासन ऊपर आया जिस पर धरती मां बैठी थी उन्होंने सीता माता को अपनी गोद में बिठाया और अपने साथ धरती में समा गई। Mata Sita

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इस अलग पुराण में ये भी है वर्णित

लेकिन इसी कहानी को पद्मपुराण में देखा जाए तो उसका वर्णन अलग मिलता है। कथा में सीता धरती में नहीं समाती बल्कि उन्होंने श्री राम के साथ रहकर सिंहासन का सुख भोग था और उन्होंने श्री राम के साथ जल समाधि ली थी।

ऐसे में इस बात को यहीं पर समाप्त किया गया सीता की पवित्रता का निचोड़ यही बनता है कि वह सेवा, संयम, त्याग, शालीनता, अच्छे व्यवहार, हिम्मत, शांति, निर्भरता, क्षमता और शांति का जीत जाकर स्वरूप थी।

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