India News (इंडिया न्यूज), Mahabharat Chakraviyuh: महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र की रणभूमि में लड़ा गया, जहाँ प्रतिदिन नई रणनीतियों और युद्धनीतियों का प्रदर्शन किया जाता था। इस महायुद्ध के 13वें दिन की घटनाएँ अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती हैं क्योंकि इसी दिन चक्रव्यूह की रचना की गई और अभिमन्यु ने वीरगति को प्राप्त किया।

चक्रव्यूह की रचना

कौरवों की सेना का नेतृत्व कर रहे सेनापति द्रोणाचार्य ने पांडवों को हराने के लिए चक्रव्यूह नामक विशेष युद्ध संरचना बनाई। चक्रव्यूह एक जटिल सैन्य संरचना थी, जिसमें यदि कोई योद्धा प्रवेश करता तो उसके लिए बाहर निकलना अत्यंत कठिन हो जाता। यह एक प्रकार की भूलभुलैया थी, जिसमें विभिन्न स्तरों (द्वारों) को पार करने के लिए विशेष ज्ञान और तकनीक की आवश्यकता थी।

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अभिमन्यु का चक्रव्यूह में प्रवेश

जब पांडवों को चक्रव्यूह में फंसाने की चुनौती सामने आई, तब अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु ने साहस दिखाते हुए इसमें प्रवेश करने का निर्णय लिया। उन्होंने बताया कि उनके पिता अर्जुन ने उन्हें चक्रव्यूह में प्रवेश करने की विधि सिखाई थी, लेकिन बाहर निकलने का रहस्य वे नहीं जान पाए थे। बावजूद इसके, उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के युद्धभूमि में प्रवेश किया।

अभिमन्यु की वीरता

अभिमन्यु अपनी अद्भुत युद्ध कौशल और वीरता के बल पर चक्रव्यूह के छह द्वार भेदने में सफल रहे। उन्होंने अपने अद्वितीय पराक्रम से कई कौरव योद्धाओं को परास्त कर दिया। किंतु सातवें द्वार पर उन्हें घेर लिया गया। कौरवों की ओर से कर्ण, द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा, कृपाचार्य, दु:शासन और अन्य महारथी योद्धाओं ने अभिमन्यु पर एक साथ आक्रमण किया। युद्ध नीति के विरुद्ध जाकर, इन योद्धाओं ने अभिमन्यु को अकेले घेर लिया और सामूहिक रूप से आक्रमण किया।

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अभिमन्यु की वीरगति

युद्ध के 13वें दिन, अभिमन्यु ने अंतिम सांस तक संघर्ष किया। उनके पास कोई हथियार नहीं बचा था, फिर भी वे अपने रथ के पहिये और अन्य साधनों से युद्ध करते रहे। अंततः वीरगति को प्राप्त होकर वे इतिहास में अमर हो गए। उनकी मृत्यु ने पांडवों को अत्यंत दुखी कर दिया और यह घटना आगे चलकर महाभारत युद्ध की दिशा बदलने वाली साबित हुई।

अभिमन्यु की शौर्यगाथा आज भी प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है। उनकी वीरता, बलिदान और निडरता ने यह सिखाया कि सच्चा योद्धा कभी अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटता, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी प्रतिकूल क्यों न हों। महाभारत का 13वां दिन केवल एक युद्ध का दिन नहीं था, बल्कि यह उस युग का निर्णायक मोड़ भी था, जिसने आगे चलकर कौरवों के पतन का मार्ग प्रशस्त किया।

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