India News (इंडिया न्यूज), Operation Sindoor: हाल ही में भारत ने पाकिस्तान में बसे आतंकवादियों पर एयर स्ट्राइक कर उनमें से 100 को मौत के घाट उतार दिया। इस ऑपेरशन का नाम ‘ऑपेरशन सिंदूर’ रखा गया। इसके बाद से ही सिंदूर के बारे में दुनियाभर के लोग सर्च कर रहे हैं। इसलिए सिंदूर ट्रैंड कर रहा है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि, इस संसार में सबसे पहले किसने सिंदूर लगाया था? सिंदूर को हर हिंदू विवाहित स्त्री की पहचान माना जाता है। शादी के बाद महिलाओं की मांग में भरा गया सिंदूर सिर्फ एक मेकअप का हिस्सा नहीं, बल्कि उनके पति के लिए समर्पण और मंगलकामना का प्रतीक भी माना जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह परंपरा आखिर शुरू कहां से हुई? धार्मिक ग्रंथों और पुरातात्विक खोजों में इसके गहरे प्रमाण मिलते हैं।

वेदों में सिंदूर बताया गया है खास

वेदों में सिंदूर का उल्लेख ‘कुंकुम’ के रूप में मिलता है। ऋग्वेद और अथर्ववेद जैसे वैदिक ग्रंथों में कहा गया है कि विवाहित स्त्रियां अखंड सौभाग्य के लिए सिंदूर लगाती थीं। उस समय सिंदूर को ‘पंच-सौभाग्य’ का हिस्सा माना जाता था, जिसमें बालों में पुष्प, मंगलसूत्र, पैर की उंगली में बिछुए, चेहरे पर हल्दी और मांग में सिंदूर शामिल था।

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शिव पुराण में है पहली सिंदूरधारी का मिला है नाम

शिव पुराण के अनुसार, मां पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। जब भगवान शिव ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया, तब मां पार्वती ने अपने मांग में सिंदूर भरा और इसे सुहाग का प्रतीक माना। उन्होंने यह भी कहा कि जो स्त्री सिंदूर लगाएगी, उसके पति की आयु लंबी होगी और उसे सौभाग्य प्राप्त होगा। इस मान्यता के अनुसार, सबसे पहले सिंदूर लगाने की परंपरा माता पार्वती से शुरू हुई।

रामायण में भी मिलता है सिंदूर के बारे में ज्ञान

रामायण में एक कथा आती है जिसमें हनुमान जी ने माता सीता को सिंदूर लगाते देखा। जब उन्होंने इसका कारण पूछा, तो माता सीता ने बताया कि यह रामजी की दीर्घायु और सुख के लिए लगाया जाता है। यह सुनकर प्रभु के प्रति अपनी भक्ति दिखाने के लिए हनुमान जी ने पूरे शरीर पर सिंदूर लगा लिया। तभी से उन्हें सिंदूर अर्पित करने की परंपरा भी शुरू हुई।

द्रौपदी और द्वापर युग का उल्लेख

द्वापर युग के स्कंद पुराण में उल्लेख मिलता है कि महाभारत की प्रमुख पात्रा द्रौपदी भी अपनी मांग में सिंदूर लगाती थीं। यह संकेत देता है कि यह परंपरा सिर्फ वैदिक काल या रामायण तक सीमित नहीं रही, बल्कि बाद के युगों में भी इसका पालन होता रहा।

सिंधु घाटी सभ्यता में भी मिले सिंदूर के प्रमाण

सिंदूर लगाने की परंपरा केवल धार्मिक ग्रंथों तक सीमित नहीं है, बल्कि सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई में भी इसके प्रमाण मिले हैं। पुरातत्वविदों को कुछ ऐसी स्त्री मूर्तियां मिली हैं, जिनकी मांग में लाल रंग की सीधी रेखा बनी है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह सिंदूर का ही संकेत है, जिससे यह सिद्ध होता है कि सिंदूर लगाने की परंपरा हजारों वर्षों पुरानी है। आज जो परंपरा हमें सामान्य और दैनिक प्रतीत होती है, उसकी जड़ें भारतीय संस्कृति के प्राचीनतम समय में गहराई तक फैली हैं। सिंदूर, जो आज भी सुहागिनों के श्रृंगार का महत्वपूर्ण हिस्सा है, सिर्फ एक रंग नहीं बल्कि परंपरा, श्रद्धा और पति के प्रति निष्ठा का प्रतीक है।

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