India News (इंडिया न्यूज), Ramayan Facts: राक्षसराज रावण को अपनी सोने की लंका पर अत्यधिक अभिमान था। वह स्वयं को “लंकापति” कहलाना पसंद करता था, क्योंकि उसे विश्वास था कि उसकी लंका जैसा सुंदर और समृद्ध स्थान पूरे ब्रह्मांड में नहीं था। लेकिन यह लंका स्वयं रावण ने नहीं बनाई थी। बल्कि, इसका निर्माण देवताओं के महान शिल्पकार विश्वकर्मा और धन के देवता कुबेर ने भगवान शिव के आदेश पर किया था।
भगवान शिव ने पार्वती के लिए कराया लंका का निर्माण
पुराणों के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु अपनी पत्नी लक्ष्मी के साथ कैलाश पर्वत पर भगवान शिव और माता पार्वती से मिलने आए। ठंड के कारण लक्ष्मी जी ठिठुरने लगीं और मजाक में माता पार्वती से कह दिया कि इस ठंडी जगह पर रहना कठिन है। यह सुनकर माता पार्वती ने वैकुंठ धाम की यात्रा की, जहां का वैभव देखकर वे मोहित हो गईं और मन में ठान लिया कि वे भी अपने लिए ऐसा ही एक स्वर्ण महल बनवाएंगी। जब माता पार्वती ने अपनी यह इच्छा भगवान शिव के सामने रखी, तो उन्होंने देवताओं के शिल्पकार विश्वकर्मा और कुबेर को आदेश दिया कि वे समुद्र के बीच त्रिकूटाचल पर्वत पर भव्य स्वर्ण नगरी का निर्माण करें। इस तरह लंका का जन्म हुआ। यह नगरी तीन पर्वत श्रंखलाओं—सुबेल, नील और सुंदर पर्वत—से मिलकर बनी थी।
रावण ने छल से हड़पी सोने की लंका
रावण की नजर जब लंका पर पड़ी तो वह इसे पाना चाहता था। वह एक चालाक राक्षस था और छल-बल से इच्छित वस्तु हासिल करना जानता था। उसने ब्राह्मण का वेश धारण कर भगवान शिव के समक्ष भिक्षा में सोने की लंका मांग ली। शिवजी ने उसे पहचान लिया, लेकिन फिर भी दानस्वरूप लंका दे दी। रावण को यह महल प्राप्त करने की खुशी थी, लेकिन जब यह बात माता पार्वती को पता चली तो वे अत्यंत क्रोधित हो गईं। उन्होंने क्रोध में श्राप दे दिया कि यह लंका एक दिन जलकर राख हो जाएगी।
हनुमान जी ने किया पार्वती के श्राप को पूरा
जब रावण ने माता सीता का हरण किया और उन्हें अशोक वाटिका में रखा, तब भगवान श्रीराम ने हनुमान जी को सीता माता का पता लगाने के लिए भेजा। हनुमान जी लंका पहुंचे, माता सीता से मिले और रावण के दरबार में भी गए। रावण ने जब हनुमान जी का अपमान किया, तो उन्होंने पूरी लंका में आग लगा दी। इस प्रकार, माता पार्वती का श्राप सत्य हुआ और सोने की लंका जलकर भस्म हो गई।
सुंदर पर्वत से जुड़ा सुंदरकांड का रहस्य
लंका का सबसे सुंदर भाग “सुंदर पर्वत” था, जहां अशोक वाटिका स्थित थी। यही वह स्थान था, जहां माता सीता को रावण ने रखा था। तुलसीदास जी ने हनुमान जी के लंका अभियान को “सुंदरकांड” नाम दिया, क्योंकि यह सुंदर पर्वत से जुड़ा था। सोने की लंका, जिसे भगवान शिव ने माता पार्वती के लिए बनवाया था, अंत में रावण के अहंकार और पाप के कारण नष्ट हो गई। यह कथा हमें सिखाती है कि चाहे कितनी भी समृद्धि और वैभव क्यों न हो, अगर वह छल, अन्याय और अधर्म के बल पर हासिल की गई हो, तो उसका विनाश निश्चित है।