India News (इंडिया न्यूज), Rammat of Ashapura Mata: बीकानेर अपनी अनूठी परंपराओं और संस्कृति के लिए जाना जाता है। यहां की सांस्कृतिक धरोहर में बिस्सो के चौक में होने वाली रम्मत का विशेष स्थान है। यह आयोजन न केवल शहर की धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि इसके साथ जुड़ी परंपराएं 200 से 300 साल पुरानी हैं। हर साल यह रम्मत एक भव्य उत्सव का रूप ले लेती है, जिसमें हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं।
आशापुरा माता की पूजा और रम्मत की शुरुआत
रम्मत से पहले बीकानेर के लोग आशापुरा माता को मनाते हैं। आधी रात को माता आशापुरा बाल स्वरूप में दर्शन देती हैं। यह स्वरूप एक 10 से 12 वर्ष का बच्चा होता है, जिसे खास तरीके से तैयार किया जाता है। इस बच्चे को सोने के आभूषण, जैसे गलपटिया, बाजूबंद, कमरबंद और चंद्रहार पहनाए जाते हैं। वैदिक मंत्रोच्चार के साथ इस बाल स्वरूप के पैर के अंगूठे की पूजा की जाती है।
मान्यता है कि इस एक घंटे के दौरान माता स्वयं बच्चे में विराजमान होती हैं। श्रद्धालु इस समय माता के दर्शन कर उनसे अपनी मनोकामनाएं मांगते हैं। माता के दर्शन के लिए पूरा बीकानेर शहर उमड़ पड़ता है। रात 12 बजे माता का आगमन होता है और रात 1 बजे तक यह दिव्य दृश्य चलता है। श्रद्धालु माता को प्रसाद अर्पित करते हैं और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए साड़ी चढ़ाते हैं।
बिस्सो के चौक की सजावट और मेले जैसा माहौल
रम्मत के आयोजन से पहले बिस्सो के चौक को दुल्हन की तरह सजाया जाता है। चारों ओर रोशनी, रंग-बिरंगे झंडे और सजावट से यह स्थान एक धार्मिक मेले का रूप ले लेता है। चौक के आसपास की छतों पर महिलाओं का जमावड़ा लगता है और हर तरफ उत्साह का माहौल रहता है।
दो प्रकार की रम्मत: भक्त पूरणमल और नौटंकी शहजादी
बिस्सो के चौक की रम्मत हर दूसरे साल अलग प्रकार की होती है। एक साल भक्त पूरणमल की कथा पर आधारित रम्मत होती है, जबकि अगले साल नौटंकी शहजादी की कथा प्रस्तुत की जाती है। यह रम्मत रात 1 बजे शुरू होती है और सुबह 10 बजे तक चलती है। लगभग 9 घंटे तक चलने वाले इस आयोजन में लोक संगीत, नृत्य और धार्मिक कथाएं प्रस्तुत की जाती हैं।
बाल स्वरूप का चयन
आशापुरा माता के बाल स्वरूप का चयन बड़ी सावधानी से किया जाता है। 10 से 12 वर्ष के 4-5 बच्चों को एकत्र किया जाता है और उनमें से एक का चयन किया जाता है। यह बच्चा शारीरिक रूप से मजबूत और सुंदर होना चाहिए, ताकि वह आभूषणों का भार सहन कर सके। बाल स्वरूप का चयन करना इस परंपरा का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
भक्तों की आस्था और सुख-शांति की कामना
इस आयोजन के दौरान हजारों श्रद्धालु माता के दर्शन करने आते हैं। वे माता के चरण स्पर्श कर उनसे सुख-शांति और समृद्धि की कामना करते हैं। गायकों और श्रद्धालुओं द्वारा भजन गाए जाते हैं, जिनमें ‘बनो सहायक छंद बनाने में करो आशापुरा आनंद शहर बिकाणे में’ जैसे गीत प्रमुख होते हैं।
संस्कृति और परंपरा का अनूठा संगम
बिस्सो के चौक की रम्मत न केवल बीकानेर की धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह यहां की सांस्कृतिक और सामाजिक एकता का भी उदाहरण है। इस आयोजन के जरिए न केवल पुरानी परंपराओं को जीवित रखा गया है, बल्कि यह नई पीढ़ी को अपनी संस्कृति से जोड़ने का भी एक माध्यम है।
बिस्सो के चौक की रम्मत और आशापुरा माता की यह परंपरा बीकानेर के गौरवशाली इतिहास का हिस्सा है। यह आयोजन हर साल श्रद्धालुओं और दर्शकों के दिलों में एक विशेष स्थान बना लेता है, जो बीकानेर की सांस्कृतिक धरोहर को हमेशा जीवित रखेगा।