India News (इंडिया न्यूज), Ramayan Facts: त्रेतायुग में लंका का राजा रावण, जो अपनी शक्ति और अपराजेयता के लिए प्रसिद्ध था, एक ऐसे व्यक्ति से भय खाता था, जिसकी पहचान उसकी ही भतीजी त्रिजटा के रूप में होती है। त्रिजटा, विभीषण की पुत्री, न केवल अत्यंत सुंदर और बुद्धिमान थी, बल्कि अपने दयालु स्वभाव और धार्मिक प्रवृत्ति के लिए भी जानी जाती थी।

त्रिजटा कौन थीं?

त्रिजटा विभीषण और उनकी पत्नी शर्मा की पुत्री थीं। विभीषण स्वयं भगवान विष्णु के परम भक्त थे और धर्म के मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति थे। उनकी पुत्री त्रिजटा ने भी अपने पिता की भांति धार्मिकता और सत्य के पथ का अनुसरण किया। उनका स्वभाव अन्य राक्षसियों से अलग था, और उन्होंने लंका में रहकर भी धर्म और सत्य का समर्थन किया।

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अशोक वाटिका में त्रिजटा की भूमिका

जब माता सीता को रावण ने बलपूर्वक लंका लाकर अशोक वाटिका में रखा, तब वहाँ की अन्य राक्षसियां उन्हें भयभीत करने और रावण से विवाह करने के लिए दबाव डालने लगीं। लेकिन त्रिजटा ने उनका विरोध किया और न केवल उन्हें डांटा, बल्कि माता सीता से क्षमा मांगने के लिए भी कहा। त्रिजटा माता सीता के प्रति अटूट श्रद्धा और सम्मान रखती थीं। उन्होंने सदैव माता सीता का मनोबल बनाए रखा और उन्हें यह विश्वास दिलाया कि भगवान राम शीघ्र ही आकर उन्हें मुक्त कराएंगे।

त्रिजटा के भविष्यसूचक स्वप्न

त्रिजटा को दिव्य दृष्टि प्राप्त थी, जिसके कारण वे भविष्य में होने वाली घटनाओं को देख सकती थीं। उन्होंने एक रात्रि में सपना देखा, जिसमें एक वानर (हनुमान) लंका को जलाकर नष्ट कर रहा था और भगवान राम माता सीता को बचाने के लिए आ रहे थे। यह सपना उन्होंने अपनी सखियों और माता सीता को बताया, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि रावण का अंत निश्चित है। उन्होंने अन्य राक्षसियों को भी चेतावनी दी कि वे माता सीता को परेशान न करें, बल्कि उनकी सेवा करें।

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रावण का त्रिजटा से भय

रावण जैसा पराक्रमी योद्धा भी त्रिजटा से भयभीत रहता था। इसके पीछे कई कारण थे:

  1. त्रिजटा की दिव्य शक्तियाँ: त्रिजटा अस्त्र-शस्त्रों और जादुई शक्तियों का गहन ज्ञान रखती थीं। वे अदृश्य रहकर किसी भी घटना का साक्षात्कार कर सकती थीं और उसकी सटीक भविष्यवाणी कर सकती थीं।
  2. सत्य वचन: त्रिजटा जो भी कहती थीं, वह सत्य सिद्ध होता था। उनका हर कथन भविष्य में सच साबित होता था, जिससे रावण को यह भय रहता था कि उनके वचनों से उसकी पराजय निश्चित है।
  3. भगवान विष्णु की भक्ति: त्रिजटा भगवान विष्णु की अनन्य भक्त थीं, और रावण जानता था कि भगवान विष्णु के प्रति उनकी निष्ठा उसे कभी अधर्म का समर्थन करने नहीं देगी।
  4. लंका में सत्य की प्रतीक: लंका में अधिकतर लोग रावण की शक्ति से भयभीत होकर उसका समर्थन करते थे, लेकिन त्रिजटा सत्य और धर्म की प्रतीक थीं। उनकी उपस्थिति रावण के साम्राज्य में धर्म का संकेत थी, जिससे वह सदा भयभीत रहता था।

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त्रिजटा: धर्म और नारी शक्ति का प्रतीक

त्रिजटा केवल एक साधारण राक्षसी नहीं थीं; वे सत्य, भक्ति और नारी शक्ति का प्रतीक थीं। उन्होंने माता सीता की रक्षा और सांत्वना के लिए जो भूमिका निभाई, वह दर्शाता है कि सच्चा धर्म किसी भी परिस्थिति में सत्य और न्याय के मार्ग पर चलने को प्रेरित करता है। उनका चरित्र हमें यह सिखाता है कि सत्य और धर्म का अनुसरण करने वाला व्यक्ति कभी भी पराजित नहीं होता।

त्रिजटा का चरित्र न केवल रामायण का एक महत्वपूर्ण भाग है, बल्कि यह दर्शाता है कि सत्य और धर्म की राह पर चलने वाला व्यक्ति कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, अधर्मियों के लिए हमेशा एक चुनौती बना रहता है। उनकी दिव्य दृष्टि, धार्मिक प्रवृत्ति, और निस्वार्थ सेवा ने उन्हें रामायण के सबसे महान और सम्माननीय पात्रों में से एक बना दिया। यही कारण था कि रावण, जो स्वयं इतना शक्तिशाली था, अपनी ही भतीजी त्रिजटा से भय खाता था।

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