India News (इंडिया न्यूज),  Ravana Daughter: रावण को लोग एक शक्तिशाली राक्षस राजा के रूप में देखते हैं। रावण वो है जिसके बारे में रामायण में विस्तार से बताया गया है। रावण के बेटों मेघनाद, अक्षयकुमार और कई दूसरों का जिक्र आपने बहुत बार होता सुना होगा। लेकिन क्या आपने कभी रावण की बेटियों के बारे में कुछ सुना है? रावण की एक ऐसी बेटी थी, जिनका जिक्र भारतीय ग्रंथों में भले ही न मिले लेकिन थाईलैंड और कंबोडिया जैसे देशों में उन्हें सौभाग्य और समृद्धि की देवी माना जाता है। रावण की उस बेटी का स्वर्ण मत्स्य बताया जाता है। जानकारी के लिए बता दें कि, स्वर्ण मत्स्य या सुवर्णमछा, रामायण के क्षेत्रीय और दक्षिण-पूर्व एशियाई संस्करणों में रावण की पुत्री के रूप में जानी जाती है। उसे विशेष रूप से थाईलैंड की रामकियेन और कंबोडिया की रामकेर रामायण में में दिखाया गया है। उसका शरीर सोने की तरह चमकता था और इसी वजह से उसे ‘स्वर्ण जलपरी’ कहा गया।

कौन हैं रावण की बेटी?

वाल्मीकि रामायण और तुलसीदास की रामचरितमानस जैसे मुख्य ग्रंथों में रावण की बेटियों का कोई उल्लेख नहीं मिलता। वहां केवल रावण के पुत्रों की बात की गई है। हालांकि, दक्षिण भारत की लोक कथाओं, आनंद रामायण, अध्यात्म रामायण और थाई-कंबोडियाई रामायण में उसकी बेटियों का जिक्र मिलता है। इन ग्रंथों के अनुसार रावण की तीन पत्नियां थी मंदोदरी, धन्यमालिनी और एक पत्नी जिनका नाम अज्ञात है। रावण को मंदोदरी से मेघनाद और अक्षयकुमार, धन्यमालिनी से अतिकाय और त्रिशिरा, जबकि तीसरी पत्नी से प्रहस्त, नरांतक और देवांतक हुए थे। मगर बेटियों की बात लोक कथाओं और विदेशी संस्करणों में ही सामने आती है।

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स्वर्ण मत्स्य और भगवान हनुमान की क्या है कहानी?

थाईलैंड की रामकियेन रामायण में बताया गया है कि जब भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई के लिए समुद्र पर पुल बनवाने की योजना बनाई, तब रावण ने अपनी बेटी स्वर्ण मत्स्य को उस योजना को विफल करने भेजा। सुवर्णमछा समुद्र के अंदर जाकर सेतु निर्माण के लिए डाले गए पत्थरों को गायब करने लगी। भगवान हनुमान को जब इसका संदेह हुआ, तो उन्होंने समुद्र में जाकर देखा और वहां सुवर्णमछा से मुकाबला किया। इस मुठभेड़ के दौरान सुवर्णमछा, हनुमान जी के प्रति आकर्षित हो गई और उनसे प्रेम कर बैठी। भगवान हनुमान ने उन्हें समझाया कि रावण का मार्ग धर्म के विरुद्ध है। प्रेम और पश्चाताप के प्रभाव से प्रेरित होकर, स्वर्ण मत्स्य ने चुराए गए सभी पत्थर वापस कर दिए, जिससे रामसेतु का निर्माण सुचारु रूप से पूर्ण हो सका। कथाओं के अनुसार, यदि वह ऐसा न करती, तो पुल बन पाना मुश्किल हो जाता। हनुमान ब्रह्मचारी थे, इसलिए उन्होंने सुवर्णमछा के प्रेम को स्वीकार नहीं किया। फिर भी, इस कथा ने थाई और कंबोडियाई संस्कृति में स्वर्ण मत्स्य को विशेष स्थान दिलाया।

क्या मां सीता भी थीं रावण की बेटी?

कुछ लोक कथाएं यहां तक दावा करती हैं कि सीता स्वयं रावण और मंदोदरी की पुत्री थीं। भविष्यवाणी के अनुसार, यह बालिका रावण के विनाश का कारण बनेगी, इसलिए उन्होंने उन्हें उसे समुद्र में बहा दिया। बाद में वह पेटी मिथिला पहुंची और राजा जनक ने उसे पाल लिया। हालांकि यह कथा मुख्यधारा के ग्रंथों में मान्य नहीं है। रावण की दूसरी एक और बेटी के रूप में कुंभिनी का नाम आता है, जिसकी शादी रावण ने अपने छोटे भाई कुंभकर्ण से कर दी थी। वह एक धर्मपरायण और समझदार स्त्री मानी जाती है, जो अपने पति की लंबी नींद और युद्ध में भागीदारी से परेशान रहती थी। कुंभकर्ण के मारे जाने के बाद उसका कोई विशेष विवरण नहीं मिलता, लेकिन कुछ कथाओं में वह मंदोदरी के साथ शोक करती नजर आती है।

थाईलैंड- कंबोडिया होती है स्वर्ण मत्स्य की पूजा

थाईलैंड और कंबोडिया में स्वर्ण मत्स्य को एक सौभाग्यशाली देवी के रूप में पूजा जाता है। थाईलैंड के प्रसिद्ध वाट फ्रा केओ मंदिर की दीवारों पर रामकियेन की कहानियों में हनुमान और सुवर्णमछा के प्रेम के दृश्य चित्रित हैं। इन देशों में स्वर्ण मत्स्य की छोटी-छोटी मूर्तियां बाजारों में बिकती हैं, जिन्हें लोग घर में सौभाग्य के प्रतीक के रूप में रखते हैं। थाई दुकानों में उसके चित्र और फ्रेम सजावट और आस्था दोनों के रूप में देखे जा सकते हैं। कंबोडिया के अंगकोर वाट के भित्तिचित्रों में समुद्र मंथन के दृश्य में जलपरी जैसी आकृतियों के रूप में सुवर्णमछा को दर्शाया गया है। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि ये आकृतियां स्वर्ण मत्स्य का प्रतिनिधित्व करती हैं। स्वर्ण मत्स्य की प्रतिमाएं और चित्र उसे एक मत्स्यांगना यानी जलपरी के रूप में दर्शाते हैं। उसका ऊपरी भाग एक सुंदर स्त्री का होता है और निचला भाग मछली का। उसे कभी-कभी भगवान हनुमान के साथ और कभी अकेले जल में चित्रित किया जाता है।

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