India News (इंडिया न्यूज), Idols Prayer in Mahabharat: यह एक बड़ा सवाल है कि महाभारत काल में पांडवों ने मूर्ति पूजा क्यों नहीं की। युधिष्ठिर सबसे धार्मिक व्यक्ति थे। वे यज्ञ का आयोजन करते थे, लेकिन कभी मूर्ति पूजा नहीं की। उन्होंने कभी देवताओं की मूर्तियों के सामने सिर नहीं झुकाया। अन्य पांडवों ने भी कुछ ऐसा ही किया। पांडव भगवान शिव, सूर्य, ब्रह्मा, कृष्ण, धर्मराज और वायु के बहुत बड़े भक्त थे। इसके बावजूद उन्होंने अपने जीवन में मूर्ति पूजा को नहीं अपनाया।

महाभारत का काल कब माना जाता है?

महाभारत काल का समय द्वापर युग का अंत और कलियुग का आरंभ माना जाता है। पुराणों में कहा गया है कि कलियुग की शुरुआत 3102 ईसा पूर्व में हुई थी। ऐसा माना जाता है कि महाभारत का युद्ध इससे कुछ समय पहले हुआ होगा, संभवतः 3139 ईसा पूर्व से 3102 ईसा पूर्व के बीच।

तब कैसे होती थी पूजा-अर्चना

महाभारत के अनुसार पांडवों का धार्मिक जीवन मुख्य रूप से वैदिक परंपराओं और रीति-रिवाजों पर आधारित था। यज्ञ, मंत्र और देवताओं की स्तुति वैदिक धर्म का मुख्य अंग थे। यह वैदिक काल था। तब देवी-देवताओं की पूजा मुख्य रूप से यज्ञ और हवन के माध्यम से होती थी, मूर्तियों के माध्यम से नहीं। हम आपको आगे बताएंगे कि पांडवों में से कौन कितना यज्ञ और पूजा-अर्चना करता था। साथ ही यह भी कि उस काल में न तो मूर्ति पूजा होती थी और न ही लोग मंदिर जाते थे।

पांडव किस देवी-देवता को मानते थे?

पांडव अनेक देवी-देवताओं के परम भक्त थे। उन्होंने कृष्ण को भगवान माना। गीता में भगवान कृष्ण ने ही अर्जुन को धर्म का ज्ञान दिया था। युधिष्ठिर की धर्मराज (धर्म के देवता) में विशेष आस्था थी। भीम हनुमान जी के भक्त थे। भीम की मुलाकात हनुमान जी से भी हुई थी। द्रौपदी देवी दुर्गा की उपासक थीं।

पांडवों ने मूर्ति पूजा क्यों नहीं की?

इतने धार्मिक होने के बावजूद पांडवों ने मूर्ति पूजा क्यों नहीं की? वे देवी-देवताओं की मूर्तियों के सामने सिर नहीं झुकाते थे। क्योंकि उस समय वैदिक धर्म में मूर्तियों की पूजा नहीं होती थी। ईश्वर को निराकार माना जाता था, इसलिए प्राकृतिक शक्तियों (जैसे अग्नि, वायु, सूर्य, चंद्रमा) और विशेष देवताओं की पूजा अधिक की जाती थी। वैदिक साहित्य में मूर्ति पूजा का कोई उल्लेख नहीं है।

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युधिष्ठिर और भीष्म पितामह ने किस तरह पूजा-अर्चना की?

अगर महाभारत काल में “सबसे ज़्यादा पूजा-पाठ और यज्ञ करने वालों” की बात करें तो इस श्रेणी में युधिष्ठिर और भीष्म पितामह मुख्य रूप से सबसे ऊपर हैं। कर्ण को भी धार्मिक अनुष्ठानों का प्रेमी और उदार व्यक्ति माना जाता है। वह नियमित रूप से सूर्य देव की पूजा करते थे।

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