India News (इंडिया न्यूज),  Shaiya Daan: सनातन धर्म में मृत्यु के बाद केवल अंतिम संस्कार ही नहीं, बल्कि आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए कई कर्मकांड भी किए जाते हैं। इनमें से एक जरुरी कर्म है शय्या दान करना। गरुड़ पुराण के अनुसार, मृत्यु के बाद 11वें दिन (एकादशाह) और 12वें दिन (द्वादशाह) पर शय्या दान किया जाता है। इसे मरने वाले की आत्मा के सुखद गमन और प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने की वजह से किया जाता है।

शय्या दान करने वाले को मिलता है पुण्य लाभ

शय्या दान का सीधा संबंध आत्मा की यात्रा से है। मान्यता है कि इससे मृतक को यमदूतों की प्रताड़ना से मुक्ति मिलती है और प्रलय तक वह सुखपूर्वक विश्राम कर सकता है। गरुड़ पुराण में उल्लेख है कि शय्या दान करने वाले को भी पुण्य लाभ होता है और वह स्वर्ग में हजारों वर्षों तक सुख भोगता है। मृत व्यक्ति के शरीर का अंतिम संस्कार भले ही कर दिया गया हो, लेकिन आत्मा के लिए यह दान बेहद महत्वपूर्ण है। यह दान मृतक के प्रति श्रद्धा और आत्मिक कर्तव्य की पूर्ति का प्रतीक माना जाता है।

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कैसे करें शय्या दान?

शय्या दान करने के लिए लकड़ी की चौकी, चारपाई या पलंग को उत्तर दिशा में सिरहाना और दक्षिण दिशा में पैर करते हुए रखा जाता है। शय्या के नीचे ईशान कोण (पूर्व-उत्तर) में गाय के घी से भरा कलश रखा जाता है, जो मिट्टी या धातु का हो सकता है। इसके अलावा अन्य दिशाओं में कलश रख सकते हैं।

  • अग्निकोण में कुमकुम से भरा कलश
  • नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम) में गेहूं से भरा कलश
  • वायव्य कोण (उत्तर-पश्चिम) में जल से भरा कलश
  • सिरहाने की ओर घी से भरा पात्र जिसे ‘निद्रा कलश’ कहा जाता है

इसके बाद शय्या पर गद्दा, सफेद चादर, तकिया लगाया जाता है। मृतक के जीवन में प्रयोग की गई वस्तुएं जैसे कपड़े, बर्तन, वाहन, पुस्तक, श्रृंगार सामग्री, माला, जप माला, धोती, गमछा, भोजन के बर्तन आदि शय्या पर या उसके पास रखी जाती हैं। साथ ही मृतक की प्रिय वस्तुएं और सप्तधान्य (सात प्रकार के अनाज) भी रखे जाते हैं।

दान के लिए होनी चाहिए शुद्ध विधि

दान की प्रक्रिया के दौरान दानकर्ता को हाथ जोड़कर शय्या की प्रदक्षिणा करनी चाहिए और “प्रमाण्यै देव्यै नम:” का उच्चारण करना चाहिए। वहीं, दान स्वीकार करने वाले ब्राह्मण को “स्वस्ति” बोलते रहना चाहिए। यह “स्वस्ति देवी” वायु देव की पत्नी मानी जाती हैं जिनकी पूजा पूरे संसार में होती है। यदि यह विधि ठीक प्रकार से न हो, तो शय्या दान निष्फल हो जाता है। शय्या दान न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह मृत आत्मा के कल्याण के साथ-साथ परिवार के लोगों के आत्मिक शुद्धिकरण का भी जरिया है। यह परंपरा सनातन संस्कृति की गहराई और आत्मा की अनंत यात्रा के लिए विश्वास को दिखाती है।

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