India News (इंडिया न्यूज), Gita Updesh: श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को जीवन के हर पहलू से जुड़ी महत्वपूर्ण शिक्षाएं दी हैं, जो न केवल उस समय के लिए बल्कि आज के समय में भी प्रासंगिक हैं। गीता में भगवान ने जीवन के संघर्षों, दुविधाओं और समस्याओं से निपटने के लिए ऐसे उपदेश दिए हैं, जिन्हें अगर सही तरीके से समझा और अपनाया जाए, तो व्यक्ति जीवन में कोई भी कठिनाई का सामना सहजता से कर सकता है। गीता के शिक्षाएं जीवन में सही दिशा और मार्गदर्शन प्रदान करती हैं।
लेकिन साथ ही, गीता में कुछ आदतों और आचरणों का भी उल्लेख है जो मानव जीवन को सही दिशा में ले जाने में मदद करते हैं। वहीं, कुछ गलत आदतें और आचरण व्यक्ति को पतन के रास्ते पर डाल सकते हैं। श्री कृष्ण ने गीता के 16वें अध्याय के श्लोक 21 में ऐसे तीन मुख्य आदतों का उल्लेख किया है, जो व्यक्ति के पतन का कारण बनती हैं। इन आदतों को जानना और इनसे बचना अत्यंत आवश्यक है। आइए, जानते हैं वह तीन आदतें कौन सी हैं, जो व्यक्ति के पतन का कारण बनती हैं:
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श्लोक का अर्थ:
श्री कृष्ण ने गीता के 16वें अध्याय के श्लोक 21 में कहा है-
“त्रिविधं नक्ष्येदं द्वारं नाशनमात्मनः।
कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्।।”
इस श्लोक का अर्थ है कि तीन चीजें—काम (वासना), क्रोध और लोभ—व्यक्ति के लिए नरक के द्वार तक पहुंचने का कारण बनती हैं। यदि इन तीनों आदतों पर नियंत्रण नहीं पाया जाता है, तो व्यक्ति अपने पतन की ओर बढ़ता है। अब आइए, इन तीन आदतों के बारे में विस्तार से जानते हैं:
1. काम (वासना)
काम, यानी वासना, वह बुरी आदत है जो व्यक्ति के मन में हठधर्मिता और आसक्तियों को जन्म देती है। जब किसी व्यक्ति के मन में वासना का प्रभाव बढ़ जाता है, तो वह अपने इच्छाओं और प्रवृत्तियों के पीछे भागता है, जिससे उसके विवेक का हरण हो जाता है। वासना के कारण व्यक्ति अपने ज्ञान और समझ को खो देता है और कभी-कभी यह उसे पापपूर्ण आचरण की ओर भी ले जा सकती है। इस तरह की वासनाओं के कारण मनुष्य न केवल अपनी आंतरिक शांति खो देता है, बल्कि उसे जीवन के वास्तविक उद्देश्य से भी भटका देती हैं।
उपदेश: भगवान कृष्ण ने वासनाओं से बचने की सलाह दी है। हमें अपने इच्छाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए और जो हमें शांति और संतोष प्रदान करता है, उसी में संतुष्ट रहना चाहिए।
2. क्रोध (गुस्सा)
क्रोध, एक ऐसी भावना है जो व्यक्ति के मनोबल और विवेक को नष्ट कर देती है। जब व्यक्ति क्रोधित होता है, तो उसका मन स्थिर नहीं रहता और वह अनियंत्रित हो जाता है। क्रोध के कारण व्यक्ति के अंदर असंतुलन पैदा होता है, और उसे सही-गलत का भेद नहीं समझ में आता। क्रोध के प्रभाव में आकर लोग हिंसा, अपशब्दों का प्रयोग, और बुरे कर्म करने की दिशा में बढ़ते हैं। यही कारण है कि श्री कृष्ण ने कहा कि क्रोध से बचना चाहिए, क्योंकि यह व्यक्ति के मानसिक संतुलन को बिगाड़ देता है और उसके पतन का कारण बनता है।
उपदेश: भगवान कृष्ण ने क्रोध को शांत करने और आत्म-नियंत्रण का महत्व बताया है। शांत मन से निर्णय लेने पर हमेशा सही मार्ग मिलता है और जीवन में परेशानी कम होती है।
3. लोभ (लालच)
लोभ या लालच, वह स्थिति है जब व्यक्ति कभी संतुष्ट नहीं होता। उसे जो कुछ भी प्राप्त होता है, वह उसे पर्याप्त नहीं समझता और और अधिक पाने की लालसा में अनैतिक रास्तों पर चलने लगता है। लालच के कारण व्यक्ति सत्य को छोड़कर झूठ, छल-कपट, चोरी, और अन्य अधार्मिक कार्यों में उलझ जाता है। यह उसकी मानसिक स्थिति को और अधिक विकृत कर देता है, जिससे वह अंततः अपने पतन की ओर बढ़ता है।
उपदेश: श्री कृष्ण का कहना है कि जितना आपके पास है, उसी में संतुष्ट रहें। लालच करने से न केवल जीवन में अशांति आती है, बल्कि यह व्यक्ति को अधर्म के रास्ते पर भी ले जाता है।
गीता के इस श्लोक के माध्यम से भगवान श्री कृष्ण ने यह स्पष्ट किया है कि काम, क्रोध, और लोभ—ये तीन प्रमुख द्वार हैं, जो व्यक्ति को उसके पतन की ओर ले जाते हैं। इन आदतों से बचने के लिए व्यक्ति को आत्म-नियंत्रण और मानसिक शांति की आवश्यकता होती है। जो व्यक्ति इन तीनों को त्यागता है, वह जीवन में शांति और संतोष की प्राप्ति करता है और अपने लक्ष्य की ओर सफलतापूर्वक बढ़ता है।
इस प्रकार, श्री कृष्ण के इस उपदेश का पालन करके हम अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं और किसी भी प्रकार के पतन से बच सकते हैं।