India News (इंडिया न्यूज), Shri Ram Hanuman Yuddh: हनुमान जी को श्री राम के परम भक्त के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि हनुमान जी के रोम-रोम में श्री राम का वास है, और श्री राम भी हनुमान जी को अपने पुत्र के समान स्नेह करते हैं। लेकिन एक बार ऐसी घटना घटी जब इन दोनों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। इस कथा का वर्णन पौराणिक ग्रंथों में मिलता है। आइए जानते हैं इस कथा के पीछे की पूरी घटना।
संत सभा में ऋषि विश्वामित्र का अपमान
एक बार देवलोक में संतों की एक सभा का आयोजन हुआ। इस सभा में ब्रह्मांड के सभी तेजस्वी और ज्ञानी संत उपस्थित थे। इनमें से एक संत सुकंत भी थे, जो पहले एक राजा हुआ करते थे। राजपाट त्यागने के बाद उन्होंने संन्यास धारण कर लिया था।
जब सुकंत संत सभा में पहुंचे, तो उन्होंने सभी ऋषियों और संतों को प्रणाम किया। लेकिन उन्होंने ऋषि विश्वामित्र को नमन नहीं किया। यह देखकर ऋषि विश्वामित्र बहुत दुखी हुए और क्रोधित होकर सभा से चले गए।
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श्री राम का प्रण
अयोध्या लौटने पर ऋषि विश्वामित्र ने श्री राम से इस घटना का उल्लेख किया। ऋषि का दुख देखकर श्री राम को बहुत पीड़ा हुई। उन्होंने प्रण लिया कि वे ऋषि विश्वामित्र के अपमान का बदला लेने के लिए राजा सुकंत का वध करेंगे।
राजा सुकंत की प्रार्थना
जब राजा सुकंत को श्री राम के प्रण के बारे में पता चला, तो वे घबराकर माता अंजनी के पास पहुंचे। माता अंजनी से उन्होंने अपनी रक्षा की प्रार्थना की। माता अंजनी ने हनुमान जी से सहायता करने का आग्रह किया। हनुमान जी ने सुकंत की रक्षा का वचन दिया।
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हनुमान जी का सुरक्षा चक्र
हनुमान जी ने राजा सुकंत के चारों ओर एक घेरा बनाया और उसे श्री राम के नाम के जाप से सुरक्षित कर दिया। इस घेरे के कारण कोई भी हथियार उस घेरे को भेद नहीं सकता था।
श्री राम और हनुमान जी का युद्ध
श्री राम ने अपने प्रण को पूरा करने के लिए युद्ध आरंभ किया। उन्होंने राजा सुकंत पर एक के बाद एक बाण छोड़े। लेकिन हनुमान जी द्वारा बनाए गए सुरक्षा घेरे और उसमें हो रहे श्री राम के नाम के जाप के प्रभाव से सभी बाण निष्फल हो गए।
युद्ध पाँच दिनों तक चला। इस दौरान हनुमान जी और श्री राम के बीच अद्भुत शक्ति का प्रदर्शन हुआ। अंततः ऋषि विश्वामित्र ने राजा सुकंत को क्षमा कर दिया और श्री राम से युद्ध रोकने का आग्रह किया। श्री राम ने ऋषि की बात मान ली और युद्ध समाप्त हो गया।
इस कथा से यह सीख मिलती है कि श्री राम और हनुमान जी के बीच का संबंध न केवल भक्ति और स्नेह का है, बल्कि धर्म और न्याय के प्रति उनकी प्रतिबद्धता भी उतनी ही गहरी है। साथ ही यह कथा यह भी दिखाती है कि सच्चे भक्त की रक्षा स्वयं भगवान भी करते हैं।
हनुमान जी और श्री राम का यह युद्ध धर्म और न्याय का प्रतीक है। यह घटना हमें सिखाती है कि भले ही परिस्थिति कैसी भी हो, सच्चे भक्त और धर्म की रक्षा हमेशा होती है। यह कथा भक्तों के लिए प्रेरणा का स्रोत है और श्री राम और हनुमान जी के प्रति श्रद्धा को और गहराई प्रदान करती है।
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