India News (इंडिया न्यूज), Shri Ram Ka Naam: आज, 6 अप्रैल को पूरे भारतवर्ष सहित विश्वभर में जहाँ-जहाँ हिंदू धर्म को मानने वाले लोग हैं, वहाँ भगवान श्रीराम का जन्मोत्सव यानी राम नवमी बड़े श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। यह दिन न केवल मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जन्म की खुशी का प्रतीक है, बल्कि यह दिन हमें उनके आदर्शों, जीवन-मूल्यों और संस्कृति की गहराई को समझने का भी अवसर देता है।
राम नवमी जैसे पावन अवसर पर एक सवाल अक्सर लोगों के मन में आता है—“राम-राम” दो बार क्यों कहा जाता है? क्यों नहीं सिर्फ एक बार “राम” कहकर अभिवादन किया जाता?
इस सवाल के पीछे छिपी है एक गहरी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक समझ, जिसे जानना न केवल रोचक है, बल्कि श्रद्धा और विश्वास को भी और मजबूत करता है।
क्या था भगवान श्री राम के उस धनुष का नाम, जिसने एक ही बार में रावण को उतार दिया था मौत के घाट?
राम-राम कहने की परंपरा
भारतीय संस्कृति में जब हम किसी से मिलते हैं, तो अभिवादन स्वरूप दो प्रमुख तरीके अपनाते हैं—
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हाथ जोड़कर नमस्कार
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भगवान का नाम लेकर अभिवादन करना, जैसे “जय श्रीराम”, “हरि ओम”, या फिर “राम-राम”।
“राम-राम” कहना न केवल शिष्टाचार की पहचान है, बल्कि यह एक शक्तिशाली धार्मिक मंत्र की तरह भी कार्य करता है।
राम-राम दो बार क्यों? इसके पीछे छुपा है 108 जपों का रहस्य
हिंदू धर्म में 108 संख्या का विशेष महत्व है। चाहे वह माला के 108 मनके हों, या फिर 108 बार मंत्र जाप— यह संख्या पूर्णता और दिव्यता का प्रतीक मानी जाती है।
अब जानिए कैसे “राम” शब्द का केवल दो बार उच्चारण करने से ही 108 राम नाम का जाप पूर्ण हो जाता है:
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राम शब्द के अक्षरों का गणितीय रहस्य:
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‘र’ (संस्कृत वर्णमाला में) = 27वां स्थान
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‘आ’ (स्वर मात्रा) = 2वां स्थान
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‘म’ = 25वां स्थान
अगर हम इन तीनों अक्षरों के स्थान को जोड़ें:
27 + 2 + 25 = 54
अब, जब हम “राम” शब्द को दो बार बोलते हैं, तो यह योग हो जाता है:
54 x 2 = 108
इस प्रकार, “राम-राम” कहने का अर्थ है— एक ही क्षण में 108 राम नाम का जाप। यही कारण है कि भारतीय समाज में यह परंपरा बनी कि किसी से मिलते समय “राम-राम” कहा जाए। यह केवल एक सामाजिक शिष्टाचार नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक साधना भी है।
राम नाम की महिमा
तुलसीदास जी ने भी श्रीरामचरितमानस में कहा है:
“राम नाम बिनु गावहिं गाना। बिनु जल वारि बिचि मीन समाना॥”
अर्थात – राम नाम के बिना जीवन वैसा ही है जैसे जल के बिना मछली।
राम नाम के उच्चारण मात्र से ही मन शांत होता है, विचार शुद्ध होते हैं और आत्मा में दिव्यता का संचार होता है।
“राम-राम” में छिपा है श्रद्धा, विज्ञान और साधना का संगम
“राम-राम” कहने की परंपरा केवल एक अभिवादन नहीं, बल्कि एक सूक्ष्म और वैज्ञानिक रूप से सिद्ध जप प्रणाली है, जो बिना किसी विशेष विधि के ही 108 राम नाम जप के फल को प्रदान करती है।
इसलिए अगली बार जब आप किसी से “राम-राम” कहें, तो गर्व और श्रद्धा के साथ कहें, क्योंकि आप एक पवित्र जाप कर रहे हैं और सामने वाले को भी उस दिव्यता से जोड़ रहे हैं।
राम नवमी के पावन अवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं। जय श्रीराम!