India News (इंडिया न्यूज), Sita Ram Vivah Dakshina: वाल्मीकि रामायण के अनुसार, भगवान राम और देवी सीता के विवाह में न केवल देवताओं और ऋषियों का आशीर्वाद था, बल्कि दो महान गुरुओं — ऋषि सतानंद और गुरु वशिष्ठ — का मार्गदर्शन भी प्रमुख था। इन दोनों गुरुओं ने विवाह की रस्मों को संपन्न कराया और उसके बाद वर-वधु से ऐसी गुरु दक्षिणा मांगी जो न केवल उनके दांपत्य जीवन के लिए महत्वपूर्ण थी, बल्कि समस्त मानवता के लिए प्रेरणादायक संदेश भी देती है।
ऋषि सतानंद की गुरु दक्षिणा
विवाह के पश्चात, देवी सीता के गुरु ऋषि सतानंद ने भगवान राम से गुरु दक्षिणा मांगी। उन्होंने राम से कहा, “जो आसन (स्थान) आपने सीता को दिया है, वह किसी अन्य स्त्री को न दें।” इसका अर्थ यह था कि राम अपने हृदय, सम्मान और स्थान में सीता को अद्वितीय स्थान दें और उनका स्थान कभी किसी और को न दें। राम ने इस वचन को सहर्ष स्वीकार किया और अपने गुरु को वचन देकर दक्षिणा अर्पित की।
यह मांग केवल एक वैवाहिक नियम नहीं था, बल्कि यह एक संदेश था कि पति-पत्नी के बीच विश्वास और निष्ठा का स्थान अटूट होना चाहिए। राम ने जीवनभर इस वचन का पालन किया और अपनी पत्नी सीता को सदैव अपने हृदय में सर्वोच्च स्थान दिया।
गुरु वशिष्ठ की गुरु दक्षिणा
इसके बाद, भगवान राम के गुरु वशिष्ठ देवी सीता के पास गए और उनसे गुरु दक्षिणा मांगी। उन्होंने कहा, “राम लोक नायक हैं। उनके सामाजिक, आर्थिक और नैतिक कर्तव्यों के कारण उनके कुछ निर्णय आपके हित में नहीं होंगे। ऐसी परिस्थितियों में, आप उन्हें माफ करेंगी और उनका साथ देंगी।”
गुरु वशिष्ठ ने यह भी समझाया कि एक राजा और लोकनायक के रूप में राम का कर्तव्य केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि समाज के प्रति भी होगा। ऐसे में कई बार उनके निर्णय कठोर और व्यक्तिगत रूप से पीड़ादायक हो सकते हैं। वशिष्ठ ने देवी सीता से यह वचन मांगा कि वह हर परिस्थिति में राम को क्षमा करेंगी और उनकी भूमिका को समझकर उनका समर्थन करेंगी।
सीता ने इस मांग को सहर्ष स्वीकार किया और वचन देकर गुरु को दक्षिणा अर्पित की।
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गुरु दक्षिणा का गहरा महत्व
राम और सीता दोनों ने जीवनपर्यंत अपने गुरुओं द्वारा मांगे गए वचनों का पालन किया। राम ने सीता को अपने हृदय में सर्वोच्च स्थान दिया, और सीता ने हर कठिन परिस्थिति में राम को क्षमा किया और उनका साथ दिया। यह कथा न केवल उनके दांपत्य जीवन के आदर्श को दर्शाती है, बल्कि यह भी सिखाती है कि भरोसा और क्षमा वैवाहिक जीवन का आधार हैं।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में शिक्षा
आज के युग में, राम और सीता की यह कथा हमें सिखाती है कि वैवाहिक जीवन केवल प्रेम और सुखद पलों पर नहीं, बल्कि विश्वास, निष्ठा और क्षमा पर आधारित होना चाहिए। रिश्तों में मतभेद और कठिनाइयां आना स्वाभाविक है, लेकिन इन पर विजय पाने के लिए एक-दूसरे के प्रति अटूट विश्वास और समझ आवश्यक है।
इस कथा के माध्यम से ऋषि सतानंद और गुरु वशिष्ठ ने यह संदेश दिया कि पति-पत्नी का रिश्ता एक-दूसरे को सम्मान, निष्ठा और क्षमा देने से मजबूत होता है। यह प्रेरणा हमें हमारे व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में भी रिश्तों को मजबूत बनाने की दिशा में प्रयास करने की शिक्षा देती है।