India News (इंडिया न्यूज), VIP Darshan: भगवान के दर्शन की लालसा हर भक्त के हृदय में बसती है। भक्तगण घंटों कतार में खड़े रहकर भगवान के दर्शन करने की प्रतीक्षा करते हैं। वृंदावन, राजस्थान सहित संपूर्ण भारत और दुनिया के विभिन्न मंदिरों में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखी जाती है। लेकिन इसी बीच कुछ लोग विशेष सुविधाओं का लाभ उठाकर वीआईपी दर्शन कर लेते हैं। वे बिना किसी प्रतीक्षा के, सुरक्षा घेरे में भगवान के सामने जाकर शीघ्र ही दर्शन कर बाहर निकल जाते हैं। यह प्रथा कितनी उचित है? क्या वास्तव में भगवान इन वीआईपी भक्तों के दर्शन स्वीकार करते हैं?
कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय महाराज का दृष्टिकोण
प्रसिद्ध कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय महाराज इस विषय पर एक अद्भुत दृष्टांत प्रस्तुत करते हैं। वे श्रीमद्भागवत में वर्णित पूतना की कथा का उल्लेख करते हैं। पूतना, जो एक राक्षसी थी, बालकृष्ण को मारने के उद्देश्य से अत्यंत सुंदर रूप धारण करके गोकुल में पहुंची। उसकी मोहक सुंदरता से सभी प्रभावित हो गए और उसे श्रीकृष्ण के समीप जाने दिया। लेकिन जब पूतना ने मात्र छह दिन के श्रीकृष्ण को गोद में उठाया, तो भगवान ने अपनी आंखें बंद कर लीं।
वीआईपी दर्शन और पूतना पद्धति
इंद्रेश उपाध्याय महाराज कहते हैं कि जब कोई व्यक्ति वीआईपी पद्धति से बिना धैर्य रखे, बिना कठिनाई सहे भगवान के दर्शन करने जाता है, तो यह पूतना जैसी प्रवृत्ति बन जाती है। पूतना की तरह ही, यह भक्त भी विशेष सुविधाओं के सहारे भगवान के सामने पहुंचता है। लेकिन जैसे श्रीकृष्ण ने पूतना के सामने अपनी आंखें बंद कर ली थीं, वैसे ही भगवान ऐसे भक्तों को नहीं देखते।
अर्थात, वीआईपी दर्शन करने वाला व्यक्ति भगवान को देखता तो है, लेकिन भगवान उसे नहीं देखते। यही कारण है कि ऐसे दर्शन करने वाले भक्तों को पुण्य प्राप्त नहीं होता।
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सामान्य दर्शन का महत्व
इसके विपरीत, जब कोई भक्त सामान्य तरीके से, धैर्य और श्रद्धा के साथ, कतार में खड़ा होकर भगवान के दर्शन करता है, तब भले ही उसे भगवान स्पष्ट रूप से दिखाई दें या न दें, लेकिन भगवान उसे अवश्य देखते हैं। उनकी कृपा ऐसे भक्तों पर बरसती है और वे उनके साक्षात आशीर्वाद के पात्र बनते हैं।
भगवान के दर्शन केवल बाह्य रूप से देखने मात्र से नहीं होते, बल्कि यह एक आध्यात्मिक अनुभूति होती है। भक्तों को अपने अहंकार और विशेष सुविधाओं को त्यागकर, सच्चे मन से भगवान के चरणों में समर्पित होना चाहिए। जब हम श्रद्धा और भक्ति के साथ ईश्वर के दर्शन के लिए प्रयास करते हैं, तभी हमें सच्चा आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है। अतः वीआईपी दर्शन की मानसिकता छोड़कर, शुद्ध हृदय से भगवान के दर्शन करने का प्रयास करें, क्योंकि वही वास्तविक भक्ति और पुण्य का मार्ग है।